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Chapter 2 जूझ Solutions

Question - 21 : -
किस घटना रने पता चलता है कि लेखक की माँ उसके मन काँ पांड़। समझ रही थी? ‘जूझ‘ कहानी के अमर पर बताईए।

Answer - 21 : -

लेखक पढ़ना चाहता था और उसके पिता उसे पढाने के बजाय उससे खेत का काम, पशु चराने का काम कराना चाहते थे। पिता ने अपनी इच्छा क्रो ध्यान में रखकर ही लेखक की पकाई छुड़वा दी श्री। इसी बात रने लेखक बहुत ही परेशान रहता था। उसका मन दिन–रात अपनी पढाई जारी रखने की योजनाएँ बनाता रहता था इसी योजना के अनुसार लेखक ने अपनी माँ रने दस्ता जी राव सरकार के घर चलकर उनकी मदद रने अपने पिता को राजी करने की बात कही। भी ने लेखक का साथ देने की बात को तुरत आकार कर लिया अपने बटे की पढाई के बारे में वह दस्ताश्लेजी राब से जाकर बात भी करती है और पति रने इस बात को छिपाने का आग्रह भी करती है। इससे स्पष्ट होता है कि वह लेखक के मन की पीड़। को समझती थी।

Question - 22 : -
‘जूझ‘ कहानी के आधार पर दस्ता जी राव की भूमिका पर प्रकाश डालिए।

Answer - 22 : -

‘जूझ‘ कहानी में दस्ता जी राव देसाई की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। वे गाँव के जमीदार है तथा नेकदिल व उदार हैं। बच्चों व महिलाओँ पर उनका विशेष स्नेह है। वे हरेक की सहायता करते हैं। लेखक व उसकी माँ ने उम्हें अपनी पीड़। बताई तो वे पिघल गए तथा निर्णय लिया कि वे लेखक के दादा की खरी–खनैटी सुनाकर सीधे रास्ते पर लाएँगे। वे साम…दाम–दंड–भेद किसी भी तरीके से अपनी बात मनवाना चाहते के उन्होंने दादा के आने पर हाल–चाल पूल तथा बच्चे की पढाई के सबंध में बात खुलने पर उसे खूब फटकार लगाई। उनकी डाँट से दादा की विधि, बैध गई तथा उसने आनंद की पढाई के लिए सहमति दे दी।

Question - 23 : -
‘जूझ‘ कहानी के माध्यम से लेखक ने क्या सीख दी हैं?

Answer - 23 : -

हमारा लेखक प्रतिमा…संपन्न था, मगर छोर चराने और खेत में यानी देने तथा उपले बनाने में अपनी सारी शक्ति लगा रहा था। पढने की इच्छा भीतर–हीं–भीतर कुलबुलाती रहती थी। सभी उसे छोरे कहकर बुलाते। वह पशुओ जैसा जीवन जी रहा था जब पड़ने का अवसर मिला तो उसने कविता–पाठ करने में सबको पीछे छोड़ दिया । गणित के सवाल हल करने मैं भी उसने पा कक्षा को पीछे छोड़ दिया। सभी अध्यापक उसे ‘आनंदा‘ कहकर पुकारते थे, उरने मानो अपनी स्वय को पहचान मिल गई । उसे लगा उसके मख निकल आए हैं। वह बहुत ही खुश रहने लगा। मनुष्य के चौवन में शिक्षा का बहुत महत्त्व है। शिक्षा के अभाव में मनुष्य पशु के समान हनैता है। इस कहानी के माध्यमसे लेखक ने यहीं सीख दी है।

Question - 24 : -
‘जूझ‘ आत्मकथात्मक उपन्यास के मुख्य पात्र के स्वभाव की तीन विशपताआं‘ का उल्लेख र्काजिए।

Answer - 24 : -

‘जूझ‘ कहानी का मुख्य पात्र है आनंदा‘ है। उसके स्वभाव की विशेषताएँ निम्नलिखित है –

