Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक (Coordination Compounds) Solutions
Question - 21 : - निम्नलिखित के प्रकाशिक समावयवों की संरचनाएँ बनाइए –
(i) [Cr(C2O4)3]3-
(ii) [PtCl2(en)2]2+
(iii) [Cr(NH3)2Cl2(en)]+
Answer - 21 : -
Question - 22 : - निम्नलिखित के सभी समावयवों (ज्यामितीय व ध्रुवण) की संरचनाएँ बनाइए –
- [CoCl2(en)2]+
- [Co(NH3)Cl(en)2]2+
- [Co(NH3)Cl2(en)]+
Answer - 22 : - 1. CoCl2(en)2]+
2. [Co(NH3)Cl(en)2]2+
3. [Co(NH3)Cl2(en)]+
सभी असममिताकार हैं, इसलिए सभी प्रकाशिक समावयवता अर्थात् d(+) तथा l(-) रूप प्रदर्शित करेंगे जो एक-दूसरे पर अध्यारोपित न होने वाले दर्पण प्रतिबिम्ब हैं।
Question - 23 : - [Pt(NH3)(Br)(Cl)(Py)] के सभी ज्यामितीय समावयव लिखिए। इनमें से कितने ध्रुवण अर्थात प्रकाशिक समावयवता दर्शाएँगे?
Answer - 23 : - दिए गए यौगिक के तीन ज्यामितीय समावयव सम्भव हैं।
इस प्रकार के समावयव ध्रुवण समावयवता नहीं दर्शाते हैं। ध्रुवण समावयवता वर्ग समतली या चतुष्फलकीय संकुलों में दुर्लभ रूप में पायी जाती है। जबकि इनमें असममिताकार कोलेटिंग लिगेण्ड उपस्थित हों।
Question - 24 : - जलीय कॉपर सल्फेट विलयन (नीले रंग का), निम्नलिखित प्रेक्षण दर्शाता है –
1. जलीय पोटैशियम फ्लुओराइड के साथ हरा रंग
2. जलीय पोटैशियम क्लोराइड के साथ चमकीला हरा रंग।
उपर्युक्त प्रायोगिक परिणामों को समझाइए।
Answer - 24 : - जलीय कॉपर सल्फेट विलयन [Cu(H2O)4]SO4 के रूप में स्थित रहता है तथा [Cu(H2O)4]2+ आयनों के कारण इसका रंग नीला होता है।
1. जब KFविलयन मिलाया जाता है, तो दुर्बल H2O लिगेण्ड प्रबल F- लिगेण्ड्स के द्वारा। प्रतिस्थापित हो जाते हैं। इस प्रकार, [CuF4]2- आयन बनते हैं, जो हरा अवक्षेप देते हैं।
2. जब KCl विलयन मिलाया जाता है तो Cl– लिगेण्ड्स दुर्बल H2O लिगेण्ड्स को प्रतिस्थापित कर देते हैं और [CuCl4]2- आयन बनाते हैं, जो चमकीले हरे रंग के होते हैं।
Question - 25 : - कॉपर सल्फेट के जलीय विलयन में जलीय KCN को आधिक्य में मिलाने पर बनने वाली उपसहसंयोजन सत्ता क्या होगी? इस विलयन में जब H2S गैस प्रवाहित की जाती है तो कॉपर सल्फाइड का अवक्षेप क्यों नहीं प्राप्त होता?
