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Chapter 1 फ्रांसीसी क्रान्ति Solutions

Question - 1 : -
फ्रांस में क्रान्ति की शुरुआत किन परिस्थितियों में हुई?

Answer - 1 : -

फ्रांस में क्रान्ति की शुरुआत निम्न परिस्थितियों में हुई-
1. राजनैतिक कारण-तृतीय स्टेट के प्रतिनिधियों ने मिराब्यो एवं आबेसिए के नेतृत्व में स्वयं को राष्ट्रीय सभा घोषित कर इस बात की शपथ ली कि जब तक वे लोग सम्राट की शक्तियों को सीमित करने तथा अन्यायपूर्ण विशेषाधिकारों वाली सामंतवादी प्रथा को समाप्त करने वाला संविधान नहीं बना लेंगे तब तक राष्ट्रीय सभा को भंग नहीं करेंगे। राष्ट्रीय सभा जिस समय संविधान बनाने में व्यस्त थी, उस समय सामंतों को विस्थापित करने के लिए अनेक स्थानीय विद्रोह हुए। अपने पिता की मृत्यु के बाद सन् 1774 ई. में ‘लुईस सोलहवाँ ‘ फ्रांस का राजा बना था। वह एक सज्जन परन्तु अयोग्य शासक था। राजा पर उसकी पत्नी ‘मैरी एंटोइनेट’ को भारी प्रभाव था।

प्रांतीय प्रशासन दो भागों में बँटा हुआ था जिन्हें क्रमशः ‘गवर्नमेंट’ तथा ‘जनरेलिटी’ के नामों से जाना जाता था। फ्रांसीसी शासन में एकरूपता का अभाव था। देश के भिन्न-भिन्न भागों में भिन्न-भिन्न प्रकार के कानून लागू थे। इसी बीच खाद्य संकट गहरा गया तथा जनसाधारण का गुस्सा गलियों में फूट पड़ा। 14 जुलाई को सम्राट ने सैन्य टुकड़ियों को पेरिस में प्रवेश करने के आदेश दिये। इसके प्रत्युत्तर में सैकड़ों क्रुद्ध पुरुषों एवं महिलाओं ने स्वयं की सशस्त्र टुकड़ियाँ बना लीं। ऐसे ही लोगों की एक सेना बास्तील किले की जेल (सम्राट की निरंकुश शक्ति का प्रतीक) में जा घुसी और उसको नष्ट कर दिया। इस प्रकार फ्रांसीसी क्रांति का प्रारंभ हुआ और व्यवस्था बदलने को आतुर लोग क्रांति में शामिल हो गए।

2. फ्रांस की आर्थिक परिस्थितियाँ-बूळू वंश का लुई सोलहवाँ 1774 में फ्रांस का राजा बना। उसने ऑस्ट्रिया की राजकुमारी मैरी एंटोइनेट से विवाह किया। उसके सत्तासीन होने के समय फ्रांस का कोष रिक्त था। राज्य पर कर्ज का बोझ निरंतर बढ़ रहा था। राज्य की कर व्यवस्था असमानता और पक्षपात के सिद्धांत पर निर्मित होने के कारण अत्यंत दूषित थी। कर दो प्रकार के थे- प्रत्यक्ष कर (टाइल) और धार्मिक कर (टाइद)। पादरी वर्ग और कुलीन वर्ग जिनका फ्रांस की लगभग 40% भूमि पर स्वामित्व था, प्रत्यक्ष करों से पूर्ण मुक्त थे तथा अप्रत्यक्ष करों से भी प्रायः मुक्त थे। ऐसे समय में अमेरिका के ब्रिटिश उपनिवेशों के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के सरकारी निर्णय ने स्थिति को और अधिक गंभीर बना दिया।

