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Chapter 13 अपू के साथ ढाई साल Solutions

Question - 1 : -
पथेर पांचाली फिल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक क्यों चला?

Answer - 1 : -

‘पथेर पांचाली’ फ़िल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक चला। इसके कारण निम्नलिखित थे

(क) लेखक को पैसे का अभाव था। पैसे इकट्ठे होने पर ही वह शूटिंग करता था।
(ख) वह विज्ञापन कंपनी में काम करता था। इसलिए काम से फुर्सत होने पर ही लेखक तथा अन्य कलाकार फिल्म का काम करते थे।
(ग) तकनीक के पिछड़ेपन के कारण पात्र, स्थान, दृश्य आदि की समस्याएँ आ जाती थीं।

Question - 2 : -
अब अगर हम उस जगह बाकी आधे सीन की शूटिंग करते, तो पहले आधे सीन के साथ उसका मेल कैसे बैठता? उसमें से ‘कंटिन्युइटी’ नदारद हो जाती-इस कथन के पीछे क्या भाव है?

Answer - 2 : -

इसके पीछे भाव यह है कि कोई भी फिल्म हमें तभी प्रभावित कर पाती है जब उसमें निरंतरता हो। यदि एक दृश्य में ही एकरूपता नहीं होती तो फिल्म कैसे चल पाती। दर्शक भ्रमित हो जाता है। पथेर पांचाली फ़िल्म में काशफूलों के साथ शूटिंग पूरी करनी थी, परंतु एक सप्ताह के अंतराल में पशु उन्हें खा गए। अत: उसी पृष्ठभूमि में दृश्य चित्रित करने के लिए एक वर्ष तक इंतजार करना पड़ा। यदि यह आधा दृश्य काशफूलों के बिना चित्रित किया जाता तो दृश्य में निरंतरता नहीं बन पाती।

Question - 3 : -
किन दो दृश्यों में दर्शक यह पहचान नहीं पाते कि उनकी शूटिंग में कोई तरकीब अपनाई गई है?

Answer - 3 : -

प्रथम दृश्य-इस दृश्य में ‘भूलो’ नामक कुत्ते को अपू की माँ द्वारा गमले में डाले गए भात को खाते हुए चित्रित करना था, परंतु सूर्य के अस्त होने तथा पैसे खत्म होने के कारण यह दृश्य चित्रित न हो सका। छह महीने बाद लेखक पुन: उस स्थान पर गया तब तक उस कुत्ते की मौत हो चुकी थी। काफी प्रयास के बाद उससे मिलता-जुलता कुत्ता मिला और उसी से भात खाते हुए दृश्य को फ़िल्माया गया। यह दृश्य इतना स्वाभाविक था कि कोई भी दर्शक उसे पहचान नहीं पाया।
दूसरा दृश्य-इस दृश्य में श्रीनिवास नामक व्यक्ति मिठाई वाले की भूमिका निभा रहा था। बीच में शूटिंग रोकनी पड़ी। दोबारा उस स्थान पर जाने से पता चला कि उस व्यक्ति का देहांत हो गया है, फिर लेखक ने उससे मिलते-जुलते व्यक्ति को लेकर बाकी दृश्य फ़िल्माया। पहला श्रीनिवास बाँस वन से बाहर आता है और दूसरा श्रीनिवास कैमरे की ओर पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अंदर जाता है। इस प्रकार इस दृश्य में दर्शक अलग-अलग कलाकारों की पहचान नहीं पाते।

Question - 4 : -
‘भूलो’ की जगह दूसरा कुत्ता क्यों लाया गया? उसने फिल्म के किस दृश्य को पूरा किया?

Answer - 4 : -

भूलो की मृत्यु हो गई थी, इस कारण उससे मिलता-जुलता कुत्ता लाया गया। फ़िल्म का दृश्य इस प्रकार था कि अप्पू की माँ उसे भात खिला रही थी। अपू तीर-कमान से खेलने के लिए उतावला है। भात खाते-खाते वह तीर छोड़ता है तथा उसे लाने के लिए भाग जाता है। माँ भी उसके पीछे दौड़ती है। भूलो कुत्ता वहीं खड़ा सब कुछ देख रहा है। उसका ध्यान भात की थाली की ओर है। यहाँ तक का दृश्य पहले भूलो कुत्ते पर फ़िल्माया गया था। इसके बाद के दृश्य में अपू की माँ बचा हुआ भात गमले में डाल देती है और भूलो वह भात खा जाता है। यह दृश्य दूसरे कुत्ते से पूरा किया गया।

Question - 5 : -
फिल्म में श्रीनिवास की क्या भूमिका थी और उनसे जुड़े बाकी दृश्यों को उनके गुजर जाने के बाद किस प्रकार फिल्माया गया?

Answer - 5 : -

फिल्म में श्रीनिवास की भूमिका मिठाई बेचने वाले की थी। उसके देहांत के बाद उसकी जैसी कद-काठी का व्यक्ति ढूँढ़ा गया। उसका चेहरा अलग था, परंतु शरीर श्रीनिवास जैसा ही था। ऐसे में फ़िल्मकार ने तरकीब लगाई। नया – आदमी कैमरे की तरफ पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अंदर आता है, अत: कोई भी अनुमान नहीं लगा पाता कि यह अलग व्यक्ति है।

Question - 6 : -
बारिश का दृश्य चित्रित करने में क्या मुश्किल आई और उसका समाधान किस प्रकार हुआ?

