MENU

Chapter 8 d एवं f ब्लॉक के तत्त्व (The d and f Block Elements) Solutions

Question - 11 : -

निम्नलिखित के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए

  1. Cr3+
  2. Pm3+
  3. Cu+
  4. Ce4+
  5. Co2+
  6. Lu2+
  7. Mn2+
  8. Th4+

Answer - 11 : -

  1. Cr3+ : [Ar] 3d3
  2. Pm3+ : [Xe] 4f4
  3. Cu+ : [Ar] 3d10
  4. Ce4+ : [Xe] 4f0
  5. Co2+ : [Ar] 3d7
  6. Lu2+ : [Xe] 4f14 5d1
  7. Mn2+ : [Ar] 3d5
  8. Th4+ : [Rn] 5f0

Question - 12 : - +3 ऑक्सीकरण अवस्था में ऑक्सीकृत होने के सन्दर्भ में Mn2+ के यौगिक Fe2+ के यौगिकों की तुलना में अधिक स्थायी क्यों हैं?

Answer - 12 : -

Mn2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Ar] 3d5 है, जबकि Fe2+ का [Ar] 3d6 है। चूंकि Mn2+ में अर्द्ध-पूर्ण कक्ष (3d5) होती है, जो कि Fe2+ की 3d6 कक्ष से अधिक स्थायी है, इसलिए Mn2+ यौगिक सरलता से Mn3+ में ऑक्सीकृत नहीं होते हैं क्योंकि इनकी द्वितीय आयनन एन्थैल्पी बहुत अधिक होती है। इसके विपरीत, Fe2+ यौगिक कम द्वितीय आयनन एन्थैल्पी के कारण Fe3+ में सरलता से ऑक्सीकृत हो जाता है। यही कारण है कि Mn2+ यौगिक अपनी +3 अवस्था के लिए ऑक्सीकरण के प्रति Fe2+ से अधिक स्थायी होते हैं।

Question - 13 : - संक्षेप में स्पष्ट कीजिए कि प्रथम संक्रमण श्रेणी के प्रथम अर्द्धभाग में बढ़ते हुए परमाणु क्रमांक के साथ +2 ऑक्सीकरण अवस्था कैसे अधिक स्थायी होती जाती है?

Answer - 13 : -

प्रथम संक्रमण श्रेणी में बायें से दाये जाने पर IE1 + IE2 का योग बढ़ता जाता है। इसके परिणामस्वरूप M2+ आयन बनाने की प्रवृत्ति घटती जाती है। यही कारण है कि श्रेणी के प्रथम अर्द्ध भाग में +2 अवस्था अधिकाधिक स्थायी होती है।

Question - 14 : - प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास किस सीमा तक ऑक्सीकरण अवस्थाओं को निर्धारित करते हैं? उत्तर को उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिए।

Answer - 14 : -

जिस ऑक्सीकरण अवस्था में आयनों में पूर्ण भरी या अर्द्ध भरी d कक्ष होती है, वे आयन अधिक स्थायी होते हैं। जैसे Mn की +2 अवस्था इसकी अन्य ऑक्सीकरण अवस्थाओं की अपेक्षा अधिक स्थायी होती है। जैसे Mn की +2 अवस्था इसकी अन्य ऑक्सीकरण अवस्थाओं की अपेक्षा अधिक स्थायी होती है। क्योंकि Mn2+ में अर्द्ध भरी 3d5 कक्ष होती है। इसी प्रकार Zn की +2 अवस्था इसकी सबसे अधिक स्थायी अवस्था होती है क्योंकि इसमें पूर्ण भरी 3d10 कक्ष होती है।

Question - 15 : - संक्रमण तत्वों की मूल अवस्था में नीचे दिए गए d इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों में कौन-सी ऑक्सीकरण अवस्था स्थायी होगी?
3d3, 3d5, 3d8 
तथा 3d4

Answer - 15 : -

  1. 3d3 (वैनेडियम) : (+2), +3, +4, +5
  2. 3d5 (क्रोमियम) : +3, +4, +6
  3. 3d5 (मैंग्नीज) : +2, +4, +6, +7
  4. 3d8 (कोबाल्ट) : +2, +3
  5. 3d4 : इस विन्यास वाला कोई भी तत्त्व तलस्थ अवस्था में नहीं पाया जाता है।

