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Chapter 6 उषा Solutions

Question - 1 : -
कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि उषा कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्द चित्र है? 
अथवा
‘शमशेर की कविता गाँव की सुबह का जीवंत चित्रण है।’-पुष्टि कीजिए।

Answer - 1 : -

कवि ने गाँव की सुबह का सुंदर चित्रण करने के लिए गतिशील बिंब-योजना की है। भोर के समय आकाश नीले शंख की तरह पवित्र लगता है। उसे राख से लिपे चौके के समान बताया गया है जो सुबह की नमी के कारण गीला लगता है। फिर वह लाल केसर से धोए हुए सिल-सा लगता है। कवि दूसरी उपमा स्लेट पर लाल खड़िया मलने से देता है। ये सारे उपमान ग्रामीण परिवेश से संबंधित हैं। आकाश के नीलेपन में जब सूर्य प्रकट होता है तो ऐसा लगता है जैसे नीले जल में किसी युवती का गोरा शरीर झिलमिला रहा है। सूर्य के उदय होते ही उषा का जादू समाप्त हो जाता है। ये सभी दृश्य एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इनमें गतिशीलता है।

Question - 2 : -
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका

Answer - 2 : -

(अभी गीला पड़ा है)
नई कविता में कोष्ठक, विराम चिह्नों और पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए।

उत्तर

नई कविता के लगभग सभी कवियों ने सदा कुछ विशेष कहना चाहा है अथवा कविता की विषयवस्तु को नए ढंग से प्रस्तुत करना चाहा है। उन्होंने इसके लिए कोष्ठक, विराम चिह्नों और पंक्तियों के बीच स्थान छोड़ दिया है। जो कुछ उन्होंने इसके माध्यम से कहा है, कविता उससे नए अर्थ देती है। उपरोक्त पंक्तियों में यद्यपि सुबह के आकाश को चौका जैसा माना है और यदि इसके कोष्ठक में दी गई पंक्ति को देखा जाए तो तब चौका जो अभी-अभी राख से लीपा है, उसका रंग मटमैला है। इसी तरह सुबह का आकाश भी दिखाई देता है।

Question - 3 : -
अपने परिवेश के उपमानों का प्रयोग करते हुए सूर्योदय और सूयस्ति का शब्द-चित्र खींचिए।

Answer - 3 : -

सुबह के समय सूर्य उदित होते समय ऐसा लगता है मानो कोई नीले सरोवर में स्नान करके बाहर आ रहा हो। सूर्य की किरणें धीरे-धीरे आकाश पर छा जाती हैं। ओस के कणों पर सूर्य की किरणें अद्भुत दृश्य उत्पन्न करती हैं तथा प्रकृति के दृश्य पल-पल में बदलते हैं। पक्षी चहचहाने लगते हैं। पशुओं व मानवों में नयी शक्ति का संचार हो जाता है। जीवन सजीव हो उठता है।
जैसे-जैसे शाम होती है, सूर्य एक थके हुए पथिक की भाँति धीमी गति से अस्त होने लगता है। पक्षी अपने घरों की तरफ लौटने लगते हैं। सूर्य का रंग लाल हो जाता है मानो वह विश्राम करने जा रहा हो। सारा जीव-जगत भी आराम करने की तैयारी शुरू कर देता है।

Question - 4 : -
सूर्योदय से पहले आकाश में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं? ‘उषा’ कविता के आधार पर बताइए। 
अथवा
‘उषा’ कविता के आधार पर सूर्योदय से ठीक पहले के प्राकृतिक दूश्यों का चित्रण कीजिए।

Answer - 4 : -

सूर्योदय से पहले आकाश का रंग शंख जैसा नीला था, उसके बाद आकाश राख से लीपे चौके जैसा हो गया। सुबह की नमी के कारण वह गीला प्रतीत होता है। सूर्य की प्रारंभिक किरणों से आकाश ऐसा लगा मानो काली सिल पर थोड़ा लाल केसर डालकर उसे धो दिया गया हो या फिर काली स्लेट पर लाल खड़िया मिट्टी मल दी गई हो। सूर्योदय के समय सूर्य का प्रतिबिंब ऐसा लगता है जैसे नीले स्वच्छ जल में किसी गोरी युवती का प्रतिबिंब झिलमिला रहा हो।

