Chapter 4 मनुष्यता Solutions
Question - 21 : - उशीनर कौन थे? उनके परोपकार का वर्णन कीजिए।
Answer - 21 : -
उशीनर गांधार के राजा थे। उन्हें शिवि के नाम से भी जाना जाता है। एक बार जब वे बैठे थे तभी एक कबूतर बाज से भयभीत होकर शिवि की गोद में आ दुबका। इसी बीच बाज शिवि के पास आकर अपना शिकार वापस माँगने लगा। जब राजा ने कबूतर को वापस देने से मना किया तो उसने राजा से कबूतर के वजन के बराबर माँस माँगा। राजा ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। एक कबूतर पर दया करने के कारण राजा प्रसिद्ध हो गए।
Question - 22 : - कवि ने महाविभूति किसे कहा है और क्यों?
Answer - 22 : -
कवि ने मनुष्य की सहनशीलता को महाविभूति कहा है। इसका कारण यह है कि सहानुभूति के कारण मनुष्य दूसरों के दुख की अनुभूति करता है और उसे परोपकार करने की प्रेरणा मिलती है। यदि मनुष्य के भीतर सहानुभूति न हो तो कोई व्यक्ति चाहे सुखी रहे या दुखी वह उदासीन रहेगा और वह परोपकार करने की सोच भी नहीं सकता है।
Question - 23 : - अपने लिए जीने वाला कभी मरता नहीं’ कवि ने ऐसा क्यों कहा है?
Answer - 23 : -
‘अपने लिए जीने वाला कभी नहीं मरता’ कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि जो व्यक्ति परोपकार करते हैं, दूसरों की भलाई में लगे रहते हैं तथा अपने-पराए का भेद किए बिना दूसरों के काम आते हैं, ऐसे व्यक्ति अपने कार्यों के माध्यम से अमर हो जाते हैं। ऐसे लोग मरकर भी दूसरों की चर्चा में रहते हैं। ऐसा लगता है कि वे अब भी जीवित हैं।
Question - 24 : - कवि ने सफलता पाने के लिए मनुष्य को किस तरह प्रयास करने के लिए कहा है?
Answer - 24 : -
कवि ने सफलता पाने के लिए मनुष्य को प्रोत्साहित करते हुए कहा है कि मनुष्य तुम अपने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाओ। तुम्हारी सहायता के लिए अनेक देवता रूपी मनुष्य खड़े हैं। इसके अलावा तुम परस्पर एक-दूसरे की मदद करते हुए उठो और सभी को साथ लेकर बढ़ते चलो। इससे कोई मंजिल यो लक्ष्य प्राप्त करना कठिन नहीं रह जाएगा।
Question - 25 : - ‘रहो न यों कि एक से न काम और का सरे’ के माध्यम से कवि क्या सीख देना चाहता है?
Answer - 25 : -
रहो न यों कि एक से न काम और का सरे’ के माध्यम से कवि मनुष्य को यह सीख देना चाहता है कि हे मनुष्य! तुम इस तरह से स्वार्थी और आत्मकेंद्रित बन मत जियो कि दूसरों के सुख-दुख से कोई लेना-देना ही न रह जाए और तुम संवेदनहीनता की पराकाष्ठा छू लो। कवि चाहता है कि मनुष्य को एक-दूसरे को सहारा देना चाहिए, मदद करनी चाहिए ताकि उसका रुका काम भी बन जाए। वह चाहता है कि सभी परोपकारी बन जाएँ।
Question - 26 : - ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने मनुष्य के किस कृत्य को अनर्थ कहा है और क्यों ?
Answer - 26 : -
‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने मनुष्य को यह बताने का प्रयास किया है कि सभी मनुष्य आपस में ई ई हैं। इस सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि सबको जन्म देने वाला ईश्वर एक है। पुराणों में भी इस बात के प्रमाण हैं कि सृष्टि का रचनाकार वही एक है। वह सारे जगत का अजन्मा पिता है। फिर मनुष्य-मनुष्य में थोड़ा-बहुत जो भेद है। वह उसके अपने कर्मों के कारण है परंतु एक ही ईश्वर या आत्मा का अंश उनमें समाए होने के कारण सभी एक हैं। इतना जानने के बाद भी कोई मनुष्य दूसरे मनुष्य की अर्थात् अपने भाई की मदद न करे और उसकी व्यथा दूर न करे तो वह सबसे बड़े अनर्थ हैं। इसका कारण यह है कि ऐसा न करके मनुष्य अपनी मनुष्यता को कलंकित करता है।
Question - 27 : - ‘मनुष्यता’ कविता की वर्तमान में प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
Answer - 27 : -
मनुष्यता कविता हमें सच्चा मनुष्य बनने की राह दिखाती है। मनुष्य को इस कविता द्वारा सभी मनुष्यों के अपना भाई मानने, उनकी भलाई करने और एकता बनाकर रखने की सीख दी गई है। कविता के अनुसार सच्चा मनुष्य वही है जो सभी को अपना समझते हुए दूसरों की भलाई के लिए ही जीता और मरता है। वह दूसरों के साथ उदारता से रहता है और मानवीय एकता को दृढ़ करने के लिए प्रयासरत रहता है। वह खुद उन्नति के पथ पर चलकर दूसरों को भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। वर्तमान में इस कविता की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है क्योंकि आज दुनिया में स्वार्थवृत्ति, अहंकार, लोभ, ईर्ष्या, छल-कपट आदि बढ़ रहा है जिससे मनुष्य-मनुष्य में दूरी बढ़ रही है।
Question - 28 : - ‘मनुष्यता’ कविता में वर्णित उशीनर, दधीचि और कर्ण के उन कार्यों का उल्लेख कीजिए जिससे वे मनुष्य को मनुष्यता की राह दिखा गए।
Answer - 28 : -
‘मनुष्यता’ कविता में वर्णित उशीनर, दधीचि और कर्ण द्वारा किए गए कार्य इस प्रकार हैं-
उशीनर – इन्हें राजा शिवि के नाम से भी जाना जाता है। राजा उशीनर ने अपनी शरण में आए एक कबूतर की रक्षा के लिए अपने शरीर से उसके वजन के बराबर माँस बाज को दे दिया। इस तरह दयालुता का अनुकरणीय कार्य किया।
दधीचि – महर्षि दधीचि ने दानवों को पराजित करने के लिए अपने शरीर की हड्डयाँ दान दे दीं जिनसे बज्र बनाकर दानवों को युद्ध में हराया गया और मानवता की रक्षा की गई।
कर्ण – कर्ण अत्यंत दानी वीर एवं साहसी योद्धा था। उसने ब्राह्मण वेशधारी श्रीकृष्ण और इंद्र को अपना कवच-कुंडल दान दे दिया। यह दान बाद में उसके लिए जानलेवा सिद्ध हुआ।
इस प्रकार उक्त महापुरुषों ने अनूठे कार्य करके मानवता की रक्षा की और त्याग एवं परोपकार करके मनुष्य को मनुष्यता की राह दिखाई।