1. यढ़ने को इच्छा…वह पिछले डेढ वर्ष से स्कूल नहीं जा रहा था क्योकि पिता ने आगे पढाने से मना कर दिया था। इसके बावजूद उसके मन में पढ़ने की बहुत इच्छा थी। वह अपने मन की बात भी रनै कहता है तथा इस काम में दस्ता जी राव देसाई को मदद लेता है।
2. परिश्रमी-आख्या बेहद परिश्रमी है। वह सुबह खेत पर जाता, वहाँ हैं स्कूल जाता और घर लौटकर फिर छोर चराने जाता है। वह सारा दिन काम करता है।
3. लगनशील-आनंदा हर कार्य को तन्मयता से करता है। वह छह माह के बाद स्कूल जाता है तथा मेहनत के यल पर शीघ्र ही कक्षा के होशियार बच्चे में गिना जाता है। अपनी लगन के करण ही वह कविता भी लिखने लगता हैं।

Question - 25 : -
” ‘जूझ‘ में गँवई जीवन के यथार्थ से जूझने का जीवंत चित्रण हैं।“-ड़स कथन पर तकेसम्मत टिप्पणी र्काजिए।

Answer - 25 : -

‘जूझ‘ कहानी में गोई के जीवन का यथार्थ वर्णन है। पाँव के बच्चे जीवन में अनेक संघर्ष करते हैं। इस कहानी का पात्र ‘आनंदा‘ भी अपनी पकाई जारी रखने के लिए संघर्ष करता है। उसका पिता खेत के काम को पढाई रने जादा महत्त्व देता है और वह आनंदा को स्कूल में पढने नहीं भेजता। आख्या के मन में पढ़ने को ललक श्री। वह पढ़–लिखकर नौकरी पना चाहता था म परंतु पिता के डर से वह कुछ नहीं कह पाता। वह माँ को अपनी पोड़। बताता है। माँ उसकी सलाह पर गॉव के जमींदार दत्ता जी राव सरकार रने बात करती है। दस्ता जी ने आनंद के पिता को बुलाकर डॉटा तथा बच्चे क्रो पढाने के लिए कहा। पिता ने अनेक कठोर शर्तों के साथ पढाई करने की इजाजत है दी। इस तरह आनंद को सुबह से शाम तक स्कूल व खेत में काम करना पढा। वह हर कदम पर यथार्थ से जूझता रहा। अंतत: उसने सफलता प्राप्त का ली।

Question - 26 : -
‘जूझ‘ कहानी में आपकी किस पात्र ने सबसे अधिक प्रभावित किया और क्यप्रे‘? उसकाँ चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

Answer - 26 : -

‘जूझ‘ कहानी में मुझे सबसे अधिक दस्ता जी राव देसाई ने प्रभावित किया उनके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं…

व्यक्तिव – राव निब गाँव के सम्मानित जमींदार हैं। वे उदार, नेकदिल व रोबीले हैँ। बच्चे व महिलाओं के साथ सदूव्यवहार करते हैं।
समझदार – राव साहब बेहद समझदार हैं। वे हर बात को ध्यान से सुनते है तथा फिर उसका समाधान करते हैं। लेखहुँ व उसकी भी को समस्या को सुनकर ही वे ‘दादा‘ को बुलाकर उसे बेटे को पकाने की बात समझाते ।
व्यवहारिक – राव साहब व्यवहारिक हैं। वे लियम–दाम–क–मेद की नीति जानते हैं। लेखक की पढाई के बारे में खोजना के तहत उसके पिता को बुलाकर आम बातें करते हैँ। लेखक के बीच में आने पर वे उसकी पढाई के बारे में पूछते हैं। फिर सारी कहानी सुनकर उसके पिता को डाँटते भी है तथा समझाते भी जा इस तरह वे लेखक की पढाई के लिए उसे तैयार करते हैं।
तर्कशील – राव साहब बेहद तर्कशील हैं। उसके तर्कों के सामने लेखक का पिता निरुत्नर हो जाता है।

Question - 27 : -
पाठशाला पहुँचकर लेखक को किन–किन परेशानियों का सामना करना पडा?