    Question - 16 : - प्रथम संक्रमण श्रेणी के ऑक्सो-धातुऋणायनों का नाम लिखिए, जिसमें धातु संक्रमण श्रेणी की वर्ग संख्या के बराबर ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करती है।

    Answer - 16 : -

    Cr2O2-7 तथा CrO2-4 में क्रोमियम +6 अवस्था प्रदर्शित करता है, जो कि इसके समूह की संख्या (6) के बराबर है।
    MnO4 
    में Mn + 7 अवस्था प्रदर्शित करता है, जो कि इसकी समूह की संख्या (7) के बराबर है। VO3 में V+ 5 अवस्था प्रदर्शित करता है, जो कि इसकी समूह की संख्या (5) के बराबर है।

    Question - 17 : - लैन्थेनाइड आकुंचन क्या है? लैन्थेनाइड आकुंचन के परिणाम क्या हैं? 

    Answer - 17 : -

    लैन्थेनाइड आकुंचन (LanthanoidContraction) – लैन्थेनाइड श्रेणी में परमाणु क्रमांक बढ़ने पर परमाण्विक तथा आयनिक त्रिज्याएँ एक तत्व से दूसरे तत्व तक घटती हैं, परन्तु यह कमी अत्यन्त कम होती है। उदाहरणार्थ– Ce से Lu तक जाने पर परमाण्विक त्रिज्या 183 pm से 173 pm तक घट जाती है तथा यह कमी केवल 10 pm है। इसी प्रकार Ce3+ से Lu3+ आयन तक जाने पर आयनिक त्रिज्या 103 pm से घटकर 85 pm रह जाती है तथा यह कमी केवल 18 pm है। अत: परमाणु क्रमांक में 14 की वृद्धि के लिए, परमाण्विक तथा आयनिक त्रिज्याओं में होने वाली कमी अत्यन्त कम है। यह कमी अन्य वर्गों तथा आवर्तो के तत्वों की तुलना में अत्यल्प है।

    सारणी-लैन्थेनम तथा लैन्थेनाइडों के परमाण्विक तथा
    आयनिक त्रिज्याओं में परिवर्तन (pm)
    लैन्थेनाइड तत्वों में परमाणु क्रमांक बढ़ने पर उनके परमाणु तथा आयनिक आकारों में होने वाली स्थिर कमी लैन्थेनाइड आकुंचन कहलाती है।
    त्रिसंयोजी लैन्थेनॉइडों (Ln3+) की आयनिक त्रिज्याओं में कमी चित्र-1 में दर्शायी गई है।

    लैन्थेनाइड आकुंचन का कारण (Cause of Lanthanide Contraction) – लेन्थेनाइड श्रेणी में एक तत्व से दूसरे तत्व तक जाने पर नाभिकीय आवेश एक इकाई बढ़ता है तथा एक इलेक्ट्रॉन जुड़ता है। ये नए इलेक्ट्रॉन समानान्तर 4f- उपकोशों में जुड़ते हैं। यद्यपि एक 4f- इलेक्ट्रॉन का दूसरे 4f- इलेक्ट्रॉन पर परिरक्षण प्रभाव (नाभिकीय आवेश से), f- कक्षकों के अत्यन्त विस्तृत आकार के कारण, कम होता है। यद्यपि नाभिकीय आवेश प्रत्येक पद पर एक इकाई बढ़ जाता है, इसलिए परमाणु क्रमांक तथा नाभिकीय आवेश बढ़ने पर प्रत्येक 4f- इलेक्ट्रॉन द्वारा अनुभव किया जाने वाला प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ जाता है, परिणामस्वरूप सम्पूर्ण 4f- इलेक्ट्रॉन कोश प्रत्येक तत्व के जुड़ने पर आकुंचित हो जाता है, यद्यपि यह कमी अत्यन्त अल्प होती है। इसके परिणामस्वरूप परमाणु क्रमांक बढ़ने पर लैन्थेनाइडों के आकार में नियमित हस पाया जाता है। क्रमिक अपचयनों का योग कुल लैन्थेनाइड आकुंचन देता है।

