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Chapter 6 पुष्पी पादपों का शारीर (Anatomy of Flowering Plants) Solutions

Question - 1 : - विभिन्न प्रकार के मेरिस्टेम की स्थिति तथा कार्य बताइए।

Answer - 1 : -

1. शीर्षस्थ विभज्योतक :
ये मुख्य रूप से जड़ व तने के शीर्षों पर तथा पत्तियों के अग्रों पर मिलते हैं जहाँ ये नई-नई कोशिकाएँ बनाते रहते हैं।
 2. अन्तर्वेशी विभज्योतक :
यह शीर्षस्थ विभज्योतक का अलग होकर छूटा हुआ भाग होता है। जो स्थाई ऊतकों में परिवर्तित न होकर उनके मध्य में छूट जाता है। घासों के पर्यों के आधारों में, पोदीने के तने की पर्व सन्धियों के नीचे यह ऊतक पाया जाता है। इनकी कोशिकाओं में विभाजन के फलस्वरूप पौधों की लम्बाई में वृद्धि होती है।
3. पाश्र्व विभज्योतक :
पौधों में इस ऊतक की स्थिति पार्श्व में होती है इसीलिए इसे पार्श्व विभज्योतक कहते हैं। इनकी कोशिकाओं में विभाजन अरीय दिशा में होता है। इनके
उदाहरण :
पूलीय कैम्बियम व कॉर्क कैम्बियम हैं।

Question - 2 : - कॉर्क कैम्बियम ऊतकों से बनता है जो कॉर्क बनाते हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? वर्णन करो।

Answer - 2 : - हाँ। हम इस कथन से सहमत हैं कि कॉर्क कैम्बियम ऊतकों से बनता है जो कॉर्क बनाते हैं। ये पार्श्व विभज्योतकों की कोशिकाओं के अरीय दिशा में विभाजन के फलस्वरूप बनता है।

Question - 3 : - चित्रों की सहायता से काष्ठीय एन्जियोस्पर्म के तने में द्वितीयक वृद्धि के प्रक्रम का वर्णन कीजिए इसकी क्या सार्थकता है?

Answer - 3 : -

द्वितीयक वृद्धि
शीर्षस्थ विभज्योतक की कोशिकाओं के विभाजन, विभेदन और परिवर्द्धन के फलस्वरूप प्राथमिक ऊतकों का निर्माण होता है। अत: शीर्षस्थ विभज्योतक के कारण पौधे की लम्बाई में वृद्धि होती है। इसे प्राथमिक वृद्धि कहते हैं। द्विबीजपत्री तथा जिम्नोस्पर्स आदि काष्ठीय पौधों में पार्श्व विभज्योतक के कारण तने तथा जड़ की मोटाई में वृद्धि होती है। इस प्रकार मोटाई में होने वाली वृद्धि को द्वितीयक वृद्धि (secondary growth) कहते हैं। जाइलम और फ्लोएम के मध्य विभज्योतक को संवहन एधा (vascular cambium) तथा वल्कुट या परिरम्भ  में विभज्योतक को कॉर्क एधा (cork cambium) कहते हैं।
द्वितीयक वृद्धि-द्विबीजपत्री तना
द्वितीयक वृद्धि संवहन एधा (vascular cambium) तथा कॉर्क एधा (cork cambium) की क्रियाशीलता के कारण होती है।
संवहन एधा की क्रियाशीलता 
द्विबीजपत्री तने में संवहन बण्डल वर्षी (open) होते हैं।  संवहन बण्डलों के जाईलम तथा फ्लोएम के मध्य अन्तःपूलीय एधा (intrafascicular cambium) होती है। मज्जा रश्मियों की मृदूतकीय कोशिकाएँ जो अन्त:पूलीय एधा के मध्य स्थित होती हैं, विभज्योतकी होकर आन्तरपूलीय एधा (interfascicular cambium) बनाती हैं। पूलीय तथा आन्तरपूलीय एधा मिलकर संवहन एधा का घेरा बनाती हैं।
संवहन एधा वलय (vascular cambium ring)
की कोशिकाएँ तने की परिधि के समानान्तर तल अर्थात् स्पर्शरेखीय तल (tangential plane) में ही विभाजित होती हैं। इस प्रकार प्रत्येक कोशिका के विभाजन से जो नई कोशिकाएँ बनती हैं उनमें से केवल एक जाइलम या फ्लोएम की कोशिका में रूपान्तरित हो जाती है, जबकि दूसरी कोशिका विभाजनशील (meristematic) बनी रहती है। परिधि की ओर बनने वाली कोशिकाएँ फ्लोएम के तत्त्वों में तथा केन्द्र की ओर बनने वाली कोशिकाएँ जाइलम के तत्त्वों में परिवद्धित हो जाती हैं। बाद में बनने वाला संवहन ऊतक क्रमशः द्वितीयक जाइलम (secondary xylem) तथा द्वितीयक फ्लोएम (secondary phloem) कहलाता है। ये संरचना तथा कार्य में प्राथमिक जाइलम तथा फ्लोएम के समान होते हैं।
कॉर्क एधा की क्रियाशीलता
संवहन एधा की क्रियाशीलता से बने द्वितीयक ऊतक पुराने ऊतकों पर दबाव डालते हैं जिसके कारण भीतरी (केन्द्र की ओर उपस्थित) प्राथमिक जाइलम अन्दर की ओर दब जाता है। इसके साथ ही परिधि की ओर स्थित प्राथमिक फ्लोएम नष्ट हो जाता है। इससे पहले कि बाह्य त्वचा (epidermis) की कोशिकाएँ एक निश्चित सीमा तक खिंचने के बाद टूट-फूट जाएँ, अधस्त्वचा (hypodermis) के अन्दर की कुछ मृदूतकीय कोशिकाएँ विभज्योतक (meristem) होकर कॉर्क एधा (cork cambium) बनाती हैं। कॉर्क एधा कभी-कभी वल्कुट, अन्तस्त्वचा, परिरम्भ (pericycle) आदि से बनती है। कॉर्क एधा तने की परिधि के समानान्तर विभाजित होकर बाहर की ओर सुबेरिनयुक्त (suberized) कॉर्क या फेलम (cork or phellem) का निर्माण करती है। यह तने के अन्दर के भीतरी ऊतकों की सुरक्षा करती है। कॉर्क एधा से केन्द्र की ओर बनने वाली मृदूतकीय (parenchymatous), स्थूलकोणीय अथवा दृढ़ोतकी कोशिकाएँ द्वितीयक वल्कुट (phelloderm) का निर्माण करती हैं। कॉर्क एधा से बने फेलम तथा फेलोडर्म को पेरीडर्म (periderm) कहते हैं। पेरीडर्म में स्थान-स्थान पर गैस विनिमय के लिए वातरन्ध्र (lenticels) बन जाते हैं। द्वितीयक जाइलम वसन्त काष्ठ तथा शरद् काष्ठ में भिन्नत होता है। इसके फलस्वरूप कुछ पौधों में स्पष्ट वार्षिक वलय बनते हैं।

