Chapter 2 जूझ Solutions
Question - 1 : - ‘जूझ’ शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथा नायक की किसी केंद्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता हैं।
Answer - 1 : -
जूझ का साधारण अर्थ है जूझना अथवा संघर्ष करना। यह उपन्यास अपने नाम की सार्थकता को सिद्ध करता है। उपन्यास का कथानायक भी जीवनभर स्वयं से और अपनी परिस्थितियों से जूझता रहता है। यह शीर्षक कथानायक के संघर्षशील वृत्ति का परिचय देता है। हमारे कथानायक में संघर्ष की भावना है। वह संघर्ष करने के लिए मजबूर है लेकिन उसका यह संघर्ष ही उसे एक दिन पढ़ा-लिखा इंसान बना देता है। इस संघर्ष में भी उसने आत्मविश्वास बनाए रखा है। यद्यपि परिस्थितियाँ उसके विरुद्ध होती हैं तथापि वह अपने आत्मविश्वास के बल इस प्रकार की परिस्थितियों से जूझने में सफल हो जाता है। वास्तव में कथानक की संघर्षशीलता ही उसकी चारित्रिक विशेषता है। उपन्यास के शीर्षक से यही केंद्रीय विशेषता उजागर होती है।
Question - 2 : - स्वय कविता रच लेने का आत्मविश्वास लखक के मन में कैस पैदा हुआ?
Answer - 2 : -
लेखक की पाठशाला में मराठी भाषा के अध्यापक न०बा० सौंदलगेकर कविता के अच्छे रसिक व मर्मज्ञ थे। वे कक्षा में सस्वर कविता-पाठ करते थे तथा लय, छद, गति-यति, आरोह-अवरोह आदि का ज्ञान कराते थे। लेखक इनकी देखकर बहुत प्रभावित हुआ। इससे पहले उसे कवि दूसरे लोक के जीव लगते थे। सौंदलगेकर ने उसे अन्य कवियों के बारे में बताया। वह स्वयं भी कवि थे। इसके बाद आनंद को यह विश्वास हुआ कि कवि उसी की तरह आदमी ही होते हैं। एक बार उसने देखा कि उसके अध्यापक ने अपने घर की मालती लता पर ही कविता लिख दी, तब उसे लगा कि वह अपने आस-पास के दृश्यों पर कविता बना सकता है। इस प्रकार उसके मन में स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास पैदा हुआ।
Question - 3 : - श्री सोंदलगकर के अध्यापन की उन विशषताओं को रेखांकित करें जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई।
Answer - 3 : -
श्री सौंदलगेकर मराठी भाषा के अध्यापक थे। वे मराठी भाषा का अध्यापन बड़े ही सुरुचि ढंग से करवाते थे। उनके पढ़ाने का तरीका सबसे अलग था। पढ़ाते समय वे पूरी तरह पढ़ाई में ही रम जाया करते थे। छंद की बढ़िया चाल और सुरों का ज्ञान उन्हें था। उस पर मीठा गला। वे गा-गाकर कविता पाठ करवाते थे। वे सबसे पहले कविता गाकर सुनाते थे फिरबैठे-बैठे ही अभिनय करते हुए कविता के भावों को ग्रहण करते थे।
Question - 4 : - कविता के प्रति लगाव से पहल और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?
Answer - 4 : -
कविता के प्रति लगाव से पहले लेखक को ढोर चराते हुए, पानी लगाते हुए, दूसरे काम करते हुए अकेलापन बहुत खटकता था। उसे ऐसा लगता था कि कोई-न-कोई हमेशा साथ में होना चाहिए। उसे किसी के साथ बोलते हुए, गपशप करते हुए, हँसी-मजाक करते हुए काम करना अच्छा लगता था। कविता के प्रति लगाव के बाद उसे अकेलेपन से ऊब नहीं होती। अब वह स्वयं से ही खेलना सीख गया। पहले की अपेक्षा अब उसे अकेला रहना अच्छा लगने लगा। इस स्थिति में वह ऊँची आवाज़ में कविता गा सकता था। वह अभिनय भी कर सकता था। वह थुई-थुई करके नाच भी सकता था। इस तरह अब उसे अकेलापन आनंद देने लगा था।
Question - 5 : - आपके खयाल से पढ़ाई-लिखाई के सबध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था या लखक के पिता का2 तक सहित उत्तर दें।
Answer - 5 : -
मेरे खयाल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ताजी राव का रवैया बिलकुल सही था क्योंकि लेखक को पढ़ने की इच्छा थी जिसे दत्ताजी राव ने सही पहचाना। उसकी प्रतिभा के बारे में दत्ताजी ने पूरी तरह जान लिया था। वैसे भी लेखक को पढ़ाने के पीछे दत्ताजी राव का कोई स्वार्थ नहीं था जबकि लेखक के पिता का पढ़ाई-लिखाई के बारे में रवैया बिलकुल गलत था। वास्तव में लेखक का पिता अपने स्वार्थ के लिए अपने बेटे को नहीं पढ़ाना चाहता था। उसे पता था कि यदि उसका बेटा स्कूल जाने लगा तो उसे ऐश करने के लिए समय नहीं मिलेगा। न ही वह टखमाबाई के पास जा सकता था। इसलिए हमें दत्ताजी राव और लेखक का रवैया पढ़ाई के संबंध में बिलकुल ठीक लगता है।
Question - 6 : - दत्ता जी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि झूठ का सहारा न लेना पड़ता तो आगे का घटनाक्रम क्या होता?
