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Chapter 4 रासायनिक आबन्धन एवं आण्विक संरचना (Chemical Bonding and Molecular Structure) Solutions

Question - 31 : - इलेक्ट्रॉनों के आबन्धी युग्म तथा एकाकी युग्म से आप क्या समझते हैं? प्रत्येक को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।

Answer - 31 : - दो आबन्धी सहसंयोजी परमाणुओं के बीच उपस्थित इलेक्ट्रॉन्स के सहभागी युग्म, आबन्धी युग्म कहलाते हैं। वे इलेक्ट्रॉन्स युग्म जो परमाणु पर उपस्थित होते हैं परन्तु सहसंयोजी आबन्ध निर्माण में भाग नहीं लेते हैं, एकाकी युग्म कहलाते हैं। उदाहरणार्थ-

Question - 32 : - सिग्मा तथा पाई आबन्ध में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

Answer - 32 : - सिग्मा पाई आबन्धों में अन्तर (Differences between Sigmaand pi Bonds)

Question - 33 : - संयोजकता आबन्ध सिद्धान्त के आधार पर H2 अणु के विरचन की व्याख्या कीजिए।

Answer - 33 : -

संयोजक्ता आबन्ध सिद्धान्त को सर्वप्रथम हाइटलर तथा लंडन (Heitler and London) ने सन् 1927 में प्रस्तुत किया था जिसका विकास पॉलिंग (Pauling) तथा अन्य वैज्ञानिकों ने बाद में किया। इस सिद्धान्त का विवेचन परमाणु कक्षकों, तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों, परमाणु कक्षकों के अतिव्यापन और संकरण तथा विचरण (variation) एवं अध्यारोपण (superposition) के सिद्धान्तों के ज्ञान पर आधारित है। इस सिद्धान्त के आधार पर H2 अणु के विरचन की व्याख्या निम्नवत् की जा सकती है

H(g)+H(g) → H2(g)+433 kJ mol-1

यह प्रदर्शित करता है कि हाइड्रोजन अंणु की ऊर्जा हाइड्रोजन परमाणुओं की तुलना में कम है। सामान्यत: जब कभी परमाणु संयोजित होकर अणु बनाते हैं, तब ऊर्जा में अवश्य ही कमी आती है जो स्थायित्व को बढ़ा देती है।
मानो हाइड्रोजन के दो परमाणु A B, जिनके नाभिक क्रमशः NA  NB हैं तथा उनमें उपस्थित इलेक्ट्रॉनों को eA और eB द्वारा दर्शाया गया है, एक-दूसरे की ओर बढ़ते हैं। जब ये दो परमाणु एक-दूसरे से अत्यधिक दूरी पर होते हैं, तब उनके बीच कोई अन्योन्यक्रिया नहीं होती। ज्यों-ज्यों दोनों परमाणु एक-दूसरे के समीप आते-जाते हैं, त्यों-त्यों उनके बीच आकर्षण तथा प्रतिकर्षण बल उत्पन्न होते जाते हैं।
आकर्षण बल निम्नलिखित में उत्पन्न होते हैं-

  1. एक परमाणु के नाभिक तथा उसके इलेक्ट्रॉनों के बीच NA – eANB – eB
  2. एक परमाणु के नाभिक तथा दूसरे परमाणु के इलेक्ट्रॉनों के बीच NA – eB, NB – eA

इसी प्रकार प्रतिकर्षण बल निम्नलिखित में उत्पन्न होते हैं-

  1. दो परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनों के बीच eA – eB तथा
  2. दो परमाणुओं के नाभिकों के बीच NA – NB

आकर्षण बल दोनों परमाणुओं को एक-दूसरे के पास लाते हैं, जबकि प्रतिकर्षण बल उन्हें दूर करने का प्रयास करते हैं (चित्र-8)
प्रायोगिक तौर पर यह पाया गया है कि नए आकर्षण बलों का मान नए प्रतिकर्षण बलों के मान से अधिक होता है। इसके परिणामस्वरूप दोनों परमाणु एक-दूसरे के समीप आते हैं तथा उनकी स्थितिज ऊर्जा कम हो जाती है। अन्ततः ऐसी स्थिति जाती है कि नेट आकर्षण बल, प्रतिकर्षण बल के बराबर हो जाता है और निकाय की ऊर्जा न्यून स्तर पर पहुँच जाती है। इस अवस्था में हाइड्रोजन के. परमाणुआबन्धितकहलाते हैं और एक स्थायी अणु बनाते हैं जिसकी आबन्ध-लम्बाई 74 pm होती है।

