Chapter 3 अतीत में दबे पाँव Solutions
Question - 1 : - सिंधु सभ्यता साधन-संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था, कैसे?
Answer - 1 : -
सिंधु-सभ्यता के शहर मुअनजो-दड़ो की व्यवस्था, साधन और नियोजन के विषय में खूब चर्चा हुई है। इस बात से सभी प्रभावित हैं कि वहाँ की अन्न-भंडारण व्यवस्था, जल-निकासी की व्यवस्था अत्यंत विकसित और परिपक्व थी। हर निर्माण बड़ी बुद्धमानी के साथ किया गया था; यह सोचकर कि यदि सिंधु का जल बस्ती तक फैल भी जाए तो कम-से-कम नुकसान हो। इन सारी व्यवस्थाओं के बीच इस सभ्यता की संपन्नता की बात बहुत ही कम हुई है। वस्तुत: इनमें भव्यता का आडंबर है ही नहीं। व्यापारिक व्यवस्थाओं की जानकारी मिलती है, मगर सब कुछ आवश्यकताओं से ही जुड़ा हुआ है, भव्यता का प्रदर्शन कहीं नहीं मिलता। संभवत: वहाँ की लिपि पढ़ ली जाने के बाद इस विषय में अधिक जानकारी मिले।
Question - 2 : - ‘सिंधु-सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य-बोध है जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।’ ऐसा क्यों कहा गया?
Answer - 2 : -
सिंधु घाटी के लोगों में कला या सुरुचि का महत्त्व ज्यादा था। वास्तुकला या नगर-नियोजन ही नहीं, धातु और पत्थर की। मूर्तियाँ, मृद्-भांडे, उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पति और पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, उन पर बारीकी से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण और सबसे ऊपर सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप सिंधु सभ्यता को तकनीक-सिद्ध से ज्यादा कला-सिद्ध जाहिर करता है। खुदाई के दौरान जो भी वस्तुएँ मिलीं या फिर जो भी निर्माण शैली के तत्व मिले, उन सभी से यही बात निकलकर आती है कि सिंधु सभ्यता समाज प्रधान थी। यह व्यक्तिगत न होकर सामूहिक थी। इसमें न तो किसी राजा का प्रभाव था और न ही किसी धर्म विशेष का। इतना अवश्य है कि कोई-न-कोई राजा होता होगा लेकिन राजा पर आश्रित यह सभ्यता नहीं थी। इन सभी बातों के आधार पर यह बात कही जा सकती है कि सिंधु सभ्यता का सौंदर्य समाज पोषित था।
Question - 3 : - पुरातत्व के किन चिह्नों के आधार पर आप यह कह सकते हैं कि-“सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।”
Answer - 3 : -
सिंधु-सभ्यता से जो अवशेष प्राप्त हुए हैं उनमें औजार तो हैं, पर हथियार नहीं हैं। मुअनजो-दड़ो, हड़प्पा से लेकर हरियाणा तक समूची सिंधु-सभ्यता में हथियार उस तरह नहीं मिले हैं जैसे किसी राजतंत्र में होते हैं। दूसरी जगहों पर राजतंत्र या धर्मतंत्र की ताकत का प्रदर्शन करने वाले महल, उपासना-स्थल, मूर्तियाँ और पिरामिड आदि मिलते हैं। हड़प्पा संस्कृति में न भव्य राजप्रासाद मिले हैं, न मंदिर, न राजाओं व महतों की समाधियाँ। मुअनजो-दड़ो से मिला नरेश के सिर का मुकुट भी बहुत छोटा है। इन सबके बावजूद यहाँ ऐसा अनुशासन जरूर था जो नगर-योजना, वास्तु-शिल्प, मुहर-ठप्पों, पानी या साफ़-सफ़ाई जैसी सामाजिक व्यवस्थाओं में एकरूपता रखे हुए था। इन आधारों पर विद्वान यह मानते हैं कि यह सभ्यता समझ से अनुशासित सभ्यता थी, न कि ताकत से।
Question - 4 : - ‘यह सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ अब आप को कहीं नहीं ले जातीं; वे आकाश की तरफ़ अधूरी रह जाती हैं,
Answer - 4 : -
लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, वहाँ से आप इतिहास को नहीं उस के पार झाँक रहे हैं।’ इस कथन के पीछे लेखक का क्या आशय है?