Answer - 6 : -
अनुमान लगाएँ। दत्ता जी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि दोनों ने झूठ का सहारा नहीं लिया. होता तो दत्ता जी राव उसके पिता पर दबाव नहीं दे पाते। लेखक पिता द्वारा दिए गए ही काम करता। उसकी पढ़ाई-लिखाई नहीं हो पाती। वह सारा जीवन खेती में ही लगा रहता। इस झूठ के बिना हमें यह प्रेरणादायक कहानी भी नहीं मिल पाती। इस तरह कभी-कभी एक झूठ भी मनुष्य व समाज का विकास करने में सक्षम साबित होता है।
Question - 7 : - पाँचवीं कक्षा में दुबारा पढ़ने आए लखक की किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?’ ‘जूझ’ कहानी के आधार पर लिखिए।
Answer - 7 : -
जो लड़के चौथी पास करके कक्षा में आए थे, लेखक उनमें से गली के दो लड़कों के सिवाय और किसी को जानता तक नहीं था। जिन लड़कों को वह कम अक्ल और अपने से छोटा समझता था, उन्हीं के साथ अब उसे बैठना पड़ रहा था। वह अपनी कक्षा में पुराना विद्यार्थी होकर भी अजनबी बनकर रह गया। पुराने सहपाठी तो उसे सब तरह से जानते-समझते थे, मगर नए लड़कों ने तो उसकी धोती, उसका गमछा, उसका थैला आदि सब चीजों का मजाक उड़ाना आरंभ कर दिया। उसके मन में यह दुख भी था कि इतनी कोशिश करके पढ़ने का अवसर मिला तो उसके आत्मविश्वास में भी कमी आ गई।
Question - 8 : - ‘जूझ’ कहानी में पिता को मनाने के लिए माँ और दत्ता जी राव की सहायता से एक चाल चली गई हैं। क्या ऐसा कहना ठीक है?
Answer - 8 : -
‘जूझ’ कहानी में पिता को मनाने के लिए माँ और दत्ता जी राव की सहायता से एक चाल चली गई है। यह कहना बिलकुल ठीक है। लेखक के पिता उसे पढ़ाना नहीं चाहते थे। वे खुद ऐयाशी करने के लिए बच्चे को खेती के काम में लगाना चाहते थे। पढ़ने की बात करने पर वे जंगली सुअर की तरह गुर्राते थे। उन पर दत्ता जी राव का दबाव ही काम कर सकता था। अत: लेखक की माँ व दत्ता जी राव ने मिलकर उन्हें मानसिक तौर पर घेरा तथा आगे पढ़ने की स्वीकृति ली। यदि यह उपाय नहीं किया जाता तो लेखक कभी शिक्षित नहीं हो पाता।
Question - 9 : - ‘जूझ’ कहानी में चित्रित ग्रामीण जीवन का सांक्षप्त वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
Answer - 9 : -
‘जूझ’ कहानी में ग्रामीण जीवन का यथार्थपरक चित्रण किया गया है। गाँव में किसान, जमींदार आदि कई वर्ग हैं। लेखक स्वयं कृषिकार्य करता है। उसके पिता बाजार में गुड़ के ऊँचे भाव पाने के लिए गन्ने की पेराई जल्दी करा देते हैं। गाँव में पूरा परिवार कृषि-कार्य में लगा रहता है, चाहे बच्चे हों, महिलाएँ हों या वृद्ध। कुछ बड़े जमींदार भी होते हैं जिनका गाँव पर काफी प्रभाव होता है। गाँव में कृषक बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर कम ध्यान देते हैं। ग्रामीण स्कूलों में बच्चों के पास कपड़े भी पर्याप्त नहीं होते। बच्चों को घर व पाठशाला का काम करना पड़ता था।
Question - 10 : - ‘लेखक की माँ उसके पिता की आदतों से वाकिफ थी।”-लेखक की माँ न लेखक का साथ किस प्रकार दिया?
Answer - 10 : -
लेखक की माँ अपने पति के स्वभाव से अच्छी तरह वाकिफ़ थी। वह जानती थी कि वह अपने लड़के को पढ़ाना नहीं चाहता। पढ़ाई की बात से ही वह बरहेला सुअर की तरह गुर्राता है। इसके बावजूद वह लेखक का साथ देती है और दत्ता जी राव के पास जाकर अपने पति के बारे में सारी बातें बताती है। अंत में, वह देसाई को अपने आने की बात पति को न बताने के लिए भी कहती है।