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Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर (Alcohols Phenols and Ethers) Solutions

Question - 21 : - क्यूमीन से फीनॉल बनाने की अभिक्रिया का समीकरण दीजिए। 

Answer - 21 : -


Question - 22 : - क्लोरोबेन्जीन से फीनॉल बनाने की रासायनिक अभिक्रिया लिखिए। 

Answer - 22 : -


Question - 23 : - एथीन के जलयोजन से एथेनॉल प्राप्त करने की क्रियाविधि लिखिए।

Answer - 23 : - किसी अम्ल की उपस्थिति में एथीन का जल से सीधा योग नहीं होता है। एथीन को सर्वप्रथम सान्द्र H2SO4 में प्रवाहित किया जाता है जिससे एथिल हाइड्रोजन सल्फेट बनता है।
H2SO4 → H+ + SO2OH

एथिल हाइड्रोजन सल्फेट एथिल हाइड्रोजन सल्फेट को जल के साथ उबालकर जल-अपघटन करने पर एथेनॉल बनता है।

Question - 24 : - आपको बेन्जीन, सान्द्र H2SO4 और NaOH दिए गए हैं। इन अभिकर्मकों के उपयोग द्वारा फीनॉल के विरचन की समीकरण लिखिए।

Answer - 24 : -


Question - 25 : -
आप निम्नलिखित को कैसे संश्लेषित करेंगे? दर्शाइए।
1. एक उपयुक्त ऐल्कीन से 1-फेनिलएथेनॉल
2. SN 2 अभिक्रिया द्वारा ऐल्किल हैलाइड के उपयोग से साइक्लोहेक्सिलमेथेनॉल
3. एक उपयुक्त ऐल्किल हैलाइड के उपयोग से पेन्टेन-1-ऑल।

Answer - 25 : - 1. तनु H2SO4 की उपस्थिति में एथिनिलबेन्जीन से जल का योग 1-फेनिलएथेनॉल देता है।

2. जलीय NaOH द्वारा साइक्लोहेक्सिलमेथिल ब्रोमाइड का जल-अपघटन साइक्लोहेक्सिलमेथेनॉल देता है।
3. जलीय NaOH द्वारा 1-ब्रोमोप्रोपेन का जल-अपघटन प्रोपेन-1-ऑल देता है।

Question - 26 : - ऐसी दो अभिक्रियाएँ दीजिए जिनसे फीनॉल की अम्लीय प्रकृति प्रदर्शित होती हो, फीनॉल की अम्लता की तुलना एथेनॉल से कीजिए।

Answer - 26 : - फीनॉल की अम्लीय प्रकृति प्रदर्शित करने वाली अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं
(i) 
सोडियम से अभिक्रिया (Reaction withsodium) – फीनॉल सक्रिय धातुओं; जैसेसोडियम से अभिक्रिया करके हाइड्रोजन मुक्त करता है।

(ii) NaOH से अभिक्रिया (Reaction with NaOH)– फीनॉल NaOH में घुलकर सोडियम फीनॉक्साइड तथा जल बनाता है।
फीनॉल तथा एथेनॉल की अम्लता की तुलना
(Comparison of Acidity of Phenol and Ethanol)
एथेनॉल की तुलना में फीनॉल अधिक अम्लीय होता है। इसका कारण यह है कि फीनॉल से एक प्रोटॉन निकल जाने के बाद प्राप्त फोनॉक्साइड आयन अनुनाद द्वारा स्थायित्व प्राप्त कर लेता है, जबकि एथॉक्साइड आयन (एथेनॉल से एक प्रोटॉन निकलने के बाद) स्थायी नहीं होता है।

Question - 27 : - समझाइए कि ऑर्थों-नाइट्रोफीनॉल, ऑर्थों-मेथॉक्सीफीनॉल से अधिक अम्लीय क्यों होता है।

Answer - 27 : - NO2 समूह के प्रबल –R तथा -[ प्रभाव के कारण O-H आबन्ध पर इलेक्ट्रॉन घनत्व घट जाता है, अत: प्रोटॉन आसानी से मुक्त हो जाता है।