Answer - 6 : -

फ़िल्मकार के पास पैसे का अभाव था, अत: बारिश के दिनों में शूटिंग नहीं कर सके। अक्टूबर माह तक उनके पास पैसे इकट्ठे हुए तो बरसात के दिन समाप्त हो चुके थे। शरद ऋतु में बारिश होना भाग्य पर निर्भर था। लेखक हर रोज अपनी टीम के साथ गाँव में जाकर बैठे रहते और बादलों की ओर टकटकी लगाकर देखते रहते। एक दिन उनकी इच्छा पूरी हो गई। अचानक बादल छा गए और धुआँधार बारिश होने लगी। फिल्मकार ने इस बारिश का पूरा फायदा उठाया और दुर्गा और अपू का बारिश में भीगने वाला दृश्य शूट कर लिया। इस बरसात में भीगने से दोनों बच्चों को ठंड लग गई, परंतु दृश्य पूरा हो गया।

Question - 7 : -
किसी फिल्म की शूटिंग करते समय फिल्मकार को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उन्हें सूचीबदध कीजिए।

Answer - 7 : -

किसी फ़िल्म की शूटिंग करते समय फिल्मकार को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है-

(क) धन की कमी।
(ख) कलाकारों का चयन।
(ग) कलाकारों के स्वास्थ्य, मृत्यु आदि की स्थिति।
(घ) पशु-पात्रों के दृश्य की समस्या।
(ङ) बाहरी दृश्यों हेतु लोकेशन ढूँढ़ना।
(च) प्राकृतिक दृश्यों के लिए मौसम पर निर्भरता।
(छ) स्थानीय लोगो का हस्तक्षेप व असहयोग।
(ज) संगीत।
(झ) दृश्यों की निरंतरता हेतु भटकना।

Question - 8 : -
तीन प्रसंगों में राय ने कुछ इस तरह की टिप्पणियाँ की हैं कि दशक पहचान नहीं पाते कि… या फिल्म देखते हुए इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया कि. इत्यादि। ये प्रसंग कौन से हैं, चर्चा करें और इस पर भी विचार करें कि शूटिंग के समय की असलियत फिल्म को देखते समय कैसे छिप जाती है।

Answer - 8 : -

फ़िल्म शूटिंग के समय तीन प्रसंग प्रमुख हैं-

(क) भूलो कुत्ते के स्थान पर दूसरे कुत्ते को भूलो बनाकर प्रस्तुत किया गया।
(ख) एक रेलगाड़ी के दृश्य को तीन रेलगाड़ियों से पूरा किया गया ताकि धुआँ उठने का दृश्य चित्रित किया जा सके। यह दृश्य काफी बड़ा था।
(ग) श्रीनिवास का पात्र निभाने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी। अत: उसके स्थान पर मिलती-जुलती कद-काठी वाले व्यक्ति से मिठाई वाला दृश्य पूरा करवाया गया। हालाँकि उसकी पीठ दिखाकर काम चलाया गया।
शूटिंग के समय अनेक तरह की दिक्कतें आती हैं, परंतु निरंतरता बनाए रखने के लिए बनावटी दृश्य डालने पड़ते हैं। दर्शक फ़िल्म के आनंद में डूबा होता है, अत: उसे छोटी-छोटी बारीकियों का पता नहीं चल पाता।

Question - 9 : -
पथेर पांचाली फ़िल्म में इंदिरा ठाकरुन की भूमिका निभाने वाली अस्सी साल की चुन्नीबाला देवी ढाई साल तक काम कर सकीं। यदि आधी फिल्म बनने के बाद चुन्नीबाला देवी की अचानक मृत्यु हो जाती तो सत्यजित राय क्या करते? चर्चा करें।

Answer - 9 : -

यदि इंदिरा ठाकरुन की भूमिका निभाने वाली अस्सी साल की चुन्नीबाला देवी की मृत्यु हो जाती तो सत्यजित राय उससे मिलती-जुलती शक्ल की वृद्धा को ढूँढ़ते। यदि वह संभव नहीं हो पाता तो संकेतों के माध्यम से इस फिल्म में उसकी मृत्यु दिखाई जाती। कहानी में बदलाव किया जा सकता था।

Question - 10 : -
पठित पाठ के आधार पर यह कह पाना कहाँ तक उचित है कि फिल्म को सत्यजित राय एक कला-माध्यम के रूप में देखते हैं, व्यावसायिक-माध्यम के रूप में नहीं?

Answer - 10 : -

यह बात पूर्णतया उचित है कि फ़िल्म को सत्यजित राय एक कला-माध्यम के रूप में देखते हैं, व्यावसायिक-माध्यम के रूप में नहीं। वे फिल्मों के दृश्यों के संयोजन में कोई लापरवाही नहीं बरतते। वे दृश्य को पूरा करने के लिए समय का इंतजार करते हैं। काशफूल वाले दृश्य में उन्होंने साल भर इंतजार किया। पैसे की तंगी के कारण वे परेशान हुए, परंतु उन्होंने किसी से पैसा नहीं माँगा। वे स्टूडियो के दृश्य की बजाय प्राकृतिक दृश्य फिल्माते थे। वे कला को साधन मानते थे।

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