Answer - 27 : -

राव साहब के दबाव के कारण लेखक को दुबारा पढ़ने की इजाज़त मिली वह पाठशालं। पहुंचा, परंतु वहाँ उसकी गली के दो लड़को के अलावा सब अपरिचित थे। लेखक जिन्हें अपने से चुद१धहीन समझता था, अब उन्हों के साथ बैठने के लिए विवश था। उसके कपडे भी कक्षा के अनुरूप नहीं थे। उसे अपने अध्यापक का भी नहीं पता था। वह लटूठं के बने थैले में पुरानी किताबे व कापियों भरकर लाया था। यह बालुगड्री की लाल माटी के रंग में मटमैली हुई धोती और गमछा पहनकर आया था तथा अकेला या शरारती लड़के ने उसका मजाक उडाया तथा उसका गमछा छीनकर अपने सिर पर लपेटकर मास्टर की नकल करने लगा। उसने गमछा टेबल पर रख दिया । मास्टर ने गमछा देखकर पूछा कि यह किसका है? लेखक ने उसे उठाया मास्टर ने उसके बारे में पूछताछ कौ। बीच की छुटूटी में शरारती लड़के ने लेखक की छोती की काछ दी बार निकालने की कोशिश की, परंतु वह दीवार को तरफ मीठ करके छुटूटी होने तक बैठा रहा। घर जाते समय वह सीच रहा था कि लड़के उसकी खिल्ली उड़ते हैं, छोती खींचते है, गमछा खींचते हैं, ऐसे में वह केसे महँगा? इससे अच्छा है कि वह पाठशाला न जाए और खेत में ही काम करता रहे। सबेरे उठते ही वह फिर पाठशाला चला गया। औरे–धीरे उसका आत्मविश्वास और सहपाठियों रने परिचय बढ़ गया।

Question - 28 : -
‘जूझ‘ के कथानायक का मन पाठशाला जाने के लिए वयो‘ तड़पता था? उसे की का काम अच्छा क्यों नहीं लगता आ, तकपूण‘ उतार दीजिए।

Answer - 28 : -

“जूझ हैं के कथानायक का मन पाठशाला जाने के लिए इसलिए तड़पता था क्योंकि उसे शिक्षा से अत्यंत गहरा लगाव था। उसे पता था कि शिक्षा मनुष्य का सर्वागीण विकास करती है। शिक्षा रने ही व्यक्ति अपनी उन्नति के बारे में सीच सकता है तथा वह समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर सकता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि शिक्षा व्यक्ति की उन्नति का दूवार खेलती है। उसे खेती का काम इसलिए अच्छा नहीं लगता था क्योकि उसे यह विश्वास था कि जन्म–भर खेत में काम करते रहने पर भी हाथ कुछ नहीं लगेगा। जो बाबा के समय था, वह दादा के समय नहीं रहा। यह खेती हमें गडूढे में धकेल रही है। पद जाऊँगा तो नौकरी लग जाएगी, चार पैसे हाथ में रहेंगे, विठोबा आपणा को तरह कुछ धंधा–कारोबार किया जा सकेगा ।

Question - 29 : -
‘जूझ‘ कहानी आधुनिक किशीर–किशांरियां” की जिन जॉवन–मूल्यां” की प्रेरणा दं सकती हैं? सांदाहरण स्पष्ट कांजिए।

Answer - 29 : -

‘हैँजूझ‘ कहानी आज के किशोर–किशोरियों को कई जीवन–मूल्यों की प्रेरणा है सकती हैँ। उनमें से कुछ निम्नलिखित 

