Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक (Coordination Compounds) Solutions
Question - 31 : - [Ni(H2O)6]2+ का विलयन हरा है, परन्तु [Ni(CN)4]2- का विलयन रंगहीन है। समझाइए।
Answer - 31 : -
[Ni(H2O)6]2+ विलयन में निकिल Ni2+ के रूप में स्थित रहता है तथा इसका 3d8 इलेक्ट्रॉनिक विन्यास होता है। इसमें दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं, जो कि दुर्बल जल लिगेण्डों की उपस्थिति में युग्मित नहीं हो पाते हैं। अयुग्मित इलेक्ट्रॉन d – d संक्रमण प्रदर्शित करते हैं जिसमें Ni2+ लाल प्रकाश अवशोषित करता है। इसलिए, संकर पूरक हरा रंग प्रदर्शित करता है।
[Ni(CN)4]2- में भी निकिल Ni2+ आयन के रूप में रहता है। इसका भी 3d8 इलेक्ट्रॉनिक विन्यास होता है, जिसमें दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाये जाते हैं परन्तु प्रबल CN– लिगेण्ड युग्मित हो जाते हैं अतः अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की अनुपस्थिति में d- d संक्रमण नहीं होता है तथा विलयन रंगहीन रहता है।
Question - 32 : - [Fe(CN)6]4- तथा [Fe(H2O)6]2+ के तनु विलयनों के रंग भिन्न होते हैं। क्यों?
Answer - 32 : -
दोनों जटिलों में आयरन की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है। Fe2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d6 है। तथा इसमें चार अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं। [Fe(CN)6]4- में CN– लिगेण्ड्स प्रबल हैं तथा इलेक्ट्रॉनों को युग्मित कर देते हैं जबकि [Fe(H2O)6]2+ में H2O लिगेण्ड्स दुर्बल हैं तथा इलेक्ट्रॉनों को युग्मित करने में असमर्थ होते हैं। अत: अयुग्मित इलेक्ट्रॉन की संख्या में अन्तर के कारण ये जटिल तनु विलयन में भिन्न-भिन्न रंग प्रदर्शित करते हैं।
Question - 33 : - धातु काबनिलों में आबन्ध की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
Answer - 33 : -
धातु कार्बोनिलों में आबन्ध की प्रकृति (Nature of Bonding in Metal Carbonyls) – धातु कार्बोनिलों में निम्नलिखित दो प्रकार के आबन्धन सम्मिलित होते हैं –
- CO के कार्बन से एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म का धातु परमाणु के उचित रिक्त कक्षक में दान। यह एक अप्रत्यक्ष अतिव्यापन है तथा एक सिग्मा M ← C आबन्ध बनाता है।
- π-अतिव्यापन जिसमें पूरित धातु d-कक्षकों से इलेक्ट्रॉनों का CO के रिक्त प्रतिआबन्धन π* आण्विक
कक्षकों में दान निहित होता है। इसके परिणामस्वरूप M → Cπ आबन्ध बनता है। धातु से लिगेण्ड का आबन्ध एक सहक्रियाशीलता का प्रभाव उत्पन्न करता है जो CO व धातु के मध्य आबन्ध को मजबूत बनाता है।
धातु कार्बोनिलों में आबन्धन निम्नवत् प्रदर्शित है –
Question - 34 : - निम्नलिखित संकुलों में केन्द्रीय धातु आयन की ऑक्सीकरण अवस्था, d-कक्षकों का अधिग्रहण एवं उपसहसंयोजन संख्या बतलाइए –
(i) K3[Co(C2O4)3]
(ii) cis-[CrCl2(en)2]Cl
(iii) (NH4)[CoF4]
(iv) [Mn(H2O)6]SO4
Answer - 34 : -
Question - 35 : - निम्नलिखित संकुलों के IUPAC नाम लिखिए तथा ऑक्सीकरण अवस्था, इलेक्ट्रॉनिक विन्यास और उपसहसंयोजन संख्या दर्शाइए। संकुल का त्रिविम रसायन तथा चुम्बकीय आघूर्ण भी बतलाइए –