Question - 4 : -
निम्नलिखित में विभेद कीजिए
(अ) टैकीड तथा वाहिका
(ब) पैरेन्काइमा तथा कॉलेन्काइमा
(स) रसदारु तथा अन्तःकाष्ठ
(द) खुला तथा बन्द संवहन बण्डल।

Answer - 4 : -

(अ) टैकीड तथा वाहिका में अन्तर
(ब)
पैरेन्काइमा (मृदूतक) तथा कॉलेन्काइमा (स्थूलकोण ऊतक) में अन्तर
(स)
रसदारु तथा अन्तःकाष्ठ में अन्तर
(द)
खुले तथा बन्द संवहन बण्डल में अन्तर
 

Question - 5 : -
निम्नलिखित में शारीर के आधर पर अन्तर कीजिए
(अ) एकबीजपत्री मूल तथा द्विबीजपत्री मूल
(ब) एकबीजपत्री तना तथा द्विबीजपत्री तना।

Answer - 5 : -

(अ)
एकबीजपत्री मूल तथा द्विबीजपत्री मूल में अन्तर
 (ब)
एकबीजपत्री तने तथा द्विबीजपत्री तने में अन्तर ऊतक एकबीजपत्री तना
 

Question - 6 : - आप एक शैशव तने की अनुप्रस्थं काट का सूक्ष्मदर्शी से अवलोकन कीजिए। आप कैसे पता करेंगे कि यह एकबीजपत्री तना है अथवा द्विबीजपत्री तना है? इसके कारण बताइए।

