Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र Solutions
Question - 21 : - शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है-कैसे? स्पष्ट कीजिए।
Answer - 21 : -
शैलेंद्र एक आदर्शवादी संवेदनशील और भावुक कवि थे। शैलेंद्र ने अपने जीवन में एक ही फिल्म का निर्माण किया, जिसका नाम ‘तीसरी कसम’ था। यह एक संवेदनात्मक और भावनापूर्ण फिल्म थी। शांत नदी का प्रवाह और समुद्र की गहराई उनके निजी जीवन की विशेषता थी और यही विशेषता उनकी फिल्म में भी दिखाई देती है। ‘तीसरी कसम’ का नायक हीरामन अत्यंत सरल हृदयी और भोला-भाला नवयुवक है, जो केवल दिल की जुबान समझता है, दिमाग की नहीं। उसके लिए मोहब्बत के सिवा किसी चीज़ का कोई अर्थ नहीं। ऐसा ही व्यक्तित्व शैलेंद्र का था, हीरामन को धन की चकाचौंध से दूर रहनेवाले एक देहाती के रूप में प्रस्तुत किया गया है। शैलेंद्र स्वयं भी यश और धनलिप्सा से कोसों दूर थे। इसके साथ-साथ फ़िल्म ‘तीसँरी कसम’ में दुख को भी सहज स्थिति में जीवन सापेक्ष प्रस्तुत किया गया है। शैलेंद्र अपने जीवन में भी दुख को सहज रूप से जी लेते थे। वे दुख से घबराकर उससे दूर नहीं भागते थे। इस प्रकार स्पष्ट है कि शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है।
Question - 22 : - लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था, आप कहाँ तक सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।
Answer - 22 : -
लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई कवि हृदय ही बना सकता था-से हम पूरी तरह से सहमत हैं, क्योंकि कवि कोमल भावनाओं से ओतप्रोत होता है। उसमें करुणा एवं सादगी और उसके विचारों में शांत नदी का प्रवाह तथा समुद्र की गहराई का होना जैसे गुण कूट-कूट कर भरे होते हैं। ऐसे ही विचारों से भरी हुई ‘तीसरी कसम’ एक ऐसी फ़िल्म है, जिसमें न केवल दर्शकों की रुचियों को ध्यान रखा गया है, बल्कि उनकी गलत रुचियों को परिष्कृत (सुधारने) करने की भी कोशिश की गई है।
Question - 23 : - …. वह तो एक आदर्शवादी भावुक कवि था, जिसे अपार संपत्ति और यश तक की इतनी कामना नहीं थी जितनी आत्मसंतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी।
Answer - 23 : -
इसका आशय है कि शैलेंद्र एक आदर्शवादी भावुक हृदय कवि थे। उन्हें अपार संपत्ति तथा लोकप्रियता की कामना इतनी नहीं थी, जितनी आत्मतुष्टि, आत्मसंतोष, मानसिक शांति, मानसिक सांत्वना आदि की थी, क्योंकि ये सद्वृत्तियाँ धन से नहीं खरीदी जा सकतीं, न ही इन्हें कोई भेंट कर सकता है। इन गुणों की अनुभूति तो अंदर से ईश्वर की कृपा से ही होती है। इन्हीं अलौकिक अनुभूतियों से परिपूर्ण थे-शैलेंद्र, तभी तो वे आत्मतुष्टि चाहते थे।
Question - 24 : - उनका यह दृढ़ मंतव्य था कि दर्शकों की रुचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहिए। कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे।
Answer - 24 : -
एक आदर्शवादी उच्चकोटि के गीतकार व कवि हृदय शैलेंद्र ने रुचियों की आड़ में कभी भी दर्शकों पर घटिया गीत थोपने का प्रयास नहीं किया। फिल्में आज के दौर में मनोरंजन का एक सशक्त माध्यम हैं। समाज में हर वर्ग के लोग फिल्म देखते हैं और उनसे प्रभावित भी होते हैं। आजकल जिस प्रकार की फ़िल्मों का निर्माण होता है। उनमें से अधिकतर इस स्तर की नहीं होती कि पूरा परिवार एक साथ बैठकर देख सके। फ़िल्म निर्माताओं की भाँति वे दर्शकों की पसंद का बहाना बनाकर निम्नस्तरीय कला अथवा साहित्य का निर्माण नहीं करना चाहते थे। उनका मानना था कि कलाकार का दायित्व है कि वह दर्शकों की रुचि का परिष्कार करें। उनका लक्ष्य दर्शकों को नए मूल्य व विचार प्रदान करना था।
