Question -
Answer -
हमारा लेखक प्रतिमा…संपन्न था, मगर छोर चराने और खेत में यानी देने तथा उपले बनाने में अपनी सारी शक्ति लगा रहा था। पढने की इच्छा भीतर–हीं–भीतर कुलबुलाती रहती थी। सभी उसे छोरे कहकर बुलाते। वह पशुओ जैसा जीवन जी रहा था जब पड़ने का अवसर मिला तो उसने कविता–पाठ करने में सबको पीछे छोड़ दिया । गणित के सवाल हल करने मैं भी उसने पा कक्षा को पीछे छोड़ दिया। सभी अध्यापक उसे ‘आनंदा‘ कहकर पुकारते थे, उरने मानो अपनी स्वय को पहचान मिल गई । उसे लगा उसके मख निकल आए हैं। वह बहुत ही खुश रहने लगा। मनुष्य के चौवन में शिक्षा का बहुत महत्त्व है। शिक्षा के अभाव में मनुष्य पशु के समान हनैता है। इस कहानी के माध्यमसे लेखक ने यहीं सीख दी है।