प्रोटॉन त्यागने के पश्चात् शेष बचा o-नाइट्रोफीनॉक्साइड आयन अनुनाद द्वारा स्थायित्व प्राप्त करता है।
ऑर्थों-नाइट्रोफीनॉक्साइड आयन अनुनाद स्थायी होता है, अत: 0- नाइट्रोफीनॉल एक प्रबल अम्ल है। दूसरी तरफ OCH3 समूह के +R प्रभाव के कारण O–H आबन्ध पर इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ जाता है, अत: प्रोटॉन का निष्कासन कठिन हो जाता है।
अब o-मेथॉक्सीफोनॉक्साइड आयन जो कि प्रोटॉन के खोने के बाद शेष रहता है, अनुनाद के कारण विस्थायी (destablized) हो जाता है।

दो ऋणावेश परस्पर प्रतिकर्षित करते हैं तथा 0-मेथॉक्सीफीनॉक्साइड आयन को विस्थायी (destablize) करते हैं, अत: o-नाइट्रोफीनॉल, o-मेथॉक्सीफीनॉल से अधिक अम्लीय होता है।

Question - 28 : - समझाइए कि बेन्जीन वलय से जुड़ा–OH समूह उसे इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन के प्रति कैसे सक्रियित करता है?

Answer - 28 : - फीनॉल को निम्नलिखित संरचनाओं को अनुनादी संकर माना जाता है

–OH समूह का + R प्रभाव बेन्जीन वलय पर इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ा देता है जिससे इलेक्ट्रॉनस्नेही की आक्रमण सरल हो जाता है। अतः –OH समूह की उपस्थिति से बेन्जीन वलय इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन क्रियाओं के प्रति सक्रियित होती है। चूंकि ऑथों तथा पैरा स्थानों पर इलेक्ट्रॉन घनत्व आपेक्षिक रूप से उच्च होता है, अत: इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन मुख्यत: ऑर्थों तथा पैरा स्थानों पर अधिक होता है।

Question - 29 : - निम्नलिखित अभिक्रियाओं के लिए समीकरण दीजिए
(i)
प्रोपेन-1-ऑल का क्षारीय KMnO4 के साथ ऑक्सीकरण
(ii)
ब्रोमीन की CS2 में फीनॉल के साथ अभिक्रिया
(iii)
तनु HNO3 की फीनॉल से अभिक्रिया
(iv)
फीनॉल की जलीय NaOH की उपस्थिति में क्लोरोफॉर्म के साथ अभिक्रिया।

Answer - 29 : -


Question - 30 : -
निम्नलिखित को उदाहरण सहित समझाइए –
1. कोल्बे अभिक्रिया 
2. राइमर-टीमैन अभिक्रिया
3. विलियमसन ईथर संश्लेषण
4. असममित ईथर।

Answer - 30 : - 1. पाठ्यनिहित प्रश्न संख्या 9 (ii) देखिए।
2.
पाठ्यनिहित प्रश्न संख्या 9 (i) देखिए।
3. 
विलियमसन ईथर संश्लेषण (Williamson EtherSynthesis) – यह सममित और असममित ईथरों को बनाने की एक महत्त्वपूर्ण प्रयोगशाला विधि है। इस विधि में ऐल्किल हैलाइड की सोडियम ऐल्कॉक्साइड के साथ अभिक्रिया कराई जाती है।

प्रतिस्थापित (द्वितीयक अथवा तृतीयक) ऐल्किल समूह युक्त ईथर भी इस विधि द्वारा बनाए जा सकते हैं। इस अभिक्रिया में प्राथमिक ऐल्किल हैलाइड पर ऐल्कॉक्साइड आयन का (SN 2) आक्रमण होता है।
यदि ऐल्किल हैलाइड प्राथमिक होता है तो अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। द्वितीयक एवं तृतीयक ऐल्किल हैलाइडों की अभिक्रिया में विलोपन, प्रतिस्पर्धा में प्रतिस्थापन से आगे होता है। यदि तृतीयक ऐल्किल हैलाइड का उपयोग किया जाए तो उत्पाद के रूप में केवल ऐल्कीन प्राप्त होती है तथा कोई ईथर नहीं बनता। उदाहरणार्थ– CH3ONa की (CH3)3C-BFके साथ अभिक्रिया द्वारा केवल 2-मेथिलप्रोपीन प्राप्त होती है।
4. असममित ईथर (Unsymmetricalethers) – यदि ऑक्सीजन परमाणु से जुड़े ऐल्किल या ऐरिल समूह भिन्न-भिन्न होते हैं तो ईथर को असममित ईथर कहा जाता है। उदाहरणार्थएथिल मेथिल ईथर, मेथिल फेनिल ईथर आदि।

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