Question - 25 : - व्यथा आदमी को पराजित नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संदेश देती है।
Answer - 25 : -
इसका अर्थ है कि व्यथा, पीड़ा, दुख आदि व्यक्ति को कमज़ोर या हतोत्साहित अवश्य कर देते हैं, लेकिन उसे पराजित नहीं करते बल्कि उसे मजबूत बनाकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। हर व्यथा आदमी को जीवन की एक नई सीख देती है। व्यथा की कोख से ही तो सुख का जन्म होता है इसलिए व्यथा के बाद, दुख के बाद आने वाला सुख अधिक सुखकारी होता है।
Question - 26 : - दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने वाले की समझ से परे है।
Answer - 26 : -
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म गहरी संवेदनात्मक तथा भावनात्मक थी। उसे अच्छी रुचियों वाले संस्कारी मन और कलात्मक लोग ही समझ-सराह सकते थे। कवि शैलेंद्र की फ़िल्म निर्माण के पीछे धन और यश प्राप्त करने की अभिलाषा नहीं थी। वे इस फ़िल्म के माध्यम से अपने भीतर के कलाकार को संतुष्ट करना चाहते थे। इस फ़िल्म को बनाने के पीछे शैलेंद्र की जो भावना थी उसे केवल धन अर्जित करने की इच्छा करने वाले व्यक्ति नहीं समझ सकते थे। इस फिल्म की गहरी संवेदना उनकी समझ और सोच से ऊपर की बात है।
Question - 27 : - उनके गीत भाव-प्रवण थे- दुरूह नहीं।
Answer - 27 : -
इसका अर्थ है कि शैलेंद्र के द्वारा लिखे गीत भावनाओं से ओत-प्रोत थे, उनमें गहराई थी, उनके गीत जन सामान्य के लिए लिखे गए गीत थे तथा गीतों की भाषा सहज, सरल थी, क्लिष्ट नहीं थी, तभी तो आज भी इनके द्वारा लिखे गए गीत गुनगुनाए जाते हैं। ऐसा लगता है, मानों हृदय को छूकर उसके अवसाद को दूर करते हैं।
Question - 28 : - पाठ में आए ‘से’ के विभिन्न प्रयोगों से वाक्य की संरचना को समझिए।
Answer - 28 : -
- राजकपूर ने एक अच्छे और सच्चे मित्र की हैसियत से शैलेंद्र को फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह भी किया।
- रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ।
- फ़िल्म इंडस्ट्री में रहते हुए भी वहाँ के तौर-तरीकों से नावाकिफ़ थे।
- दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने के गणित जानने वाले की समझ से परे थी।
- शैलेंद्र राजकपूर की इस याराना दोस्ती से परिचित तो थे
Question - 29 : - पाठ में आए निम्नलिखित मुहावरों से वाक्य बनाइए-
चेहरा मुरझाना, चक्कर खा जाना, दो से चार बनाना, आँखों से बोलना
Answer - 29 : -
मुहावरा – वाक्य प्रयोग
चेहरा मुरझाना – आतंकियों ने जैसे ही अपने एरिया कमांडर की मौत की बात सुनी उनके चेहरे मुरझा गए।
चक्कर खा जाना – क्लर्क के घर एक करोड़ की नकदी पाकर सी०बी०आई० अधिकारी भी चक्कर खा गए।
दो से चार बनाना – आई०पी०एल० दो से चार बनाने का खेल सिद्ध हो रहा है।
आँखों से बोलना – मीना कुमारी का अभिनय देखकर लगता था कि वे आँखों से बोल रही हैं।
Question - 30 : - निम्नलिखित शब्दों के हिंदी पर्याय दीजिए-
Answer - 30 : -
1 शिद्दत – …….
2 याराना – ……….
3 बमुश्किल – ………
4 खालिस – ………..
5 नावाकिफ़ – ……..
6 यकीन – …………
7 हावी – …………
8 रेशा – ……….
उत्तर-
1 शिद्दत – श्रद्धा
2 याराना – मित्रता
3 बमुश्किल – कठिनाई से
4 खालिस – शुद्ध
5 नावाकिफ़ – अनभिज्ञ
6 यकीन – विश्वास
7 हावी – आक्रामक
8 रेशा – पतले-पतले धागे