(i) K[Cr(H2O)2(C2O4)2].3H2O
(ii) [CrCl3(Py)3]
(iii) [Co(NH3)5Cl]Cl2
(iv) Cs[FeC4]
(v) K4[Mn(CN)6]
Answer - 35 : -
Question - 36 : - उपसहसंयोजन यौगिक के विलयन में स्थायित्व से आप क्या समझते हैं? संकुलों के स्थायित्व को प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
Answer - 36 : - विलयन में उपसहसंयोजन यौगिकों को स्थायित्व (Stability of CoordinationCompounds in Solution) – अधिकांश संकुल अत्यधिक स्थायी होते हैं। धातु आयन तथा लिगेण्ड के बीच अन्योन्यक्रिया को लुईस अम्ल-क्षार अभिक्रिया के समान माना जाता है। यदि अन्योन्यक्रिया प्रबल होगी तो बनने वाला संकुल ऊष्मागतिकीय रूप से अत्यधिक स्थायी होगा।
विलयन में संकुल के स्थायित्व का अर्थ है–साम्य अवस्था पर भाग ले रही दो स्पीशीज के मध्य संगुणन की मात्रा का मान। संगुणन के लिए साम्य स्थिरांक (स्थायित्व या विरचन) को परिमाण गुणात्मक रूप से स्थायित्व को प्रकट करता है। इस प्रकार यदि हम निम्न प्रकार की अभिक्रिया को लें –
M + 4L ML
K =
साम्य स्थिरांक का मान जितना अधिक होगा, ML4 की विलयन में मात्रा उतनी ही अधिक होगी। विलयन में मुक्त धातु आयनों का अस्तित्व नगण्य होता है। अत: M सामान्यत: विलायक अणुओं से घिरा होगा जो लिगेण्ड अणुओं, L से प्रतिस्पर्धा करेंगे तथा धीरे-धीरे उनसे प्रतिस्थापित हो जाएँगे।संकुलों के स्थायित्व को प्रभावित करने वाले कारक
(Factors Affecting the Stability of Complexes)
संकुलों को स्थायित्व निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है –
I. केन्द्रीय आयन की प्रकृति (Nature of Central lon)
(i) केन्द्रीय धातु आयन पर आवेश (Charge on centralmetal ion) – सामान्यतया केन्द्रीय आयन पर आवेश घनत्व जितना अधिक होता है, उसके संकुलों का स्थायित्व भी उतना ही अधिक होता है। दूसरे शब्दों में, किसी आयन पर आवेश अधिक तथा आकार छोटा होने पर अर्थात् आयन का आवेश/त्रिज्या अनुपात अधिक होने पर इसके संकुलों का स्थायित्व अधिक होता है। उदाहरणार्थ–Fe2+ आयन की तुलना में Fe3+ आयन उच्च आवेश वहन करते हैं, परन्तु इनके आकार समान होते हैं। इसलिए Fe2+ आयन की तुलना में Fe3+ पर आवेश घनत्व उच्च होता है, इसलिए Fe3+ आयन के संकुल अधिक स्थायी होते हैं।
Fe3+ + 6CN– → [Fe(CN)6]3-;K = 1.2 x 1031
Fe2+ + 6CN– → [Fe(CN)6]4-;K = 1.8 x 106
(ii) धातु आयन का आकार (Size of metal ion) –धातु आयन का आकार घटने पर संकुल का स्थायित्व बढ़ता है। यदि हम द्विसंयोजी धातु आयन पर विचार करें तो इनके संकुलों का स्थायित्व केन्द्रीय धातु आयन की आयनिक त्रिज्या घटने के साथ बढ़ता है।
इसलिए स्थायित्व का क्रम इस प्रकार है –
Mn2+ < Fe2+ < Co2+ 2+ < Cu2+ < Zn2+
यह क्रम इवैग विलयम का स्थायित्व क्रम कहलाता है।
(iii) धातु आयन की विद्युतऋणात्मकता या आवेश वितरण (Electronegativity or Charge distributionof metal ion) – संकुल आयन का स्थायित्व धातु आयन पर इलेक्ट्रॉन आवेश वितरण से भी सम्बन्धित होता है। आरलेण्ड, चैट तथा डेविस के अनुसार धातु आयनों को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है –