    लैन्थेनाइड आकुंचन के परिणाम (Consequences ofLanthanide Contraction) – लैन्थेनाइड आकुंचन के महत्त्वपूर्ण परिणाम निम्नलिखित हैं
    (1) 
    द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रेणियों की समानता (Resemblance ofsecond and third transition series) – आवर्त सारणी में लैन्थेनाइडों से पहले तथा बाद में आने वाले तत्वों के
    आपेक्षिक गुणों पर इसका महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। अग्रलिखित सारणी से स्पष्ट होता है कि Sc से Y तथा Y से La तक आकार में नियमित वृद्धि होती है।
    सारणी- d-ब्लॉक के तत्वों की परमाणु त्रिज्याएँ (pm में)

    लैन्थेनाइड आकुंचन
    इसी प्रकार हम अन्य वर्गों में आकार में सामान्य वृद्धि की अपेक्षा कर सकते हैं, यद्यपि लैन्थेनाइडों के पश्चात् द्वितीय से तृतीय संक्रमण श्रेणियों में त्रिज्याओं की वृद्धि लगभग नगण्य होती है।
    Ti → Zr → Hf
    V → Nb → Ta
    आदि
    तत्वों के युग्मों; जैसे- Zr – Hf, Nb – Ta, Mo – W आदि के आकार समान (लगभग) होते हैं तथा इन तत्वों के गुण भी समान होते हैं। अत: लैन्थेनाइड आकुंचन के परिणामस्वरूप द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रेणियों के तत्व, प्रथम तथा द्वितीय संक्रमण श्रेणियों के तत्वों की तुलना में परस्पर अत्यधिक समानता रखते हैं।

    (2) लैन्थेनाइडों में समानता (Similarity among lanthanides) – लैन्थेनाइडों की त्रिज्याओं में अत्यन्त अल्प-परिवर्तन के कारण, इनके रासायनिक गुण लगभग समान होते हैं। अतः तत्वों को शुद्ध अवस्था में पृथक्कृत करना अत्यन्त कठिन होता है। पुनरावृत्त प्रभाजी क्रिस्टलन अथवा आयन-विनिमय तकनीकों पर आधारित आधुनिक विधियों द्वारा इनके त्रिसंयोजी आयनों के आकारों में अत्यल्प-अन्तर के आधार पर इन्हें पृथक्कृत किया जाता है। इन विधियों द्वारा तत्वों के गुणों जैसे विलेयता, संकुल आयन निर्माण, जलयोजन आदि में बहुत कम अन्तर के आधार पर इन्हें पृथक्कृत किया जाता है।

    (3) क्षारकता अन्तर (Basicity differences) – लैन्थेनाइड आकुंचन के कारण लैन्थेनाइड आयनों का आकार, परमाणु क्रमांक बढ़ने के साथ नियमित रूप से घटता है। आकार में कमी के फलस्वरूप लैन्थेनाइड आयन तथा OH आयनों के मध्य इनके सहसंयोजक गुण La3+ से Lu3+ तक बढ़ते हैं, इसलिए परमाणु क्रमांक बढ़ने पर हाइड्रॉक्साइडों की क्षारकीय सामर्थ्य घटती है। अत: La(OH)3 अधिकतम क्षारकीय है, जबकि Lu(OH)3 सबसे कम क्षारकीय है।

    Question - 18 : - संक्रमण धातुओं के अभिलक्षण क्या हैं? ये संक्रमण धातु क्यों कहलाती हैं? d- ब्लॉक के तत्वों में कौन-से तत्व संक्रमण श्रेणी के तत्व नहीं कहे जा सकते?

    Answer - 18 : -

    संक्रमण धातुओं के सामान्य अभिलक्षण (GeneralCharacteristics of Transition Elements) – संक्रमण धातुओं (d-ब्लॉक के तत्वों) के सामान्य अभिलक्षण निम्नलिखित हैं

