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Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन (Management of Natural Resources) Solutions

Question - 1 : - पर्यावरण-मित्र बनने के लिए आप अपनी आदतों में कौन-से परिवर्तन ला सकते हैं?

Answer - 1 : -

निम्न आदतों में परिवर्तन लाकर हम पर्यावरण मित्र बन सकते हैं –

  1. पॉलिथीन बैग के स्थान पर कपड़े या जूट के बैग का प्रयोग करके।
  2. बिजली के पंखे, टी.वी. एवं बल्ब को अनावश्यक तरीके से उपयोग नहीं करके।
  3. पेपर, प्लास्टिक, शीशा तथा धातुओं से बनी वस्तुओं को पुनः चक्रण के लिए भेज कर।
  4. प्रतिवर्ष कुछ वृक्ष लगाने का संकल्प लेकर।
  5. वन्य जीवों से प्राप्त सामानों का बहिष्कार करके।
  6. कम दूरी जैसे : स्कूल की स्थिति में पैदल चलकर/साइकिल का प्रयोग करके।
  7. पानी के अनावश्यक बहाव तथा खर्च को कम करके।
  8. कचरे को सड़क के किनारे न फेंककर।

Question - 2 : - संसाधनों के दोहन के लिए कम अवधि के उद्देश्य के परियोजना के क्या लाभ हो सकते हैं?

Answer - 2 : - संसाधनों के दोहन के लिए कम अवधि वाली परियोजनाएँ वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं। इससे तत्काल भोजन, पानी तथा ऊर्जा की पूर्ति होती है, परंतु यह परियोजना पर्यावरण को क्षति पहुँचा सकती है।

Question - 3 : - यह लाभ, लंबी अवधि को ध्यान में रखकर बनाई गई परियोजनाओं के लाभ से किस प्रकार भिन्न है?

Answer - 3 : -  लंबी अवधि को ध्यान में रखकर बनाई गई परियोजनाओं का उद्देश्य संपोषित विकास तथा पर्यावरण संरक्षण की संकल्पना पर आधारित है। संपोषित विकास में मनुष्य की वर्तमान आधारभूत आवश्यकताओं के साथ-साथ भावी संतति के लिए संसाधनों का संरक्षण भी निहित होता है। प्रदूषण नियंत्रण पर भी ध्यान रखा जाता है।

Question - 4 : - क्या आपके विचार में संसाधनों का समान वितरण होना चाहिए? संसाधनों के समान वितरण के विरुद्ध कौन-कौन सी ताकतें कार्य कर सकती हैं?

Answer - 4 : - हाँ, संसाधनों का समान वितरण होना चाहिए ताकि प्रत्येक व्यक्ति को इसका लाभ मिले, चाहे वे अमीर हों या गरीब। सभी को सस्ते तथा सुगम तरीके से संसाधन उपलब्ध हो सकें। संसाधनों के समान वितरण के विरुद्ध कुछ मुट्ठीभर अमीर एवं ताकतवर लोग हैं, जो इसका दोहन अपने निजी लाभ के लिए करना चाहते हैं।

Question - 5 : - हमें वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण क्यों करना चाहिए?

Answer - 5 : -

वनों का संरक्षण आवश्यक है क्योंकि यह हमारे लिए अनेक प्रकार से उपयोगी है

  1. वनों से हमें इमारती लकड़ी (टिम्बर), गोंद, कागज़, लाख, दवाई तथा खेल के उद्योगों को कच्चे माल प्राप्त होते हैं।
  2. वन मृदा अपरदन (soil erosion) तथा बाढ़ (flood) को रोकने में सहायता करता है।
  3. जलचक्र बनाए रखने तथा वर्षा कराने में वन की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।
  4. वन प्राकृतिक रूप से जंगली जानवरों, पक्षियों आदि को निवास स्थान (habital) प्रदान करता है।
  5. जैव विविधता तथा पर्यावरण संतुलन के लिए वनों का योगदान महत्त्वपूर्ण होता है।
वन्य जीव संरक्षण आवश्यक है क्योंकि-

  1. पर्यावरण संतुलन कायम करता है।
  2. जंगली मांसाहारी जानवर शाकाहारी जानवरों को खाते हैं, जिससे घास एवं छोटे पौधों का अस्तित्व कायम रहता है तथा वन एवं वनस्पति के रहने से पर्याप्त वर्षा होती है।
  3. जंगलों को साफ़ रखने तथा बीजों को एक जगह से दूसरी जगह तक ले जाने में सहायता करता है, जिससे नए पौधे वृद्धि करते हैं।
  4. घास चरने से भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती है।
  5. विभिन्न स्पीशीज़ के जीव-जंतुओं से जैव विविधता आती है, जो पारिस्थितिक स्थायित्व के लिए जरूरी होता है।

Question - 6 : - वनों के संरक्षण के लिए कुछ उपाय सुझाइए।

Answer - 6 : -

वनों के संरक्षण के कुछ उपाय निम्न हैं –

  1. टिम्बर तथा जलावन की लकड़ी के लिए पेड़ों की कटाई पर रोक लगा देनी चाहिए तथा इसे एक दंडनीय अपराध के अंतर्गत लाना चाहिए।
  2. जंगलों में लगने वाले आग को रोकने तथा नियंत्रित करने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए।
  3. स्थानीय समुदायों को जंगलों के संरक्षण के लिए शामिल करना चाहिए। इससे उन्हें रोजगार भी मिलेगा तथा वनों का संरक्षण भी होगा।
  4. स्टेकहोल्डरों (दावेदारों) को वनों के संरक्षण के प्रति जिम्मेदारीपूर्वक आगे आना चाहिए।
  5. राष्ट्रीय उद्यान एवं वनों में भेड़ एवं अन्य जानवरों को चराने (grazing) पर रोक लगानी चाहिए।
  6. अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिए।
  7. जीवाश्म ईंधन का कम से कम उपयोग करें।

