Question -
Answer -
शैलेंद्र एक आदर्शवादी संवेदनशील और भावुक कवि थे। शैलेंद्र ने अपने जीवन में एक ही फिल्म का निर्माण किया, जिसका नाम ‘तीसरी कसम’ था। यह एक संवेदनात्मक और भावनापूर्ण फिल्म थी। शांत नदी का प्रवाह और समुद्र की गहराई उनके निजी जीवन की विशेषता थी और यही विशेषता उनकी फिल्म में भी दिखाई देती है। ‘तीसरी कसम’ का नायक हीरामन अत्यंत सरल हृदयी और भोला-भाला नवयुवक है, जो केवल दिल की जुबान समझता है, दिमाग की नहीं। उसके लिए मोहब्बत के सिवा किसी चीज़ का कोई अर्थ नहीं। ऐसा ही व्यक्तित्व शैलेंद्र का था, हीरामन को धन की चकाचौंध से दूर रहनेवाले एक देहाती के रूप में प्रस्तुत किया गया है। शैलेंद्र स्वयं भी यश और धनलिप्सा से कोसों दूर थे। इसके साथ-साथ फ़िल्म ‘तीसँरी कसम’ में दुख को भी सहज स्थिति में जीवन सापेक्ष प्रस्तुत किया गया है। शैलेंद्र अपने जीवन में भी दुख को सहज रूप से जी लेते थे। वे दुख से घबराकर उससे दूर नहीं भागते थे। इस प्रकार स्पष्ट है कि शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है।