Chapter 5 पृष्ठ रसायन (Surface Chemistry) Solutions
Question - 31 : - “साबुन की क्रिया पायसीकरण एवं मिसेल बनने के कारण होती है, इस पर टिप्पणी लिखिए।
Answer - 31 : -
यह सत्य है कि साबुन की क्रिया पायसीकरण एवं मिसेल बनने के कारण होती है। इसे समझने के लिए हम साबुन के विलयन का उदाहरण लेते हैं। पानी में घुलनशील साबुन उच्च वसा अम्लों के सोडियम अथवा पोटैशियम लवण होते हैं जिन्हें RCOO– M+ द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। उदाहरणार्थ– सोडियम स्टिएरेट, जो साबुन का एक प्रमुख घटक है, जल में विलीन करने पर C17H35COO– एवं Na+ आयनों में विघटित हो जाता है। किन्तु C17H35COO– आयन के दो भाग होते हैं–एक लम्बी हाइड्रोकार्बन श्रृंखला (जिसे ‘अध्रुवीय पुच्छ’ भी कहते हैं), जो जलविरागी (जल प्रतिकर्षी) होती है तथा ध्रुवीय समूह COO– (जिसे ‘ध्रुवीय आयनिक शीर्ष’ भी कहते हैं) जो जलरागी (जल को स्नेह करने वाला) होता है।
C17H35COO– आयन पृष्ठ पर इस प्रकार उपस्थित रहते हैं कि उनका COO– समूह जल में तथा हाइड्रोकार्बन श्रृंखला C17H35 पृष्ठ से दूर रहती है। परन्तु क्रान्तिक मिसेल सान्द्रता पर ऋणायन विलयन के स्थूल में खिंच आते हैं एवं गोलीय आकार में इस प्रकार एकत्रित हो जाते हैं कि इनकी हाइड्रोकार्बन श्रृंखलाएँ गोले के केन्द्र की ओर इंगित होती हैं तथा COO– भाग गोले के पृष्ठ पर रहता है। इस प्रकार बना पुंज आयनिक मिसेल (ionic micelle) कहलाता है। इन मिसेलों में इस प्रकार के 100 तक आयन हो सकते हैं।
इस प्रकार अपमार्जकों जैसे सोडियम लॉरिल सल्फेट, CH3(CH2)4SO–4 Na+ में लम्बी हाइड्रोकार्बन श्रृंखला सहित –
SO2-4 ध्रुवीय समूह है, अत: मिसेल बनने की क्रियाविधि साबुनों के सामन ही है।
साबुन की शोधन-क्रिया इस तथ्य पर आधारित है कि साबुन के अणु तेल की बूंदों के चारों ओर इस प्रकार से मिसेल बनाते हैं कि स्टिएरेट आयन का जलविरागी भाग बूंदों के अन्दर होता है तथा जलरागी भाग चिकनाई की बूंदों के बाहर (चित्र-6) काँटों की तरह निकला रहता है। चूंकि ध्रुवीय समूह जल से अन्योन्यक्रिया कर सकते हैं, अत: स्टिएरेट आयनों से घिरी हुई तेल की बूंदें जल में खिंच जाती हैं तथा गन्दी सतह से हट जाती है। इस प्रकार साबुन तेलों तथा वसाओं का पायसीकरण (emulsification) करके धुलाई में सहायता करता है। छोटी गोलियों के चारों ओर का ऋण-आवेशित आवरण उन्हें एकसाथ आकर पुंज बनाने से रोकता है।
Question - 32 : - विषमांगी उत्प्रेरण के चार उदाहरण लिखिए।
Answer - 32 : -
- अमोनिया निर्माण का हैबर प्रक्रम :
N2 + 3H2 2NH3 - सल्फ्यूरिक अम्ल निर्माण का सम्पर्क प्रक्रम :
2SO2 + O2 2SO3 - नाइट्रिक अम्ल निर्माण का ओस्टवाल्ड प्रक्रम :
4NH3 + 5O2 4NO + 6H2O - वनस्पति तेल का हाइड्रोजनीकरण :
वनस्पति तेल (l) + H2 (g) वनस्पति घी (s)
Question - 33 : - उत्प्रेरक की सक्रियता एवं वरणक्षमता का क्या अर्थ है?