संघर्षशीलता – किसी कार्य में सफलता माने के लिए संघर्षशील बहुत आवश्यक है। आज के किशोर– किशोरियों शॉर्टकट रास्ते पर चलकर सफलता पना चाहते हैं ताकि उन्हें कम–री–कम परिश्रम और संघर्ष करना पहुँ जबकि ‘जूझ‘ कहानी के नायक को जगह–जगह संघर्ष करना पडा।
दूरवशिता – ” जूझ‘ कहानी का नायक आनंदा दूरदशी है। वह अपनी दूरदर्शिता के यल पर अपने पित्ता को राव साहब के पास भेजने में सफल हो जाता है और अपने पिता के क्रोध रने बचते हुए उन्हें अपनी पकाई के लिए राजी कर लेता है। आधुनिक किशोर–किशोरियों को भी दूरदर्शी बनना चाहिए।
परिअमक्रलता – आधुनिक किशोर–किशोरियों को आनंदा के समान परिश्रमी बनना चाहिए। आनंदा पकाई के साथ खेल में कठोर परिश्रम करता है और सफलता अजित करता है।
लग-शीलता – परिश्रम के अलावा किसी काम में सफलता याने के लिए लगन होना भी आवश्यक है। आख्या डंढ़ साल बाद विदूयालय जाता है और अपनी लगन रने कक्षा के होशियार बच्चों में गिना जाने लगता है। आधुनिक विहार-किशोरियों को भी लगनशील बनना चाहिए।

Question - 30 : -
जूझा कहानी का नायक किन परिस्थितियाँ में अपनी पढाई जारी रख पाता हैं? अगर उसर्का जगह आप हांर्त तो उन विषम परिस्थितियों में किस प्रकार अपने सपने कां जीवित रख पाते?

Answer - 30 : -

‘जूझ है कहानी का नायक आनंदा अर्थात लेखक की छात्रावस्था में परिस्थितियों अत्यंत विपरीत थीं। उसके पिता के लिए खेती ही सब कुछ थी। पदा–लिखाई के प्रति उसकी सोच अच्छी न थी। वे लेखक से खेती का काम करवाने के अलावा पशु चराने का काम भी करवाना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने आनंदा की पढाई छुडवा दी थी। आनंदा उनसे पकाई की बात कहते हुए भी डरता था। उसे डर था कि वे पढाई का नाम सुनते ही हद्धूडी–पसली एक कर देगे। दस्ता जी राव सरकार के समझाने पर उन्होंने आनंदा को स्कूल भेजने की स्वीकृति तो है बी, पर यह भी शर्त रख दी कि प्रतिदिन शाम को खेत पर काम करने जरूर आएगा। “हाँ यहि नहीं आया किसी दिन तो देख, गाँव मेंजहाँ मिलेगा यहीं कुचलता हूँ कि नहीं, तुझे। तेरे उपर पढ़ने का भूत सवार हुआ है। मुझे मालूम है, बालिस्टर नहीं होने वाला है तू?” इसके अलावा लेखक का दाखिल पाँचवीं कक्षा में हुआ, जहाँ दो लड़कों को छोड़कर बाकी सारे लड़के नए थे। उनमें शरारती लड़के उसका मजाक उडाते थे और उसका गमछा छीनकर अध्यापक की मेज़ यर रख देते के मध्यातर की छुटूटी में बच्चों ने उसकी धोती खेलकर उसे तंग करने का प्रयास किया, फिर भी लेखक अत्यंत परिश्रम से अपनी पढाई के पति समर्पित रहा। यदि लेखक को जगह मैं होता तो इन परेशानियों और विपरीत परिस्थितियों के बांच मैं भी लेखक की तरह अडिग रहता और अपनी पढाई के प्रति कठिन मेहनत करते हुए अपने सपनों को जीवित रखने का हरसंभव प्रयास करता और सफलता प्राप्त करना।

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