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Chapter 12 ध्वनि Solutions

Question - 31 : - एक ध्वनि तरंग 339 ms-1 की चाल से चलती है। यदि इसकी तरंगदैर्घ्य 1.5 cm हो, तो तरंग की आवृत्ति कितनी होगी? क्या ये श्रव्य होंगी?

Answer - 31 : -

ध्वनि तरंग की चाल υ = 339 ms-1
तरंगदैर्घ्य λ = 1.5 cm = 0.015 m
तरंग की आवृत्ति n = ?
υ = n x λ
n = 
=22,600 Hz

ये ध्वनि श्रव्य नहीं होगी क्योंकि इनकी आवृत्ति 20,000 Hz से अधिक है। अतः ये पराश्रव्य ध्वनि है।

Question - 32 : - अनुरणन क्या है? इसे कैसे कम किया जा सकता है?

Answer - 32 : -

अनुरणन-किसी बड़े हॉल जैसे-सम्मेलन कक्ष, सिनेमा हॉल आदि में स्रोत से उत्पन्न ध्वनि बार-बार परावर्तन के कारण काफी समय तक बनी रहती है जब तक कि यह इतनी कम न हो जाए कि यह सुनाई ही न पड़े। यह बारंबार ध्वनि का परावर्तन जिसके कारण ध्वनि निर्बन्ध होता है तथा ध्वनि स्पष्ट सुनाई नहीं पड़ती, अनुरणन कहलाता है।
अनुरणन को कम करने के लिए सभा भवन या सिनेमा हॉलों की छतों तथा दीवारों पर ध्वनि अवशोषक पदार्थ जैसे-संपीडित फाइबर बोर्ड, खुरदरे प्लास्टर, थर्मोकोल अथवा पर्दे लगा दिए जाते हैं। सीटों के पदार्थों का चुनाव भी ध्वनि अवशोषक पदार्थों के गुणों के आधार पर किया जाता है।

Question - 33 : -
ध्वनि की प्रबलता से क्या अभिप्राय है? यह किन कारकों पर निर्भर करती है?

Answer - 33 : -

ध्वनि की प्रबलता-हमारे कान में उत्पन्न संवेदन जिनके कारण हम तीव्र तथा मंद ध्वनि के बीच विभेदन कर सकते हैं ध्वनि की प्रबलता कहलाती है। ध्वनि की प्रबलता ध्वनि तरंगों के आयाम से पहचानी जाती है। विभिन्न आयाम की ध्वनि तरंगों की प्रबलता भी भिन्न-भिन्न होती है।

ध्वनि का आयाम उस बल पर निर्भर करता है जिस बल से हम वस्तु को कंपित करते हैं। यदि हम किसी मेज पर किसी वस्तु को बहुत अधिक बल लगाकर ठोकते हैं। तो हमें उच्च या तीव्र ध्वनि सुनाई पड़ती है क्योंकि इस प्रकार उत्पन्न ध्वनि का आयाम तथा ऊर्जा अधिक होती है। यदि हम मेज पर किसी वस्तु को धीरे से मारते हैं तो हमें मंद ध्वनि सुनाई देती है क्योंकि इस प्रकार उत्पन्न ध्वनि का आयाम तथा ऊर्जा कम होती है।

यदि ध्वनि तरंग स्रोत से दूर जाती है तो इसका आयाम कम होता जाता है जिससे उसकी प्रबलता भी कम हो जाती है और हमें आवाज या ध्वनि धीमी सुनाई पड़ती है।

Question - 34 : -
चमगादड़ अपना शिकार पकड़ने के लिए पराध्वनि का उपयोग किस प्रकार करता है? वर्णन कीजिए।