सेना का रखरखाव, दरबार का खर्च, सरकारी कार्यालयों या विश्वविद्यालयों को चलाने जैसे अपने नियमित खर्च निपटाने के लिए सरकार कर बढ़ाने पर बाध्य हो गई। कर बढ़ाने के प्रस्ताव को पारित करने के लिए फ्रांस के सम्राट लुई सोलहवें ने 5 मई, 1789 ई. को एस्टेट के जनरल की सभा बुलाई। प्रत्येक एस्टेट को सभा में एक वोट डालने की अनुमति दी गई। तृतीय एस्टेट ने इस अन्यायपूर्ण प्रस्ताव का विरोध किया। उन्होंने सुझाव रखा कि प्रत्येक सदस्य का एक वोट होना चाहिए। सम्राट ने इंस अपील को ठुकरा दिया तथा तृतीय एस्टेट के प्रतिनिधि सदस्य विरोधस्वरूप सभा से वाक आउट कर गए। फ्रांसीसी जनसंख्या में भारी बढ़ोत्तरी के कारण इस समय खाद्यान्न की माँग बहुत बढ़ गई थी। परिणामस्वरूप, पावरोटी (अधिकतर लोगों के भोजन का मुख्य भाग) के भाव बढ़ गए। बढ़ती कीमतों व अपर्याप्त मजदूरी के कारण अधिकतर जनसंख्या जीविका के आधारभूत साधन भी वहन नहीं कर सकती थी। इससे जीविका संकट उत्पन्न हो गया तथा अमीर और गरीब के मध्य दूरी बढ़ गई।

3. दार्शनिकों का योगदान- इस काल में फ्रांसीसी समाज में मांटेस्क्यू, वोल्टेयर तथा रूसो आदि विचारकों के विचारों के कारण तर्कवाद का प्रसार आरम्भ हुआ। इन विचारकों ने अपने साहित्य द्वारा पादरियों, चर्च की सत्ता तथा सामंती व्यवस्था की जड़ों को हिला दिया। अठारहवीं सदी के दौरान मध्यम वर्ग शिक्षित एवं धनी बन कर उभरा। सामंतवादी समाज द्वारा प्रचारित विशेषाधिकार प्रणाली उनके हितों के विरुद्ध थी। शिक्षित होने के कारण इस वर्ग के सदस्यों की पहुँच फ्रांसीसी एवं अंग्रेज राजनैतिक एवं सामाजिक दार्शनिकों द्वारा सुझाए गए समानता एवं आजादी के विभिन्न-विचारों तक थी। ये विचार सैलून एवं कॉफीघरों में जनसाधारण के बीच चर्चा तथा वाद-विवाद के फलस्वरूप पुस्तकों एवं अखबारों के द्वारा लोकप्रिय हो गए। दार्शनिकों के विचारों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। जॉन लॉक, जीन जैक्स रूसो एवं मांटेस्क्यू ने राजा के दैवीय सिद्धान्त को नकार दिया।

4. सामाजिक परिस्थितियाँ- फ्रांस में सामंतवादी प्रथा प्रचलित थी, जो तीन वर्गों में प्रचलित थी। इन वर्गों को एस्टेट कहते थे। प्रथम एस्टेट में पादरी वर्ग आता था। इनका देश की 10% भूमि पर अधिकार था। द्वितीय एस्टेट में फ्रांस का कुलीन वर्ग सम्मिलित था। इनका देश की 30% भूमि पर अधिकार था। तृतीय एस्टेट में फ्रांस की लगभग 94% जनसंख्या आती थी। इस वर्ग में मध्यम वर्ग (लेखक, डॉक्टर, जज, वकील, अध्यापक, असैनिक अधिकारी आदि), किसानों, मजदूरों और दस्तकारों को सम्मिलित किया जाता था। यह केवल तृतीय एस्टेट ही थी जो सभी कर देने को बाध्य थी। पादरी एवं कुलीन वर्ग के लोगों को सरकार को कर देने से छूट प्राप्त थी परन्तु सरकार को कर देने के साथ-साथ किसानों को चर्च को भी कर देना पड़ता था। यह एक अन्यायपूर्ण स्थिति थी जिसने तृतीय एस्टेट के सदस्यों में असंतोष की भावना को बढ़ावा दिया।

5. तात्कालिक कारण- लुई सोलहवें ने 5 मई, 1789 ई. को नए करों के प्रस्ताव हेतु 1614 ई. में निर्धारित संगठन के आधार पर तीनों एस्टेट की एक बैठक बुलाई। तृतीय एस्टेट की माँग थी कि सभी एस्टेट की एक संयुक्त बैठक बुलाई जाए तथा ‘एक व्यक्ति एक मत’ के आधार पर मतदान कराया जाए। लुई सोलहवें ने ऐसा करने से मना कर दिया। अतः 20 जून को तृतीय एस्टेट के प्रतिनिधि टेनिस कोर्ट में एकत्रित हुए तथा नवीन संविधान बनाने की घोषणा की।

Question - 2 : -
फ्रांसीसी समाज के किन तबकों को क्रान्ति का फायदा मिला? कौन-से समूह सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए? क्रांति के नतीजों से समाज के किन समूहों को निराशा हुई होगी?