Answer - 33 : -
उत्प्रेरक की सक्रियता (Activity of catalyst) – उत्प्रेरक की किसी अभिक्रिया के वेग को बढ़ाने की क्षमता उत्प्रेरकीय सक्रियता कहलाती है।
उदाहरणार्थ– H2(g) + O2 (g) → कोई अभिक्रिया नहीं H2 (g) + O2 (g)+ [Pt] → H2O (l) + [Pt] [विस्फोट के साथ तीव्र अभिक्रिया होती है।] बहुत सीमा तक एक उत्प्रेरक की सक्रियता रसोवशोषण की प्रबलता पर निर्भर करती है। सक्रिय होने के लिए अभिकारक, उत्प्रेरक पर पर्याप्त प्रबलता से अधिशोषित होने चाहिए। यद्यपि वे इतनी प्रबलता से अधिशोषित नहीं होने चाहिए कि वे गतिहीन हो जाएँ एवं अन्य अभिकारकों के लिए उत्प्रेरक की सतह पर कोई स्थान रिक्त न रहे।
उत्प्रेरक की वरणक्षमता (Selectivity of catalyst) – किसी उत्प्रेरक की वरणात्मकता उसकी किसी अभिक्रिया को दिशा देकर एक विशेष उत्पाद बनाने की क्षमता है। उदाहरणार्थ– H2 एवं CO से प्रारम्भ करके एवं भिन्न उत्प्रेरकों के प्रयोग से हम भिन्न- भिन्न उत्पाद प्राप्त कर सकते हैं।
इसी प्रकार एथेनॉल का विहाइड्रोजनीकरण तथा निर्जलीकरण दोनों सम्भव हैं, परन्तु उचित उत्प्रेरक की। उपस्थिति में केवल एक अभिक्रिया ही होती है।
- CH3CH2OH CH3CHO + H2 (विहाइड्रोजनीकरण)
- CH3CH2OH CH2= CH2 + H2O (निर्जलीकरण)
अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उत्प्रेरक के कार्य की प्रकृति अत्यधिक विशिष्ट होती है अर्थात् कोई पदार्थ एक विशेष अभिक्रिया के लिए ही उत्प्रेरक हो सकता है, सभी अभिक्रियाओं के लिए नहीं। इसका अर्थ यह है कि एक पदार्थ जो एक अभिक्रिया में उत्प्रेरक का कार्य करता है, अन्य अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करने में असमर्थ हो सकता है।
Question - 34 : - जीओलाइटों द्वारा उत्प्रेरण के कुछ लक्षणों का वर्णन कीजिए।
Answer - 34 : -
जिओलाइटों द्वारा उत्प्रेरण के लक्षण (Features of Catalysis by Zeolites) –
1. जिओलाइट जलयोजित ऐलुमिनो-सिलिकेट होते हैं जिनकी त्रिविमीय नेटवर्क संरचना होती है तथा इनके सरन्ध्रों में जल के अणु निहित होते हैं।
2. जिओलाइटों को उत्प्रेरक के रूप में प्रयुक्त करने के लिए, इन्हें गर्म किया जाता है जिससे सरन्ध्रों में उपस्थित जलयोजन को जल निकल जाता है तथा सरन्ध्र रिक्त हो जाते हैं।
3. सरन्ध्रों का आकार 260 से 740 pm के मध्य होता है, अतः केवल वे अणु ही इन सरन्ध्रों में अधिशोषित हो पाते हैं जिनका आकार सरन्ध्रों में प्रवेश करने हेतु पर्याप्त रूप से कम होता है। इसलिए ये आण्विक जाल (molecular sieves) या आकृति वरणात्मक उत्प्रेरक (shape selective catalyst) की भाँति कार्य करते हैं।
4. जिओलाइट पेट्रोरसायन उद्योग में हाइड्रोकार्बनों के भंजन एवं समावयवन में उत्प्रेरक के रूप में व्यापक रूप से प्रयुक्त किए जा रहे हैं। ZSM- 5 पेट्रोलियम उद्योग में प्रयुक्त होने वाला एक महत्त्वपूर्ण जिओलाइट उत्प्रेरक है। यह ऐल्कोहॉल का निर्जलीकरण करके हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण बनता है और उन्हें सीधे ही गैसोलीन (पेट्रोल) में परिवर्तित कर देता है।
जहाँ x, 5 से 10 के मध्य परिवर्तित होता है। ZSM- 5 का विस्तारित नाम Zeolite Sieve of Molecular Porosity-5′ है।
Question - 35 : - आकृति वरणात्मक उत्प्रेरण क्या है?