Question - 5 : -
‘उषा’ कविता के आधार पर उस जादू को स्पष्ट कीजिए जो सूर्योदय के साथ टूट जाता है।

Answer - 5 : -

सूर्योदय से पूर्व उषा का दृश्य अत्यंत आकर्षक होता है। भोर के समय सूर्य की किरणें जादू के समान लगती हैं। इस समय आकाश का सौंदर्य क्षण-क्षण में परिवर्तित होता रहता है। यह उषा का जादू है। नीले आकाश का शंख-सा पवित्र होना, काली सिल पर केसर डालकर धोना, काली स्लेट पर लाल खड़िया मल देना, नीले जल में गोरी नायिका का झिलमिलाता प्रतिबिंब आदि दृश्य उषा के जादू के समान लगते हैं। सूर्योदय होने के साथ ही ये दृश्य समाप्त हो ज़ाते हैं।

Question - 6 : -
‘स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने। ‘ -इसका आशय स्पष्ट कीजिए।

Answer - 6 : -

कवि कहता है कि सुबह के समय अँधेरा होने के कारण आकाश स्लेट के समान लगता है। उस समय सूर्य की लालिमा-युक्त किरणों से ऐसा लगता है जैसे किसी ने काली स्लेट पर लाल खड़िया मिट्टी मल दिया हो। कवि आकाश में उभरे लाल-लाल धब्बों के बारे में बताना चाहता है।

Question - 7 : -
भार के नभ को ‘ राख से लीपा, गीला चौका ‘ की संज्ञा दी गई है। क्यों ?

Answer - 7 : -

कवि कहता है कि भोर के समय ओस के कारण आकाश नमीयुक्त व धुंधला होता है। राख से लिपा हुआ चौका भी मटमैले रंग का होता है। दोनों का रंग लगभग एक जैसा होने के कारण कवि ने भोर के नभ को ‘राख से लीपा, गीला चौका’ की संज्ञा दी है। दूसरे, चौके को लीपे जाने से वह स्वच्छ हो जाता है। इसी तरह भोर का नभ भी पवित्र होता है।

Question - 8 : -
‘उषा’ कविता में प्रातःकालीन आकाश की पवित्रता, निर्मलता व उज्ज्वलता से संबंधित पंक्तियों को बताइए।

Answer - 8 : -

पवित्रता- राख से लीपा हुआ चौका।
निर्मलता- बहुत काली सिल जरा से केसर से/कि जैसे धुल गई हो।
उज्ज्वलता-

नीले जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।

Question - 9 : -
सिल और स्लेट का उदाहारण देकर कवि ने आकाश के रंग के बारे में क्या कहा है ?

Answer - 9 : -

कवि ने सिल और स्लेट के रंग की समानता आकाश के रंग से की है। भोर के समय आकाश का रंग गहरा नीला-काला होता है और उसमें थोड़ी-थोड़ी सूर्योदय की लालिमा मिली हुई होती है।

Question - 10 : -
‘उषा’ कविता में भोर के नभ की तुलना किससे की गई हैं और क्यों? [CBSE (Delhi), 2015]

Answer - 10 : -

‘उषा’ कविता में प्रात:कालीन नभ की तुलना राख से लीपे गए गीले चौके से की गई है। इस समय आकाश नम एवं धुंधला होता है। इसका रंग राख से लिपे चूल्हे जैसा मटमैला होता है। जिस प्रकार चूल्हा-चौका सूखकर साफ़ हो जाता है उसी प्रकार कुछ देर बाद आकाश भी स्वच्छ एवं निर्मल हो जाता है।

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