Answer - 34 : -

चमगादड़ अपना शिकार पकड़ने के लिए पराश्रव्य ध्वनि का उपयोग करते हैं। चमगादड़ वास्तव में दृष्टिहीन होता है। उड़ान के समय चमगादड़ उच्च आवृत्ति की पराश्रव्य तरंगें अल्प समय अंतराल में क्रमबद्ध तरीके से उत्सर्जित करता है। ये तरंगें आस-पास के कीटों से टकराकर परावर्तित होती हैं तथा चमगादड़ के कानों तक वापस पहुँच जाती हैं। परावर्तित तरंगों की प्रकृति के आधार पर चमगादड़ कीटों की उपस्थिति का पता लगा लेता है। तथा अपनी इच्छा के अनुसार उसे पकड़ लेता है। अतः चमगादड़ पराश्रव्य ध्वनि का उपयोग करके अपने शिकार या कीटों को पकड़ता है।

Question - 35 : -
वस्तुओं को साफ करने के लिए पराध्वनि का उपयोग कैसे करते हैं?

Answer - 35 : -

पराध्वनि का उपयोग किसी वस्तु के उन भागों को साफ करने के लिए किया जाता है जहाँ तक पहुँचना कठिन होता है, जैसे- सर्पिलाकार नली, विषम आकार के पुर्जे तथा इलेक्ट्रॉनिक पुर्जे आदि। जिन वस्तुओं को साफ करना होता है उन्हें साफ करने वाले अपमार्जक विलयन में रखते हैं और इस विलयन में पराध्वनि तरंगें भेजी जाती हैं। उच्च आवृत्ति के कारण धूल, चिकनाई तथा गंदगी के कण अलग होकर नीचे गिर जाते हैं। इस प्रकार वस्तु पूर्णतया साफ हो जाती है।

Question - 36 : -
सोनार (SONAR) की कार्यविधि तथा उपयोगों का वर्णन कीजिए।

Answer - 36 : -

सोनार (SONAR) – वास्तव में सोनार (SONAR) साउण्ड नेवीगेशन एंड रेंजिंग (Sound Navigation and Ranging) का संक्षिप्त रूप है जिसका अर्थ है ध्वनि द्वारा संचालन तथा परिसर निर्धारण करना। सोनार एक ऐसी युक्ति है जिसमें पराश्रव्य ध्वनि तरंगों का उपयोग जल में स्थित अदृश्य पिंडों, जैसे पनडुब्बियों, जहाज, चट्टानों तथा समुद्र की गहराई आदि के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
कार्यप्रणाली – सोनार की कार्यप्रणाली में पराश्रव्य तरंगों का उपयोग किया जाता है। सोनार में एक प्रेषित यंत्र (ट्रांसमीटर) तथा एक अभिग्राही लगा होता है जिसे जहाज के पैंदे में लगाया जाता है। ट्रांसमीटर पराश्रव्य ध्वनि को उत्सर्जित करके महासागर के जल के गहराई तक भेजते हैं। ये ध्वनि तरंगें जब सागर की तली या समुद्र के भीतर स्थित किसी पिंड से टकराती हैं तो परावर्तित हो जाती हैं। इन परावर्तित तरंगों को संसूचक जहाज के पैंदे में लगे किसी अभिग्राही द्वारा ग्रहण किया जाता है। यह अभिग्राही यंत्र पराश्रव्य ध्वनि को विद्युत सिग्नल में बदल देता है जिससे उनके बारे में आसानी से जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
उपयोग –
(i) इस तकनीक का उपयोग समुद्र की गहराई तथा जल के अन्दर उपस्थित वस्तुओं की समुद्र तल से दूरी ज्ञात करने में किया जाता है।
मान लिया पराश्रव्य सिग्नलों के प्रेषण तथा उसी बिन्दु पर उनकी परावर्तित ध्वनि के अभिग्रहण के बीच लगा समय अन्तराल t है। यदि समुद्री जल में पराश्रव्य तरंगों की चाल ७ हो और समुद्र तल की गहराई या जल में स्थिर किसी पिंड की समुद्र तल से दूरी d हो तो
(ii) सोनार तकनीक का उपयोग समुद्री जल में स्थित चट्टानों, पनडुब्बियों, डूबे हुए जहाजों, छुपे हुए प्लावी बर्फ (हिम शैल) आदि का पता लगाने में किया जाता है।