    1. लगभग सभी संक्रमण तत्व अभिधात्विक गुण जैसे उच्च तनन सामर्थ्य (tensile strength), तन्यता (ductility), वर्धनीयता (malleability), उच्च तापीय तथा विद्युत चालकता तथा धात्विक चमक दर्शाते हैं।
    2. मर्करी को छोड़कर, जो कमरे के ताप पर द्रव है, अन्य संक्रमण तत्वों की अभिधात्विक संरचनाएँ होती हैं।
    3. इनके गलनांक तथा क्वथनांक उच्च होते हैं तथा असंक्रमण तत्वों की तुलना में इनकी वाष्पन ऊष्मा उच्च होती है।
    4. s- ब्लॉक तत्वों की तुलना में संक्रमण तत्वों के घनत्व उच्च होते हैं।
    5. d- ब्लॉक के तत्वों की प्रथम आयनन ऊर्जाएँ 5-ब्लॉक के तत्वों से अधिक, परन्तु p-ब्लॉक के तत्वों से कम होती हैं।
    6. इनकी प्रवृत्ति विद्युत धनात्मक होती है।
    7. इनमें से अधिकांश तत्व रंगीन यौगिक बनाते हैं।
    8. इनमें संकुल बनाने की प्रवृत्ति अत्यधिक होती है।
    9. ये अनेक ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित करते हैं।
    10. इनके यौगिक सामान्यतया अनुचुम्बकीय प्रवृत्ति के होते हैं।
    11. ये अन्य धातुओं के साथ मिश्रधातु (alloy) बनाते हैं।
    12. ये कुछ तत्वों; जैसे हाइड्रोजन, बोरॉन, कार्बन, नाइट्रोजन आदि के साथ अन्तराकाशी यौगिक बनाते हैं।
    13. अधिकांश संक्रमण धातुएँ जैसे Mn, Ni, Co, Cr, V, Pt आदि तथा इनके यौगिक उत्प्रेरकों के रूप में प्रयुक्त किए जाते हैं।

    d- ब्लॉक के तत्व संक्रमण धातुएँ कहलाते हैं क्योंकि ये तत्व अधिक विद्युत-धनात्मक 5-ब्लॉक के तत्वों तथा कम विद्युत-धनात्मक s- ब्लॉक के तत्वों से मध्यवर्ती गुण प्रदर्शित करते हैं तथा आवर्त सारणी में इनका स्थान s- तथा p- ब्लॉक के तत्वों के मध्य में है।
    Zn, Cd
    तथा Hg का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास सामान्य सूत्र (n – 1)d10 ns2 से प्रदर्शित किया जाता है। इन तत्वों में कक्षक तलस्थ (सामान्य) अवस्था में तथा साधारण ऑक्सीकरण अवस्थाओं में भी पूर्णपूरित होते हैं अर्थात् इनकी परमाण्विक अवस्था अथवा किसी भी एक आयनिक अवस्था में उपकोश अपूर्ण नहीं होते हैं, इसलिए इन्हें संक्रमण तत्व नहीं कहा जा सकता।

    Question - 19 : - संक्रमण धातुओं के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास किस प्रकार असंक्रमण तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास से भिन्न हैं?

    Answer - 19 : -

    संक्रमण तत्त्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (n – 1)d1 – 10 ns1– 2 प्रकार के होते हैं तथा इस प्रकार इनमें अपूर्ण d-ऑर्बिटल होती है जबकि असंक्रमण तत्त्वों में d-ऑर्बिटल नहीं पायी जाती है। इनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns1 – 2 या ns2 np1– 6 प्रकार के होते हैं।

    Question - 20 : - लैन्थेनाइडों द्वारा कौन-कौन सी ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित की जाती हैं?

    Answer - 20 : -

    लैन्थेनाइडों की ऑक्सीकरण अवस्थाएँ (Oxidation States of Lanthanides) – आवर्त सारणी के वर्ग 3 के सदस्यों से प्रत्याशित होता है कि लेन्थेनाइडों की एकसमान +3 ऑक्सीकरण अवस्था उनकी एक विशेषता है। त्रिधनात्मक ऑक्सीकरण अवस्था 6s2 इलेक्ट्रॉन और एकाकी 5d-इलेक्ट्रॉन अथवा यदि कोई 5d- इलेक्ट्रॉन उपस्थित हो तो f- इलेक्ट्रॉनों में से एक के उपयोग के अनुसार होती है। प्रथम तीन आयनन एन्थैल्पियों का योग अपेक्षाकृत निम्न होता है जिससे ये तत्व उच्च धनविद्युती होते हैं और तत्परता से +3 आयन बना लेते हैं। यद्यपि जलीय विलयन में तथा ठोस अवस्था में सीरियम (Ce4+) चर्तुधनात्मक तथा सैमेरियम, यूरोपियम और इटर्बियम (Sm2+, Eu2+ और Yb2+) द्विधनात्मक आयन दे सकते हैं। अन्य तत्व ठोस अवस्था में +4 अवस्था दे सकते हैं। MX3 का अपचयन केवल MX2 अपितु विशेष स्थिति में जटिल अपचयित स्पीशीज भी दे सकता है।