Question - 7 : - अपने निवास क्षेत्र के आस-पास जल संग्रहण की परंपरागत पद्धति का पता लगाइए।

Answer - 7 : -

भारत वर्ष के विभिन्न राज्यों में जल संग्रहण की पद्धति (तरीका) भिन्न-भिन्न होती है। यहाँ कुछ राज्यों की पद्धतियाँ निम्न हैं

  1. महाराष्ट्र – बंधारस एवं ताल
  2. कर्नाटक, – कट्टा
  3. बिहार – अहार तथा पाइन
  4. MP और UP – बंधिस
  5. हिमाचल प्रदेश – कुल्ह
  6. राजस्थान – खादिन, बड़े पात्र, एवं नाड़ी
  7. दिल्ली – बावड़ी तथा तालाब
  8. जम्मू के काँदी क्षेत्र में – तालाब
  9. केरल – सुरंगम।
  10. तमिलनाडु – एरिस (Tank)

Question - 8 : - इस पद्धति की पेय जल व्यवस्था (पर्वतीय क्षेत्रों में, मैदानी क्षेत्र अथवा पठार क्षेत्र) से तुलना कीजिए।

Answer - 8 : - पर्वतीय क्षेत्रों में जल व्यवस्था मैदानी क्षेत्रों से बिलकुल भिन्न होती है। उदाहरण के लिए, हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में नहर सिंचाई की स्थानीय प्रणाली (व्यवस्था) का विकास हुआ जिसे कुल्ह कहा जाता है। झरनों से बहने वाले जल को मानव-निर्मित छोटी-छोटी नालियों से पहाड़ी पर स्थित निचले गाँवों तक ले जाया जाता है। कूल्हों में बहने वाले पानी का प्रबंधन गाँवों के निवासियों की आपसी सहमति से किया जाता है। इस व्यवस्था के अंतर्गत कृषि के मौसम में जल सबसे दूरस्थ गाँव को दिया जाता है। फिर उत्तरोत्तर ऊँचाई पर स्थित गाँव उस जल का उपयोग करते हैं। परंतु समतल (मैदानी) भूभाग में जल संग्रहण चेक डैम’ तलाबों, ताल तथा बंधिस में किया जाता है

Question - 9 : - अपने क्षेत्र में जल के स्रोत का पता लगाइए। क्या इस स्रोत से प्राप्त जल उस क्षेत्र के सभी निवासियों को उपलब्ध है?

Answer - 9 : -

हमारे क्षेत्र में जले के मुख्य स्रोत हैं
(i) भौमजल या भूमिगत जल
(ii) जल बोर्ड द्वारा आपूर्तित जल (ground water)
नहीं, गर्मी के दिनों में पानी की कमी हो जाती है तथा सभी लोगों को जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पाता है, क्योंकि गर्मियों में भौमजल का स्तर नीचे खिसक जाता है तथा नदियाँ सूख जाती हैं। इन्हीं स्रोतों से जल बोर्डों को भी जल प्राप्त होते हैं।

Question - 10 : - अपने घर को पर्यावरण-मित्र बनाने के लिए आप उसमें कौन-कौन से परिवर्तन सुझा सकते हैं?

Answer - 10 : -

अपने घर को पर्यावरण-मित्र बनाने के लिए हम तीन R का प्रयोग करेंगे।

  1. कम उपयोग (Reduce) – इसका अर्थ है कि आपको कम से कम वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए; जैसे – बिजली के पंखे एवं बल्ब का स्विच बंद कर देना, खराब नल की मरम्मत करना, ताकि जल व्यर्थ न टपके आदि।
  2. पुनः चक्रण (Recycle) – इसका अर्थ है कि आपको प्लास्टिक, कागज़, काँच, धातु की वस्तुओं को कचरे के साथ नहीं फेंकना चाहिए, बल्कि पुनः चक्रण के लिए देना चाहिए।
  3. पुनः उपयोग (Reuse) – यह पुन:चक्रण से भी अच्छा तरीका है क्योंकि उसमें भी कुछ ऊर्जा व्यय होती है। यह एक तरीका है, जिसमें किसी वस्तु का उपयोग बार-बार किया जाता है। जैसे-लिफाफों को फेंकने की अपेक्षा फिर से उपयोग करना, प्लास्टिक की बोतलें, डिब्बों का उपयोग रसोई में करना, खराब बाल्टी से गमला बनाना, बोतलों तथा डिब्बों से कलमदान एवं सजावटी सामान बनाना इत्यादि।
उपर्युक्त तरीकों के अलावा भी कुछ तरीके निम्न हैं
  1. सौर ऊर्जा का उपयोग करना; जैसे-सौर जल ऊष्मक, सौर कुकर सौर पैनल इत्यादि।
  2. बल्ब के स्थान पर CFLs का उपयोग करना।
  3. अपने घर के आस-पास जल संग्रह नहीं होने दें तथा कूड़ा-कचरा सड़क के किनारे न फेकें।

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