Answer - 35 : - आकृति वरणात्मक उत्प्रेरण वह उत्प्रेरकीय क्रिया होती है जो उत्प्रेरक की छिद्र संरचना तथा अभिकारक/उत्पाद अणुओं के आकार पर निर्भर करती है। हाइड्रोकार्बनों के भंजन में जीओलाइट (ZSM- 5) का उपयोग आकृति वरणात्मक उत्प्रेरण का उदाहरण है।
Question - 36 : - निम्नलिखित पदों (शब्दों) को समझाइए –
1. विद्युत कण-संचलन
2. स्कन्दन
3. अपोहन
4. टिण्डल प्रभाव।
Answer - 36 : - 1. विद्युत कण-संचलन (Electrophoresis) – कोलॉइडी कणों पर धनात्मक़ या ऋणात्मक विद्युत आवेश होता है। जिससे ये कण विद्युत क्षेत्र के प्रभाव में विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोड की ओर अभिगमन करते हैं। विद्युत क्षेत्र में कोलॉइडी कणों के विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोड की ओर अभिगमन (migration) की घटना को विद्युत कण-संचलन कहते हैं। कोलॉइडी कणों की कैथोड की ओर की गति को धन कण-संचलन (cataphoresis) तथा ऐनोड की ओर गति को ऋण कण-संचलन (anaphoresis) कहते हैं जैसे फेरिक हाइड्रॉक्साइड सॉल के कोलॉइडी कण धनावेशित होते हैं और ये कैथोड की ओर गति करते हैं। इसकी सहायता से कोलॉइडी विलयनों में कोलॉइडी कणों पर आवेश का अध्ययन किया जाता है।
2. स्कन्दन (Coagulation) – किसी कोलॉइडी विलयन अर्थात् सॉल को स्थायी बनाने के लिए उसमें अल्प-मात्रा में विद्युत-अपघट्य मिलाना आवश्यक होता है, परन्तु विद्युत अपघट्य की अधिक मात्रा कोलॉइडी विलयन का अवक्षेपण कर देती है। कोलॉइड विलयनों को विद्युत-अपघट्य के विलयनों द्वारा अवक्षेपित करने की क्रिया को स्कन्दन कहते हैं। इस क्रिया में कोलॉइडी कणों की सतह पर विद्युत-अपघट्य से उनकी प्रकृति के विपरीत आवेशित आयन अधिशोषित हो जाता है। जिससे उनका आकार बढ़ जाता है, फलस्वरूप वे अवक्षेपित (स्कन्दित) हो जाते हैं; जैसे- As2S3 सॉल में विद्युत-अपघट्य BaCl2 डालने पर, As2S3 स्कन्दित (अवक्षेपित) हो जाता है क्योंकि विद्युत अपघट्य (BaCl2 Ba2+ + 2Cl–) के Ba2+ आयन As2S3 के ऋणात्मक आवेश को उदासीन कर देते हैं, फलस्वरूप उसका आकार बढ़ जाता है और वह अवक्षेपित हो जाता है।
3. अपोहन (Dialysis) – यह विधि इस तथ्य पर आधारित है कि घुलित पदार्थों के अणु व आयन चर्म-पत्र झिल्ली (parchment paper) में से सरलतापूर्वक विसरित हो जाते हैं, जबकि कोलॉइडी कण उसमें से विसरित नहीं हो पाते या कठिनाई से विसरित होते हैं।
चर्म- पत्र झिल्ली द्वारा कोलॉइडी विलयन में घुलित पदार्थों को पृथक् करने की विधि को अपोहन (dialysis) कहते हैं।
चर्म-पत्र झिल्ली से बनी एक थैली या किसी बेलनाकार पात्र, जिसे अपोहक (dialyser) कहते हैं, में कोलॉइडी विलयन भरकर उसे बहते हुए जल में निलम्बित करते हैं। कोलॉइडी विलयन में उपस्थित घुलित पदार्थ के कण झिल्ली में से होकर बहते जल के साथ बाहर निकल जाते हैं। कुछ दिनों में शुद्ध कोलॉइडी विलयन प्राप्त हो जाता है। अपोहन की दर को बढ़ाने के लिए विद्युत क्षेत्र भी प्रयुक्त किया जाता है जिसे विद्युत-अपोहन (electrodialysis) कहते हैं। अत: कोलॉइडी विलयनों के शोधन हेतु अपोहन विधि को प्रयुक्त करते हैं।