(क) वर्ग ‘a’ ग्राही (Class ‘a’ acceptors) – ये पूर्णतया विद्युतधनात्मक धातुएँ होती हैं तथा इनमें वर्ग 1 तथा 2 की धातुएँ सम्मिलित होती हैं। इनके अतिरिक्त आन्तरसंक्रमण धातुएँ तथा संक्रमण श्रेणी के पूर्व सदस्य (वर्ग 3 से 6 तक), जिनमें अक्रिय गैस विन्यास से कुछ इलेक्ट्रॉन अधिक होते हैं, भी इस वर्ग में सम्मिलित होते हैं। ये N, O तथा F दाता परमाणुओं से युक्त लिगेण्डों के साथ अत्यधिक स्थायी उपसहसंयोजक सत्ता बनाते हैं।
(ख) वर्ग ‘b’ ग्राही (Class ‘b’acceptors) – ये बहुत कम विद्युतधनात्मक होते हैं। इनमें भारी धातुएँ; जैसे- Rh, Pd, Ag, Ir, Pt, Au, Hg, Pb आदि, जिनमें भरित d-कक्षक होते हैं, सम्मिलित होती हैं। ये उन लिगेण्डों के साथ स्थायी संकुल बनाती हैं जिनमें N, O तथा F वर्ग के भारी सदस्य दाता परमाणु होते हैं।
(iv) कीलेट प्रभाव (Chelate effect) – स्थायित्व कीलेट वलयों के निर्माण पर भी निर्भर करता है। यदि L एक एकदन्तुर लिगेण्ड तथा L-L द्विदन्तुर लिगेण्ड हो तथा यदि L तथा L-L के दाता परमाणु एक ही तत्व के हों, तब L-L, L को प्रतिस्थापित कर देगा। कीलेशन के कारण यह स्थायित्व कीलेट प्रभाव कहलाता है। 5 तथा 6 सदस्यीय वलयों में कीलेट प्रभाव अधिकतम होता है। सामान्य रूप में वलय संकुल को अधिक स्थायित्व प्रदान करती है।
(v) वृहद्चक्रीय प्रभाव (Macrocyclic effect) – यदि एक बहुदन्तुर लिगेण्ड चक्रीय है तथा कोई अनुपयुक्त त्रिविम प्रभाव नहीं है तो बनने वाला संकुल बिना चक्रीय लिगेण्ड वाले सम्बन्धित संकुल की तुलना में अधिक स्थायी होगी। यह वृहद्चक्रीय प्रभाव कहलाता है।
II. लिगेण्ड की प्रकृति(Nature of Ligand)
(i) क्षारीय सामर्थ्य (Basic strength) –लिगेण्ड जितना अधिक क्षारीय होगा, उतनी ही अधिक सरलता उसे अपने एकाकी इलेक्ट्रॉन-युग्म को दान देने में होगी, इसलिए इससे बनने वाले संकुल उतने ही अधिक स्थायी होंगे। अत: CN– तथा F– आयन एवं NH3, जो प्रबल क्षार हैं, अच्छे लिगेण्ड हैं। तथा अनेक स्थायी संकुल बनाते हैं।
(ii) लिगेण्डों का आकार तथा आवेश (Size and charge of ligands)-ऋणायनी लिगेण्डों के लिए आवेश उच्च तथा आकार छोटा होने पर बनने वाला संकुल अधिक स्थायी होता है। अतः F– अधिक स्थायी संकुल देता है, परन्तु Cl– आयन नहीं।
Question - 37 : - कीलेट प्रभाव से क्या तात्पर्य है? एक उदाहरण दीजिए।
Answer - 37 : - जब कोई बहुदन्तुर लिगेण्ड दो या अधिक दाता परमाणुओं के द्वारा केन्द्रीय धातु आयन से अपने आप को इस प्रकार जोड़ता है कि केन्द्रीय आयन के साथ 5 या 6 सदस्यीय चक्र बनता है, तो यह प्रभाव कीलेट प्रभाव कहलाता है। कीलेट संकर यौगिक को स्थिरता प्रदान करते हैं; जैसे –
Question - 38 : - प्रत्येक का एक उदाहरण देते हुए निम्नलिखित में उपसहसंयोजन यौगिकों की भूमिका की संक्षिप्त विवेचना कीजिए –
1. जैव प्रणालियाँ
2. औषध रसायन
3. विश्लेषणात्मक रसायन
4. धातुओं का निष्कर्षण/धातुकर्म।
या
जैविक निकायों में उपसहसंयोजक यौगिकों के महत्त्व का उल्लेख कीजिए।
Answer - 38 : -