Answer - 2 : -

फ्रांसीसी क्रान्ति से सर्वाधिक लाभ तृतीय एस्टेट के धनी सदस्यों को हुआ। तृतीय एस्टेट में किसान, मजदूर, वकील, छोटे अधिकारीगण, अध्यापक, डॉक्टर एवं व्यवसायी शामिल थे। क्रांति से पहले इन्हें सभी कर अदा करने पड़ते थे। साथ ही इन लोगों को पादरियों और कुलीनों के द्वारा अपमानित भी किया जाता था। लेकिन क्रांति के बाद उनके साथ समाज के उच्च वर्ग के समान व्यवहार किया जाने लगा। पादरियों एवं कुलीन वर्ग के लोगों को अपने विशेषाधिकारों को त्यागने पर विवश होना पड़ा। क्रान्ति के परिणामों से महिलाओं को निराशा हुई क्योंकि वे लैंगिक आधार पर पुरुषों की समानता का अधिकार हासिल नहीं कर सकीं।

Question - 3 : -
उन्नीसवीं और बीसवीं सदी की दुनिया के लिए फ्रांसीसी क्रान्ति कौन-सी विरासत छोड़ गई?

Answer - 3 : -

इस क्रान्ति से विश्व के लोगों को निम्न विरासत प्राप्त हुई-

  1. फ्रांसीसी क्रान्ति वैश्विक स्तर पर मानव इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटनाओं में से एक है।
  2. यह विश्व का पहला ऐसा राष्ट्रीय आंदोलन था जिसने स्वतंत्रता, समानता और भाई-चारे जैसे विचारों को अपनाया।
  3. 19वीं व 20वीं सदी के प्रत्येक देश के लोगों के लिए ये विचार आधारभूत सिद्धान्त बन गए।
  4. राजा राममोहन राय जैसे नेता फ्रांसीसियों द्वारा राजशाही एवं उसके निरंकुशवाद के विरुद्ध प्रचारित विचारों से अत्यधिक प्रभावित थे।
  5. इस क्रान्ति ने जनता की आवाज को प्रश्रय दिया। जनता उस समय दैवी अधिकार की धारणा, सामंती विशेषाधिकार, दास प्रथा एवं नियंत्रण को समाप्त करके योग्यता को सामाजिक उत्थान का आधार बनाना चाहती थी।
  6. इसने यूरोप के लगभग सभी देशों सहित दक्षिण अमेरिका में प्रत्येक क्रान्तिकारी आंदोलन को प्रेरित किया।
  7. इसने ‘राष्ट्रवादी आंदोलन को बढ़ावा दिया। इस क्रांति ने पोलैण्ड, जर्मनी, नीदरलैण्ड तथा इटली के लोगों को अपने देशों में राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना हेतु प्रेरित किया।
  8. इसने राजतंत्रात्मक स्वेच्छाचारी शासन का अन्त कर यूरोप तथा विश्व के अन्य भागों में गणतंत्र की स्थापना को बढ़ावा दिया।
  9. इसने देश के सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार की अवधारणा का प्रचार किया जो बाद में कानून के सम्मुख लोगों की समानता की धारणा का आधार बना।

Question - 4 : -
उन जनवादी अधिकारों की सूची बनाएँ जो आज हमें मिले हुए हैं और जिनका उद्गम फ्रांसीसी क्रान्ति में है।

Answer - 4 : -

ऐसे लोकतांत्रिक अधिकार जिनका हम आज सरलता से प्रयोग करते हैं तथा जिनका उद्भव फ्रांस की क्रान्ति के फलस्वरूप हुआ था, उनका विवरण इस प्रकार है-

  1. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
  2. शोषण के विरुद्ध अधिकार
  3. संवैधानिक उपचारों का अधिकार
  4. विचार अभिव्यक्ति का अधिकार
  5. समानता का अधिकार
  6. स्वतंत्रता का अधिकार
  7. एकत्र होने तथा संगठन बनाने का अधिकार
  8. सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार
  9. संपत्ति का अधिकार।

Question - 5 : -
क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि सार्वभौमिक अधिकारों के सन्देश में नाना अंतर्विरोध थे?