    लैन्थेनाइडों के लिए +3 ऑक्सीकरण अवस्था की धारणा पर्याप्त दृढ़ हो गई है तथा अन्य ऑक्सीकरण अवस्थाओं को प्रायः असंगतकहा जाता है। विभिन्न लैन्थेनाइडों की ऐसी असंगत ऑक्सीकरण अवस्थाएँ अग्र प्रकार प्रदर्शित की गई हैं

    यदि हम यह मान लें कि रिक्त, अर्द्धपूर्ण या पूर्ण f- उपकोश के साथ विशेष स्थायित्व सम्बन्धित होता है। तो एक निश्चित सीमा तक +2 तथा +4 ऑक्सीकरण अवस्थाओं की उपस्थिति का इलेक्ट्रॉनिक संरचनाओं के साथ सामंजस्य किया जा सकता है। इस प्रकार La, Gd और Lu केवल त्रिधनात्मक आयन निर्मित करते हैं क्योंकि तीन इलेक्ट्रॉनों के निष्कासन से La3+ आयन में उत्कृष्ट गैस का विन्यास बन जाता है। Gd3+ तथा Lu3+ आयनों में क्रमशः स्थायी विन्यास 4f7 तथा 4f14 से इलेक्ट्रॉनों का निष्कासन नहीं होता क्योंकि M3+ आयनों की अपेक्षा M2+ अथवा M+ आयनों की जालक अथवा जलयोजन ऊर्जाएँ लघु M3+ आयनों के लवणों की योगात्मक जालक या जलयोजन ऊर्जाओं की अपेक्षा कम होगी।

    सबसे अधिक स्थायी द्वि या चतुर्धनात्मक आयन उन तत्वों द्वारा निर्मित होते हैं जो ऐसा करके f9, f7 तथा f14 विन्यास प्राप्त कर सकते हों। इस प्रकार सीरियम +4 ऑक्सीकरण अवस्था में आकर f0 विन्यास प्राप्त कर लेता है। यूरोपियम तथा इटर्बियम +2 ऑक्सीकरण अवस्था में क्रमशः f7 तथा f14 विन्यास प्राप्त कर लेते हैं। ये तथ्य इस धारणा का समर्थन करते प्रतीत होते हैं कि लैन्थेनाइडों के लिए +3 के अतिरिक्त दूसरी ऑक्सीकरण अवस्थाओं का अस्तित्व निर्धारित करने में f0, f7 तथा f14 विन्यासों का विशेष स्थायित्व महत्त्वपूर्ण है, परन्तु यह तर्क कम निर्णयात्मक हो जाता है जब हम देखते हैं कि सैमेरियम और थूलियम f6 तथा f13 विन्यास रखते हुए M2+ आयन बनाते हैं, M+ आयन नहीं।

    साथ ही प्रेजियोडिमियम एवं नियोडिमियम f1 तथा f2 विन्यासों के साथ M4+ आयन बनाते हैं, परन्तु कोई पंच या षट-संयोजक प्रकार के आयन नहीं बनाते। इसमें सन्देह नहीं है कि Sm (II) और विशेषकर Tm (II), Pr (IV) तथा Nd (IV) अवस्थाएँ बहुत अस्थायी हैं, परन्तु यह विचार भी संदिग्ध है कि f0, f7 या f14 विन्यास के केवल समीप पहुँच जाना भी स्थायित्व के लिए सहायक होता है चाहे ऐसा कोई विन्यास वस्तुतः प्राप्त नहीं भी हो। Nd2+ (f4)का अस्तित्व यह विश्वास करने के लिए विशेष निर्णयात्मक प्रमाण है कि यद्यपि f0, f7, f14 विन्यास का स्थायित्व ऑक्सीकरण अवस्थाओं का स्थायित्व निर्धारण करने में एक घटक हो सकता है, यद्यपि अन्य ऊष्मागतिकीय तथा गतिकीय घटक विशेष भी हैं जिनका समान या अधिक महत्त्व है।

    Free - Previous Years Question Papers
    Any questions? Ask us!
    ×