चूंकि हाइड्रोजन के दो परमाणुओं के बीच आबन्ध बनने पर ऊर्जा मुक्त होती है, इसलिए हाइड्रोजन अणु दो पृथक् परमाणुओं की अपेक्षा अधिक स्थायी होता है। इस प्रकार मुक्त ऊर्जाआबन्ध एन्थैल्पीकहलाती है।
यह चित्र-9 में दिए गए आरेख के संगत होती है। विलोमत: H2 के एक मोल अणुओं के वियोजन के लिए 433 kJ ऊर्जा की आवश्यकता होती है, इसे आबन्ध वियोजन ऊर्जा कहा जाता है।

H2(g) 433 kJ mol-1 → H(g)+H(g)


    Question - 34 : - परमाणु कक्षकों के रैखिक संयोग से आण्विक कक्षक बनने के लिए आवश्यक शर्तों को लिखिए।

    Answer - 34 : -

    परमाणु कक्षकों के रैखिक संयोग से आण्विक कक्षकों के निर्माण के लिए निम्नलिखित शर्ते अनिवार्य हैं-

    1. संयोग करने वाले परमाणु कक्षकों की ऊर्जा समान या लगभग समान होनी चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि एक ls कक्षक दूसरे ls कक्षक से संयोग कर सकता है, परन्तु 2s कक्षक से नहीं; क्योकि 2s कक्षक की ऊर्जा ls कक्षक की ऊर्जा से कहीं अधिक होती है। यह सत्य नहीं है, यदि परमाणु भिन्न प्रकार के हैं।
    2. संयोग करने वाले परमाणु कक्षकों की आण्विक अक्ष के परितः समान सममिति होनी चाहिए। परिपाटी के अनुसार, z-अक्ष को आण्विक अक्ष मानते हैं। यहाँ यह तथ्य महत्त्वपूर्ण है कि समान या लगभग समान ऊर्जा वाले परमाणु कक्षक केवल तभी संयोग करेंगे, जब उनकी सममिति समान है, अन्यथा नहीं। उदाहरणार्थ-2p, परमाणु केक्षक दूसरे परमाणु के 2p, कक्षक से संयोग करेगा, परन्तु 2p, या 22, कक्षकों से नहीं; क्योंकि उनकी सममितियाँ समान नहीं हैं।
    3. संयोग करने वाले परमाणु कक्षकों को अधिकतम अतिव्यापन करना चाहिए। जितना अधिक अतिव्यापन होगा, आण्विक कक्षकों के नाभिकों के बीच इलेक्ट्रॉन घनत्व उतना ही अधिक होगा।

    Question - 35 : - आण्विक कक्षक सिद्धान्त के आधार पर समझाइए कि Bey अणु का अस्तित्व क्यों नहीं होता?

    Answer - 35 : -

    Be का परमाणु क्रमांक 4 है। इसका अर्थ है कि Be2 के आण्विक कक्षक में 8 इलेक्ट्रॉन भरे जाएँगे। इसका आण्विक कक्षक विन्यास है-

    KK (σ2s)2 (σ*2s)2

    चूँकि आबन्ध कोटि शून्य प्राप्त होती है; अत: Be2 अणु का अस्तित्व नहीं होता।

    Question - 36 : - निम्नलिखित स्पीशीज के आपेक्षिक स्थायित्व की तुलना कीजिए तथा उनके चुम्बकीय गुण इंगित कीजिए-
    O2,0+2, 02 (
    सुपर ऑक्साइड) तथा O2-2 (परऑक्साइड)

    Answer - 36 : -

    दी गई स्पीशीज की आबन्ध कोटि इस प्रकार हैं-

    O2 (2.0), O+2 (2.5), O2 (1.5), O2-2 (1.0)

    इनके स्थायित्व का क्रम इस प्रकार होगा-

    O+2 > O2 > O2 > O2-2

    इनके चुम्बकीय गुण निम्नलिखित हैं-

    1. O2 अनुचुम्बकीय है।
    2. O+2 अनुचुम्बकीय है।
    3. O2 अनुचुम्बकीय है।
    4. O2-2 प्रतिचुम्बकीय है।

    Question - 37 : - कक्षकों के निरूपण में उपयुक्त धन (+) तथा ऋण (-) चिह्नों का क्या महत्त्व होता है?