उत्तर:
इस कथन के पीछे लेखक का आशय यही है कि खंडहर होने के बाद भी पायदान बीते इतिहास का पूरा परिचय देते हैं। इतनी ऊँची छत पर स्वयं चढ़कर इतिहास का अनुभव करना एक बढ़िया रोमांच है। सिंधु घाटी की सभ्यता केवल इतिहास नहीं है बल्कि इतिहास के पार की वस्तु है। इतिहास के पार की वस्तु को इन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर ही देखा जा सकता है। ये अधूरे पायदान यही दर्शाते हैं. कि विश्व की दो सबसे प्राचीन सभ्यताओं का इतिहास कैसा रहा।
Question - 5 : - टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों को भी दस्तावेज़ होते हैं-इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।
Answer - 5 : -
यह सच है कि टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं। मुअनजो-दड़ो में प्राप्त खंडहर यह अहसास कराते हैं कि आज से पाँच हजार साल पहले कभी यहाँ बस्ती थी। ये खंडहर उस समय की संस्कृति का परिचय कराते हैं। लेखक कहता है कि इस आदिम शहर के किसी भी मकान की दीवार पर पीठ टिकाकर सुस्ता सकते हैं चाहे वह एक खंडहर ही क्यों न हो, किसी घर की देहरी पर पाँव रखकर आप सहसा सहम सकते हैं, रसोई की खिड़की पर खड़े होकर उसकी गंध महसूस कर सकते हैं या शहर के किसी सुनसान मार्ग पर कान देकर बैलगाड़ी की रुन-झुन सुन सकते हैं। इस तरह जीवन के प्रति सजग दृष्टि होने पर पुरातात्विक खंडहर भी जीवन की धड़कन सुना देते हैं। ये एक प्रकार के दस्तावेज होते हैं जो इतिहास के साथ-साथ उस अनछुए समय को भी हमारे सामने उपस्थित कर देते हैं।
Question - 6 : - इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है, जिसे बहुत कम लोगों ने देखा होगा, परंतु इससे आपके मन में उस नगर की एक तसवीर बनती है। किसी ऐसे ऐतिहासिक स्थल, जिसको आपने नज़दीक से देखा हो, का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
Answer - 6 : -
मैंने हर्षवर्धन के किले को नजदीक से देखा है। यह एक ऐतिहासिक स्थल है। यह बहुत बड़ा किला है। जिसे हर्षवर्धन ने अपनी राजधानी बना रखा था। अपने भाई राज्यवर्धन की मृत्यु के बाद वह थानेसर का राजा बना। इस किले के चारों ओर प्रत्येक कोने पर ऊँचे-ऊँचे स्तंभ हैं। इसके परकोटों पर खूबसूरत मीनाकारी की गई है। अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के रहने के लिए महल के साथ ही कमरे बनवाए हुए थे। किले का मुख्य गुंबद बहुत ऊँचा था। इसके साथ ही एक मीना बाज़ार था जहाँ पर हर प्रकार का साजो-सामान बिकता था। यह किला आज भी शांतभाव से खड़ा अपना इतिहास बताता प्रतीत । होता है। किले का प्रवेश द्वार बहुत मजबूत है जहाँ तक कई सीढ़िया पार करके पहुँचा जा सकता है।
Question - 7 : - नदी, कुएँ, स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखते हुए लेखक पाठकों से प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को जल-संस्कृति कह सकते हैं? आपका जवाब लेखक के पक्ष में है या विपक्ष में? तर्क दें।
Answer - 7 : -
सिंधु घाटी सभ्यता में नदी, कुएँ, स्नानागार व बेजोड़ निकासी व्यवस्था के अनुसार लेखक इसे ‘जल-संस्कृति’ की संज्ञा देता है। मैं लेखक की बात से पूर्णत: सहमत हूँ। सिंधु-सभ्यता को जल-संस्कृति कहने के समर्थन में निम्नलिखित कारण हैं –