Answer - 5 : -

विश्व में नागरिक अधिकारों की प्रथम घोषणा का प्रयास संभवतः फ्रांस में ही किया गया। फ्रांस के सार्वभौमिक अधिकारों के संदेश में स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व के तीन मौलिक सिद्धान्तों पर बल दिया गया। वर्तमान में सभी लोकतांत्रिक देशों द्वारा इन सिद्धान्तों को अंगीकार किया गया है।
लेकिन यह सत्य है कि फ्रांस का सार्वभौमिक अधिकारों का संदेश अनेक विरोधाभासों से घिरा हुआ है जिनका विवरण इस प्रकार है-

  1. व्यापार और कार्य की स्वतंत्रता का कोई उल्लेख नहीं था।
  2. स्वतंत्रता को अधिक प्रोत्साहन दिया गया था।
  3. व्यक्ति के चहुँमुखी विकास को लक्ष्य नहीं बनाया गया।
  4. शिक्षा के अधिकार को कोई महत्त्व नहीं दिया गया।
  5. घोषणा में कहा गया था कि “कानून सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति है। सभी नागरिकों को व्यक्तिगत रूप से या अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से इसके निर्माण में भाग लेने का अधिकार है। कानून की नजर में सभी नागरिक समान हैं।” किन्तु जब फ्रांस एक संवैधानिक राजशाही बना तो लगभग 30 लाख नागरिक जिनमें 25 वर्ष से कम आयु के पुरुष एवं महिलाएँ शामिल थीं, उन्हें बिल्कुल वोट ही नहीं डालने दिया गया।
  6. फ्रांस ने उपनिवेशों पर कब्जा करना व उनकी संख्या बढ़ाना जारी रखा।
  7. फ्रांस में उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध तक दासप्रथा जारी रही।

Question - 6 : -
नेपोलियन के उदय को कैसे समझा जा सकता है?

Answer - 6 : -

नेपोलियन का उदय 1796 में निर्देशिका के पतन के बाद हुआ। निदेशकों का प्रायः विधान सभाओं से झगड़ा होता था जो कि बाद में उन्हें बर्खास्त करने का प्रयास करती। निर्देशिका राजनैतिक रूप से अत्यधिक अस्थिर थी; अतः नेपोलियन सैन्य तानाशाह के रूप में सत्तारूढ़ हुआ। सन् 1804 में नेपोलियन बोनापार्ट ने स्वयं को फ्रांस का सम्राट बना लिया। 1799 ई. में डायरेक्टरी के शासन का अंत करके वह फ्रांस का प्रथम काउंसल बन गया। शीघ्र ही शासन की समस्त शक्तियाँ उसके हाथों में केंद्रित हो गईं।

सन् 1793-96 के मध्य फ्रांसीसी सेनाओं ने लगभग सम्पूर्ण पश्चिमी यूरोप पर विजय हासिल कर ली। जब नेपोलियन माल्टा, मिस्र और सीरिया की ओर बढ़ा (1797-99) तथा इटली से फ्रांसीसियों को बाहर ढकेल दिया गया तब सत्ता पर नेपोलियन का कब्जा हुआ, फ्रांस ने अपने खोए हुए भूखण्ड पुनः वापस ले लिए। उसने आस्ट्रिया को 1805 में, प्रशा को 1806 में और रूस को 1807 में परास्त किया। समुद्र के ऊपर ब्रिटिश नौ सेना पर फ्रांसीसी अपना प्रभुत्व कायम नहीं कर सके। अंततः लगभग सारे यूरोपीय देशों ने मिलकर 1813 ई. में लिव्जिंग में फ्रांस को परास्त किया। बाद में इन मित्र राष्ट्रों की सेनाओं ने पेरिस (फ्रांस की राजधानी) पर अधिकार कर लिया। जून, 1815 ई. में नेपोलियन ने वाटरलू में पुनः विजय प्राप्त करने का असफल प्रयास किया। नेपोलियन ने अपने शासन काल में निजी संपत्ति की सुरक्षा और नाप-तोल की एक समान दशमलव प्रणाली सम्बन्धी कानून बनाए।

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