Answer - 6 : -

शैशव तने की अनुप्रस्थ काट का सूक्ष्मदर्शीय अवलोकन करके निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर एकबीजपत्री या द्विबीजपत्री तने की पहचान करते हैं
(क)
  1. तने के आन्तरिक आकारिकी लक्षण
  2. बाह्य त्वचा पर उपचर्म (cuticle), रन्ध्र (stomata) तथा बहुकोशीय रोम पाए जाते हैं।
  3. अधस्त्वचा (hypodermis) उपस्थित होती है।
  4. अन्तस्त्वचा प्रायः अनुपस्थित या अल्पविकसित होती है।
  5. परिरम्भ (pericycle) प्रायः बहुस्तरीय होता है।
  6. संवहन बण्डल संयुक्त (conjoint), बहि:फ्लोएमी (collateral) या उभयफ्लोएमी (bicollateral) होते हैं।
  7. प्रोटोजाइलम एण्डार्क (endarch) होता है।
(ख)
एकबीजपत्री तने के आन्तरिक आकारिकी लक्षण
  1. बाह्यत्वचा पर बहुकोशिकीय रोम अनुपस्थित होते हैं।
  2. अधस्त्वचा दृढ़ोतक (sclerenchymatous) होती है।
  3. भरण ऊतक (ground tissue) वल्कुट, अन्तस्त्वचा, परिरम्भ तथा मज्जा में अविभेदित होता है।
  4. संवहन बण्डल भरण ऊतक में बिखरे रहते हैं।
  5. संवहन बण्डल संयुक्त, बहि:फ्लोएमी तथा अवर्थी (closed) होते हैं।
  6. संवहन बण्डल चारों ओर से दृढ़ोतक से बनी बण्डल अच्छद से घिरे होते हैं।
  7. जाइलम वाहिकाएँ (vessels) ‘V’ या ‘Y’ क्रम में व्यवस्थित रहती हैं।
(ग)
द्विबीजपत्री तने के आन्तरिक आकारिकी लक्षण
  1. बाह्य त्वचा पर बहुकोशिकीय रोम पाए जाते हैं।
  2. अधस्त्वचा (hypodermis) स्थूलकोण ऊतक से बनी होती है।
  3. संवहन बण्डल एक या दो घेरों में व्यवस्थित होते हैं।
  4. भरण ऊतक वल्कुट, अन्तस्त्वचा, परिरम्भ, मज्जा तथा मज्जा रश्मियों में विभेदित होता है।
  5. संवहन बण्डल संयुक्त, बहि:फ्लोएमी या उभयफ्लोएमी और वर्धा (open) होते हैं।
  6. जाइलम वाहिकाएँ रेखीय (linear) क्रम में व्यवस्थित होती हैं।

Question - 7 : -
सूक्ष्मदर्शी, किसी पौधे के भाग की अनुप्रस्थ काट में निम्नलिखित शारीर रचनाएँ दिखाती है
(अ) संवहन बण्डल संयुक्त, फैले हुए तथा उसके चारों ओर स्क्लेरेन्काइमी आच्छद हैं।
(ब) फ्लोएम पैरेन्काइमा नहीं है।
आप कैसे पहचानोगे कि यह किसका है?

Answer - 7 : - एकबीजपत्री तने की आन्तरिक आकारिकी या शारीर में संवहन बण्डल भरण ऊतक में बिखरे रहते हैं। संवहन बण्डल संयुक्त तथा अवर्थी होते हैं। संवहन बण्डल के चारों ओर स्क्लेरेन्काइमी बण्डल आच्छद (bundle sheath) होती है। फ्लोएम में फ्लोएम मृदूतक का अभाव होता है। अत: सूक्ष्मदर्शी में प्रदर्शित पौधे का भाग एकबीजपत्री तना है।

Question - 8 : - जाइलम तथा फ्लोएम को जटिल ऊतक क्यों कहते हैं?

Answer - 8 : - जाइलम तथा फ्लोएम को जटिल ऊतक इसलिए कहते हैं क्योंकि ये एक से अधिक प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बनते हैं। सभी कोशिकाएँ मिलकर एक इकाई के रूप में विभाजित होकर कार्य करती हैं।

Question - 9 : - रन्ध्रीतन्त्र क्या है? रन्ध्र की रचना का वर्णन करो और इसका नामांकित चित्र भी बनाओ।

Answer - 9 : - रन्ध्र (Stomata) ऐसी रचनाएँ हैं, जो पत्तियों की बाह्यत्वचा पर पाये जाते हैं। रन्ध्र वाष्पोत्सर्जन तथा गैसों के विनिमय को नियमित करते हैं। प्रत्येक रन्ध्र (stoma= एकवचन) में सेम के आकार की दो कोशिकाएँ होती हैं जिन्हें द्वार कोशिकाएँ (guard cells) कहते हैं। एकबीजपत्री पौधों में द्वार कोशिकाएँ डम्बलाकार होती हैं। द्वार कोशिका की बाहरी भित्ति पतली तथा आन्तरिक भित्ति मोटी होती है। द्वार कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट होता है और यह रन्ध्र के खुलने तथा बंद होने के क्रम को नियमित करता है। कभी-कभी कुछ बाह्यत्वचीय कोशिकाएँ भी रन्ध्र के साथ लगी रहती हैं, इन्हें उप कोशिकाएँ (accessory cells) कहते हैं। रन्ध्रीय छिद्र, द्वारकोशिका तथा सहायक कोशिकाएँ मिलकर रन्ध्री तन्त्र (stomatal system) का निर्माण करती हैं।

Question - 10 : - पुष्पी पादपों में तीन मूलभूत ऊतक तंत्र बताओ। प्रत्येक तंत्र के ऊतक बताओ।

Answer - 10 : -

पुष्पी पादपों में तीन मूलभूत ऊतक तंत्र निम्नवत् हैं
1. बाह्यत्वचीय ऊतक तंत्र-मृदूतक।
2. भरण ऊतक तंत्र-पेरेनकाइमा, कोलेनकाइमा तथा स्क्लेरेनकाइमा।
3. संवहन ऊतक तंत्र-जाइलम तथा फ्लोएम।

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