    Answer - 37 : - जब संयोजित होने वाले परमाणु कक्षकों की पालियों (lobes) के चिह्न समान (अर्थात् + तथा + या – तथा:-) होते हैं, तब आबन्धी आण्विक कक्षक बनते हैं। जब संयोजित होने वाले परमाणु कक्षकों की पालियों के चिह्न असमान (अर्थात् + तथा -) होते हैं, तब प्रतिआबन्धी आण्विक कक्षक बनते हैं।

    Question - 38 : - PCl5 अणु में संकरण का वर्णन कीजिए। इसमें अक्षीय आबन्ध विषुवतीय आबन्धों की अपेक्षा अधिक लम्बे क्यों होते हैं?

    Answer - 38 : - PCl5 अणु में sp3d-संकरण(sp3d -hybridisation in PCl5 molecule)-फॉस्फोरस परमाणु (Z=15) की तलस्थ अवस्था इलेक्ट्रॉनिक विन्यास को नीचे दर्शाया गया है। फॉस्फोरस की आबन्ध निर्माण परिस्थितियों में 3s कक्षक से एक इलेक्ट्रॉन अयुग्मित होकर रिक्त 3s2z कक्षक में प्रोन्नत हो जाता है। इस प्रकार फॉस्फोरस की उत्तेजित अवस्था के विन्यास को इस प्रकार दर्शाया जा सकता है-

    इस प्रकार पाँच कक्षक (एक s, तीन p तथा एक d कक्षक) संकरण के लिए उपलब्ध होते हैं। इनके संकरण द्वारा पाँच sp3d संकर कक्षक प्राप्त होते हैं, जो त्रिकोणीय द्वि-पिरामिड के पाँच कोनों की ओर उन्मुख होते हैं, जैसा चित्र-10 में दर्शाया गया है।

    यहाँ यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि त्रिकोणीय द्वि-पिरामिडी ज्यामिति में सभी आबन्ध कोण बराबर नहीं होते हैं। PCl5 में फॉस्फोरस के पाँच sp3 संकर कक्षक क्लोरीन परमाणुओं के अर्द्ध-पूरित कक्षकों में अतिव्यापन द्वारा पाँच PCl5 सिग्मा-आबन्ध बनाते हैं। इनमें से तीन P—Cl आबन्ध एक तल में होते हैं तथा परस्पर 120° का कोण बनाते हैं। इन्हेंविषुवतीय आबन्ध, (equatorial) कहते हैं। अन्य दो P—CI आबन्ध क्रमशः विषुवतीय तल के ऊपर और नीचे होते हैं तथा तल से 90° का कोण बनाते हैं। इन्हें अक्षीय आबन्ध (axial) कहते हैं। चूंकि अक्षीय आबन्ध इलेक्ट्रॉन युग्मों में विषुवतीय आबन्धी-युग्मों से अधिक प्रतिकर्षण अन्योन्यक्रियाएँ होती हैं; अतः ये आबन्ध विषुवतीय आबन्धों से लम्बाई में कुछ अधिक तथा प्रबलता में कुछ कम होते हैं। इसके परिणामस्वरूप PCl5 अत्यधिक क्रियाशील होता है।

    Question - 39 : - हाइड्रोजन आबन्ध की परिभाषा दीजिए। यह वाण्डरवाल्स बलों की अपेक्षा प्रबल होते हैं या दुर्बल?

    Answer - 39 : -

    हाइड्रोजन आबन्ध को उस आकर्षण बल के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो एक अणु के हाइड्रोजन परमाणु को दूसरे अणु के विद्युत-ऋणात्मक परमाणु (F,0 या N) से बॉधता है। यह वाण्डरवाल्स बलों की अपेक्षा दुर्बल होते हैं।

    Question - 40 : - आबन्ध कोटि से आप क्या समझते हैं? निम्नलिखित में आबन्ध कोटि का परिकलन कीजिए-
    N2, O2, O+2 
    तथा O2

    Answer - 40 : - किसी अणु यो आयन में दो परमाणुओं के बीच आबन्धों की संख्याआबन्ध कोटि कहलाती है। गणितीय रूप में, यह आबन्धी तथा अनाबन्धी कक्षकों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या में अन्तर के आधे के बराबर होती है। अर्थात्

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