1. जैव प्रणालियाँ (Biological Systems) – उपसहसंयोजन यौगिक जैव तन्त्र में बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। प्रकाश संश्लेषण के लिए उत्तरदायी वर्णक, क्लोरोफिल, मैग्नीशियम का उपसहसंयोजन यौगिक हैं। रक्त का लाल वर्णक हीमोग्लोबिन, जो कि ऑक्सीजन का वाहक है, आयरन का एक उपसहसंयोजन यौगिक है। विटामिन B12 सायनोकोबालऐमीन, प्रतिप्रणाली अरक्तता कारक (antipernicious anaemia factor), कोबाल्ट का एक उपसहसंयोजन यौगिक है। जैविक महत्त्व के अन्य धातु आयन युक्त उपसहसंयोजन यौगिक; जैसे- कार्बोक्सीपेप्टिडेज-A (carboxypeptidase A) तथा कार्बोनिक एनहाइड्रेज (carbonic anhydrase) (जैव प्रणाली के उत्प्रेरक) एन्जाइम हैं।
2. औषध रसायन (Medicinal Chemistry) – औषधं रसायन में कीलेट चिकित्सा के उपयोग में अभिरुचि बढ़ रही है। इसका एक उदाहरण है-पौधे/जीव-जन्तु निकायों में विषैले अनुपात में विद्यमान धातुओं के द्वारा उत्पन्न समस्याओं का उपचार। इस प्रकार कॉपर तथा आयरन की अधिकता को D-पेनिसिलऐमीन तथा डेसफेरीऑक्सिम B लिगेण्डों के साथ उपसहसंयोजन यौगिक बनाकर दूर किया जाता है। EDTA को लेड की विषाक्तता के उपचार में प्रयुक्त किया जाता है। प्लैटिनम के कुछ उपसहसंयोजन यौगिक ट्यूमर वृद्धि को प्रभावी रूप से रोकते हैं। उदाहरण हैं- समपक्ष-प्लैटिन (cis-platin) तथा सम्बन्धित यौगिक
3. विश्लेषणात्मक रसायन (AnalyticalChemistry) – गुणात्मक (qualitative) तथा मात्रात्मक (quantitative) रासायनिक विश्लेषणों में उपसहसंयोजन यौगिकों के अनेक उपयोग हैं। अनेक परिचित रंगीन अभिक्रियाएँ जिनमें धातु आयनों के साथ अनेक लिगेण्डों (विशेष रूप से कीलेट लिगेण्ड) की उपसहसंयोजन सत्ता बनने के कारण रंग उत्पन्न होता है, चिरसम्मत (classical) तथा यान्त्रिक (instrumental) विधियों द्वारा धातु आयनों की पहचान व उनके मात्रात्मक आकलन का आधार हैं। ऐसे अभिकर्मकों के उदाहरण हैं- EDTA, DMG (डाइमेथिल ग्लाइऑक्सिम), α- नाइट्रोसो- β- नैफ्थॉल आदि।
4. धातुओं का निष्कर्षण/धातुकर्म (Extraction of the Metals/Metallurgy) – धातुओं की कुछ प्रमुख निष्कर्षण विधियों में; जैसे- सिल्वर तथा गोल्ड के लिए, संकुल विरचन का उपयोग होता, है। उदाहरणार्थ-ऑक्सीजन तथा जल की उपस्थिति में गोल्ड, सायनाइड आयन से संयोजित होकर जलीय विलयन में उपसहसंयोजन सत्ता, [Au(CN)2]– बनाता है। इस विलयन में जिंक मिलाकर गोल्ड को पृथक् किया जा सकता है।
Question - 39 : - संकुल [Co(NH3)6]Cl2 से विलयन में कितने आयन उत्पन्न होंगे?
- 6
- 4
- 3
- 2
Answer - 39 : -
3. 3 आयन
[Co(NH3)6]Cl2 → [Co(NH3)6]2+ +2Cl–
Question - 40 : - निम्नलिखित आयनों में से किसके चुम्बकीय आघूर्ण का मान सर्वाधिक होगा?
- [Cr(H2O)6]3+
- [Fe(H2O)6]2+
- [Zn(H2O)6]2+
Answer - 40 : -
[Fe(H2O)6]2+ का सबसे अधिक चुम्बकीय आघूर्ण है क्योंकि
- Cr3+ में 3 अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं, जबकि
- में Fe2+ में चार अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं तथा
- Zn2+ में कोई अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं है।