Answer - 25 : - जब जलीय KCN विलयन को जलीय कॉपर सल्फेट के विलयन में मिलाया जाता है, तो निम्न प्रकार से [Cu(CN)4]2- उपसहसंयोजन स्पीशीज प्राप्त होती है –
इस प्रकार बनी उपसहसंयोजन स्पीशीज [Cu(CN)4]2- अत्यधिक स्थिर होती है क्योंकि CN– प्रबल लिगेण्ड होते हैं। इसलिए इस विलयन में H2S गैस प्रवाहित करने पर CuS का अवक्षेप प्राप्त नहीं होता है क्योंकि मुक्त Cu2+ आयन उपलब्ध नहीं होते हैं।
Question - 26 : - संयोजकता आबन्धसिद्धान्त के आधार पर निम्नलिखित उपसहसंयोजन सत्ता में आबन्ध की प्रकृति की विवेचना कीजिए –
- [Fe(CN)6]4-
- [FeF6]3-
- [CO(C2O4)3]3-
- [COF6]3-
Answer - 26 : - 1. [Fe(CN6)]4- – इस संकुल आयन में आयरन की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है।
Fe का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = [Ar] 3d6 4s2
Fe 2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = [Ar] 3d6
छह सायनाइड आयनों से छह इलेक्ट्रॉन युग्मों को स्थान देने के लिए आयरन (II) आयन को छह रिक्त कक्षक उपलब्ध करने चाहिए। ऐसा निम्नलिखित संकरण पद्धति के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है जिसमें d-उपकोश के इलेक्ट्रॉन युग्मित हो जाते हैं, चूँकि CN– आयन प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड हैं।
अत: छह सायनाइड आयनों से छह इलेक्ट्रॉन युग्म आयरन (II) आयन के छह संकरित कक्षकों को अध्यासित कर लेते हैं। इस प्रकार किसी भी कक्षक में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं, इसलिए [Fe(CN)6]4- प्रतिचुम्बकत्व दर्शाता है। अतः [Fe(CN)6]4- प्रतिचुम्बकीय तथा अष्टफलकीय है।
2. [FeF6]3- –यह संकुल उच्च चक्रण (या चक्रण मुक्त) या बाह्य संकुल है, चूंकि केन्द्रीय धातु आयन, Fe(III) संकरण के लिए nd-कक्षकों का प्रयोग करता है। यह एक अष्टफलकीय संकुल है। जिसमें sp3 d2 संकरण होता है, प्रत्येक कक्षक में छह फ्लुओराइड आयनों से एक-एक एकाकी इलेक्ट्रॉन-युग्म स्थान प्राप्त करता है जैसा कि निम्नांकित चित्र में दर्शाया गया है –
चूँकि संकुल में पाँच अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं, अत: यह अनुचुम्बकीय है।
3. [CO(C2O4)3]3-
Co (Z = 27) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास : [Ar] 3d7 4s2
Co3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास : [Ar] 3d6 4s0
C2O2-4 प्रबल क्षेत्रीय लिगेण्ड है जिसके कारण इलेक्ट्रॉनों का युग्मन हो जाता है।
अतः स्पष्ट है कि [Co(C2O4)3]3- प्रतिचुम्बकीय तथा अष्टफलकीय संकुल है।
4. [CoF6]3- –Co (27) : [Ar] 3d7 4s2
Co3+ : [Ar] 3d6 4s0
F– एक दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड होने के कारण इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं कर सकता है।
अतः [CoF6]3- अनुचुम्बकीय तथा अष्टफलकीय संकुल है।
Question - 27 : - अष्टफलकीय क्रिस्टल क्षेत्र में d-कक्षकों के विपाटन को दर्शाने के लिए चित्र बनाइए।
Answer - 27 : - माना छह लिगेण्ड कार्तिक अक्षों के अनुदिश सममित रूप से स्थित हैं तथा धातु परमाणु मूल बिन्दु पर है।
लिगेण्ड के निकट आने पर d-कक्षकों की ऊर्जा में मुक्त आयनों की तुलना में अपेक्षित वृद्धि होती है। जैसा कि गोलीय क्रिस्टल क्षेत्र की स्थिति में होता है।
अक्षों के अनुदिश कक्षक (dz2 तथा dx2–y2) dxy , dyz तथा dzx कक्षकों की तुलना में अधिक प्रबलता से प्रतिकर्षित होते हैं तथा इनमें अक्षों के मध्य निर्देशित पालियाँ (lobes) होती हैं। गोलीय क्रिस्टल क्षेत्र में औसत ऊर्जा की अपेक्षा dz2 तथा dx2–y2 कक्षक ऊर्जा में बढ़ जाते हैं तथा dxy, dyz,dzx, कक्षक ऊर्जा में न्यून हो जाते हैं।
अतः d- कक्षकों का समभ्रंश समूह (degenerate set) दो समूहों में विपाटित हो जाता है- निम्न ऊर्जा कक्षक समूह t2g तथा उच्च ऊर्जा कक्षक समूह eg ऊर्जा Δ0 द्वारा पृथक्कृत होती हैं।
Question - 28 : - स्पेक्टमीरासायनिक श्रेणी क्या है? दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड तथा प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
Answer - 28 : -