Question - 37 : - एक पनडुब्बी पर लगी एक सोनार युक्ति, संकेत भेजती है और उनकी प्रतिध्वनि 5s पश्चात् ग्रहण करती है। यदि पनडुब्बी से वस्तु की दूरी 8825 m हो तो ध्वनि की चाल की गणना कीजिए।

Answer - 37 : -

वस्तु की पनडुब्बी से दूरी d = 5625 m
ध्वनि द्वारा वस्तु तक जाने तथा परावर्तित होकर वापस आने में लगा समय है = 5 s
ध्वनि द्वारा चली गई कुल दूरी = 2 x d = 2 x 3625 = 7250 m
ध्वनि की चाल, υ = ?
हम जानते हैं कि

Question - 38 : - किसी धातु के ब्लॉक में दोषों का पता लगाने के लिए पराध्वनि का उपयोग कैसे किया जाता है? वर्णन कीजिए।

Answer - 38 : - पराध्वनि का उपयोग धातुओं से बने ब्लॉकों के दोषों का पता लगाने के लिए किया जाता है। धातु केॉकों में विद्यमान दरार या छिद्र जो बाहर से दिखाई नहीं देते, भवन या पुल की संरचना की मजबूती को कम कर देते हैं। पराध्वनि तरंगें धातु के ब्लॉक से गुजारी जाती हैं और प्रेषित तरंगों का पता लगाने के लिए संसूचकों का उपयोग किया जाता है। यदि जरा-सा भी दोष आता है तो पराध्वनि तरंगें परावर्तित हो जाती हैं जो दोष की उपस्थिति को दर्शाती हैं।

Question - 39 : - मनुष्य का कान किस प्रकार कार्य करता है। विवेचना कीजिए।

Answer - 39 : -

ध्वनि कपन द्वारा उत्पन्न होती है। कंपन करता हुआ कोई स्रोत अपने आस-पास की वायु में तरंगें उत्पन्न करता है ये तरंगें संपीडनों तथा विरलनों की सहायता से अनुदैर्ध्य तरंगों के रूप में द्रव्यात्मक माध्यम में संचारित होती हैं। जब ये ध्वनि तरंगें जिनकी आवृत्ति 20 Hz से 20,000 Hz के बीच होती है, हमारे कानों तक पहुँचती है। तो कान के पर्दे में कंपन उत्पन्न होता है जिससे हमारे कानों में श्रवण की संवेदना उत्पन्न होती है।
कान की संरचना तथा कार्यप्रणाली – कान का बाह्य भाग पिन्ना कहलाता है। यह भाग ध्वनि तरंगों को संपीडनों तथा विरलनों के रूप में ग्रहण करता है तथा इन्हें कर्णनाल में भेज देता है। कर्णनाल की त्वचा में बोल तथा सूक्ष्म ग्रंथियाँ होती हैं जिनमें से कुछ पदार्थ निकलता है जिसे कर्णमोम कहते हैं। यह कान को धूल तथा कीड़ों से बचाता है। कर्णनाल के अंतिम भाग में कर्णपट (ear drum) होता है। ध्वनि तरंगें कर्णनाल द्वारा कर्णपट तक पहुँचती हैं। तो पहले कर्णपट की झिल्ली पर दबाव बढ़ता है तथा फिर घटता है, इस प्रकार कर्णपट कंपन करने लगता है।
कर्णपट के अन्दर की सतह की ओर मध्य कर्ण में तीन अस्थियाँ (मुग्दरक, निहाई तथा वलयक स्टीरप) होती हैं जो लीवर का कार्य करती हैं तथा कर्णपट में उत्पन्न कंपन को कई गुना प्रवर्धित कर देती हैं। मध्य कान ध्वनि तरंगों से प्राप्त प्रवर्धित दाब परिवर्तनों को आन्तरिक कान तक पहुँचाता है। आन्तरिक कान इन दाब परिवर्तनों को कोकलिआ (Cochlea) द्वारा विद्युत सिग्नल या संकेतों में बदल देता है। ये विद्युत सिग्नल मस्तिष्क तक श्रवण तंत्रिका द्वारा भेजे जाते हैं जिससे हमें ध्वनि सुनाई देती है।

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