- यह सभ्यता नदी के किनारे बसी है। मुअनजो-दड़ो के निकट सिंधु नदी बहती है।
- यहाँ पीने के पानी के लिए लगभग सात सौ कुएँ मिले हैं। ये कुएँ पानी की बहुतायत सिद्ध करते हैं।
- मुअनजो-दड़ो में स्नानागार हैं। एक पंक्ति में आठ स्नानागार हैं जिनमें किसी के भी द्वार एक-दूसरे के सामने नहीं खुलते। कुंड में पानी के रिसाव को रोकने के लिए चूने और चिराड़ी के गारे का इस्तेमाल हुआ है।
- जल-निकासी के लिए नालियाँ व नाले बने हुए हैं जो पकी ईटों से बने हैं। ये ईटों से ढँके हुए हैं। आज भी शहरों में जल-निकासी के लिए ऐसी व्यवस्था की जाती है।
- मकानों में अलग-अलग स्नानागार बने हुए हैं।
- मुहरों पर उत्कीर्ण पशु शेर, हाथी या गैडा जल-प्रदेशों में ही पाए जाते हैं।
Question - 8 : - सिंधु घाटी सभ्यता का कोई लिखिए साक्ष्य नहीं मिला है। सिर्फ़ अवशेषों के आधार पर ही धारणा बनाई है।
Answer - 8 : -
इस लेख में मुअन-जोदड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है। क्या आपके मन में इससे कोई भिन्न धारणा या भाव भी पैदा होता है? इन संभावनाओं पर कक्षा में समूह-चर्चा करें।
उत्तर:
यदि मोहनजोदड़ो अर्थात् सिंधु घाटी की सभ्यता के बारे में धारणा बिना साक्ष्यों के बनाई गई है तो यह गलत नहीं है। क्योंकि जो कुछ हमें खुदाई से मिला है वह किसी साक्ष्य से कम नहीं। खुदाई के दौरान मिले बर्तनों, सिक्कों, नगरों, सड़कों, गलियों को साक्ष्य ही कहा जा सकता। साक्ष्य लिखित हों यह जरूरी नहीं है। जो कुछ हमें सामने दिखाई दे रहा है वह भी तो प्रमाण है। फिर हम इस तथ्य को कैसे भुला दें कि ये दोनों नगर विश्व की प्राचीनतम संस्कृति और सभ्यता के प्रमाण हैं। इन्हीं के कारण अन्य सभी संस्कृतियाँ विकसित हुईं। मुअन-जोदड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है। वह हर दृष्टि से प्रामाणिक है। उसके बारे में अन्य कोई धारणा मेरे मन में नहीं बनती।
Question - 9 : - मुअनजोदड़ो की बड़ी बस्ती के बारे में विस्तार से बताइए।
Answer - 9 : -
लेखक बताता है कि बड़ी बस्ती के घर बहुत बड़े होते थे। इसी प्रकार इन घरों के आँगन भी बहुत खुले होते थे। इन घरों की दीवारें ऊँची और मोटी होती थीं। जिस आधार पर कहा जा सकता है कि मोटी दीवारों वाले घर दो मंजिले होते होंगे। कुछ दीवारों में छेद भी मिले हैं जो यही संकेत देते हैं कि दूसरी मंजिल को उठाने के लिए शायद शहतीरों के लिए यह जगह छोड़ दी गई होगी। सभी घर पक्की ईंटों के हैं। एक ही आकार की ईंटे इन घरों में लगाई गई हैं। यहाँ पत्थर का प्रयोग ज्यादा नहीं हुआ। कहीं-कहीं नालियों को अनगढ़ पत्थरों से ढक दिया है ताकि गंदगी न फैले। इस प्रकार मुअनजोदड़ो की बड़ी बस्ती निर्माण कला की दृष्टि से संपन्न एवं कुशल थी।
Question - 10 : - क्या प्राचीनकाल में रंगाई का काम होता था।
Answer - 10 : -
प्राचीनकाल में भी रंगाई का काम होता था। लोग बड़े चाव से यह काम किया करते थे। आज भी मुअनजोदड़ो में एक रंगरेज का कारखाना मौजूद है। यहाँ ज़मीन में गोल गड्ढे उभरे हुए हैं। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि इसमें रंगाई के लिए बर्तन रखे जाते होंगे। पश्चिम में ठीक गढ़ी के पीछे यह कारखाना मिला है। अतः इस बात को बिना किसी शंका के कहा जा सकता है कि प्राचीन लोग रंगाई का काम किया करते थे।