स्पेक्टमीरासायनिक श्रेणी (SpectrochemicalSeries) – क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन, Δ0 लिगेण्ड तथा धातु आयन पर विद्यमान आवेश से उत्पन्न क्षेत्र पर निर्भर करता है। कुछ लिगेण्ड प्रबल क्षेत्र उत्पन्न कर सकते हैं तथा ऐसी स्थिति में विपाटन अधिक होता है, जबकि अन्य दुर्बल क्षेत्र उत्पन्न करते हैं जिसके फलस्वरूप d-कक्षकों का विपाटन कम होता है। सामान्यत: लिगण्डों को उनके बढ़ती हुई क्षेत्र प्रबलता के क्रम में एक श्रेणी में निम्नानुसार व्यवस्थित किया जा सकता है –
I– < Br– < SCN– < Cl– 2 < F– < OH– < C2O2-4 2O < NCS– < EDTA4- < NH3 – < CO
इस प्रकार की श्रेणी स्पेक्ट्रमीरासायनिक श्रेणी (spectrochemical series) कहलाती है। यह विभिन्न लिगेण्डों के साथ बने संकुलों द्वारा प्रकाश के अवशोषण पर आधारित प्रायोगिक तथ्यों द्वारा निर्धारित श्रेणी है।
दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड तथा प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड के मध्य अन्तर (Difference between weak field ligand andstrong field ligand) – वे लिगेण्ड जिनकी क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा (CFSE), Δ0 का मान कम होता है, दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड कहलाते हैं। दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड के कारण इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं होता तथा ये उच्च चक्रण संकुल बनाते हैं। वे लिगेण्ड जिनकी क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा, Δ0 का मान अधिक होता है, प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड कहलाते हैं। प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड के कारण इलेक्ट्रॉनों का युग्मन होता है तथा ये निम्न चक्रण संकुल बनाते हैं।
Question - 29 : - क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा क्या है? उपसहसंयोजन सत्ता में 4-कक्षकों का वास्तविक विन्यास A, के मान के आधार पर कैसे निर्धारित किया जाता है?
Answer - 29 : -
जब लिगेण्ड संक्रमण धातु आयन के निकट जाता है, तब d-कक्षक दो समुच्चयों में विपाटित हो जाते हैं, एक निम्न ऊर्जा के साथ तथा दूसरा उच्च ऊर्जा के साथ। कक्षकों के इन दो समुच्चयों के बीच ऊर्जा का अन्तर अष्टफलकीय क्षेत्र के लिए क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा, Δ0 कहलाता है।
यदि Δ0 < P (युग्मन ऊर्जा) तो चौथा इलेक्ट्रॉन किसी एक है, कक्षक में प्रवेश करता है तथा t32g e1g विन्यास देकर उच्च चक्रण संकुल बनाता है। ऐसे लिगेण्ड (जिनके लिए, Δ0 < P) दुर्बल क्षेत्र लिंगैण्ड कहलाते हैं।
यदि Δ0 > P तो चौथा इलेक्ट्रॉन किसी एक है t2g कक्षक में युग्मित होता है तथा t42g e0g विन्यास देकर निम्न चक्रण संकुल बनाता है। ऐसे लिगेण्ड (जिनके लिए, Δ0 > P) प्रबल क्षेत्र लिंगेण्ड कहलाते
Question - 30 : - [Cr(NH3)6] अनुचुम्बकीय है, जबकि [Ni(CN)4] प्रतिचुम्बकीय, समझाइए क्यों?
Answer - 30 : - [Cr(NH3)6]3+ का निर्माण (Formation of [Cr(NH3)6]3+)
[Cr(NH3)6]3+ आयन में क्रोमियम की ऑक्सीकरण अवस्था +3 है। क्रोमियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Ar] 3d5 4s1 है। संकरण को निम्नलिखित आरेख में दर्शाया गया है –
Cr3+ आयन अमोनिया के छह अणुओं से छह इलेक्ट्रॉन युग्मों को स्थान देने के लिए छह रिक्त कक्षक उपलब्ध कराते हैं। परिणामत: संकुल [Cr(NH3)]3+ में d2 sp3 संकरण होता है तथा यह अष्टफलकीय होता है। संकुल में तीन अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति इसके अनुचुम्बकीय गुण को स्पष्ट करती हैं।
[Ni(CN)4]2- का निर्माण (Formation of [Ni(CN)4]2-)
[Ni(CN)4]2- में Ni की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है तथा इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d है। संकरण को निम्नवत् समझाया जा सकता है –
प्रत्येक संकरित कक्षक सायनाइड आयन से एक इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण करता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की अनुपस्थिति [Ni(CN)4]2- के प्रतिचुम्बकीय व्यवहार की पुष्टि करती है।