4. टिण्डल प्रभाव (Tyndall effect) – जिस प्रकार अँधेरे कमरे में प्रकाश की किरण में धूल के कण चमकते हुए दिखाई पड़ते हैं, उसी प्रकार लेन्सों से केन्द्रित प्रकाश को कोलॉइडी विलयन पर डालकर समकोण दिशा में रखे एक सूक्ष्मदर्शी से देखने पर कोलॉइडी कण अँधेरे में घूमते हुए दिखाई देते हैं। इस घटना के आधार पर वैज्ञानिक टिण्डल ने कोलॉइडी विलयनों में एक प्रभाव का अध्ययन किया जिसे टिण्डल प्रभाव कहा गया, अतः कोलॉइडी कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन (scattering of light) के कारण टिण्डल प्रभाव होता है।
कोलॉइडी कणों का आकार प्रकाश की तरंगदैर्घ्य (wavelength of light) से कम होता है, अतः प्रकाश की किरणों के कोलॉइडी कणों पर पड़ने पर कण प्रकाश की ऊर्जा का अवशोषण करके स्वयं आत्मदीप्त (self-illuminate) हो जाते हैं। अवशोषित ऊर्जा के पुनः छोटी तरंगों के प्रकाश के रूप में प्रकीर्णत होने से नीले रंग का एक शंकु दिखता है जिसे टिण्डल शंकु (Tyndall cone) कहते हैं और यह टिण्डल घटना कहलाती है।
Question - 37 : - इमल्शनों (पायस) के चार उपयोग लिखिए।
Answer - 37 : -
इमल्शनों (पायस) के चार उपयोग निम्नलिखित हैं –
1. फेन प्लवन प्रक्रम द्वारा सल्फाइड अयस्क का सान्द्रण इमल्सीफिकेशन पर आधारित होता है।
2. साबुन तथा डिटर्जेन्ट की शोधन क्रिया गन्दगी तथा साबुन के विलयन के मध्य इमल्शन बनने के कारण ही होती है।
3. दूध जल में वसा का इमल्शन होता है।
4. विभिन्न सौन्दर्य प्रसाधन; जैसे- क्रीम, हेयर डाई, शैम्पू आदि, अनेक औषधियाँ तथा लेप आदि इमल्शन होते हैं। इमल्शन के रूप में ये अधिक प्रभावी होते हैं।
Question - 38 : - मिसेल क्या हैं? मिसेल निकाय का एक उदाहरण दीजिए।
Answer - 38 : - मिसेल (Micelles) – कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जो कम सान्द्रताओं पर सामान्य प्रबल विद्युत-अपघट्यों के समान व्यवहार करते हैं, परन्तु उच्च सान्द्रताओं पर कणों का पुंज बनने के कारण कोलॉइड के समान व्यवहार करते हैं। इस प्रकार के पुंजित कण मिसेल कहलाते हैं। उदाहरणार्थ– जल परिक्षेपण माध्यम में साबुन के अणुओं के स्टिएरेट की विभिन्न इकाइयाँ पुंजित कोलॉइडी आकार के कण बनाती हैं जो मिसेल कहलाते हैं। मिसेल को सहचारी कोलॉइड भी कहते हैं। जल में साबुन का सान्द्र विलयन एक मिसेल निकाय कहलाता है।
Question - 39 : - निम्न पदों को उचित उदाहरण सहित समझाइए –
1. ऐल्कोसॉल
2. ऐरोसॉल
3. हाइड्रोसॉल।
Answer - 39 : -
1. ऐल्कोसॉल (Alcosol) – वह कोलॉइड जिसमें परिक्षेपण माध्यम के रूप में ऐल्कोहॉल का प्रयोग किया जाता है, ऐल्कोसॉल कहलाता है। उदाहरणार्थ– एथिल ऐल्कोहॉल में सेलुलोस नाइट्रेट का कोलॉइडी सॉल (कोलोडियन)।
2. ऐरोसॉल (Aerosol) – वह कोलॉइड जिसमें परिक्षेपण माध्यम वायु या गैस हो, ऐरोसॉल कहलाता है। उदाहरणार्थ– कोहरा।
3. हाइड्रोसॉल (Hydrosol) – वह कोलॉइड जिसमें परिक्षेपण माध्यम जल हो, हाइड्रोसॉल कहलाता है। उदाहरणार्थ– स्टार्च सॉल।।
Question - 40 : - “कोलॉइड एक पदार्थ नहीं पदार्थ की एक अवस्था है।’ इस कथन पर टिप्पणी कीजिए।
Answer - 40 : - कोई पदार्थ (ठोस, द्रव या गैस) विशेष विधियों के प्रयोग से कोलॉइडी अवस्था में परिवर्तित किया जा सकता है। उदाहरणार्थ– NaCl जल में वास्तविक विलयन (true solution) बनाता है लेकिन बेन्जीन में कोलॉइडी विलयन बनाता है। साबुन ऐल्कोहॉल में वास्तविक विलयन लेकिन जल में कोलॉइडी विलयन बनाता है।