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Chapter 9 पर्यावरण और धारणीय विकास Solutions

Question - 11 : -
क्या पर्यावरण संकट एक नवीन परिघटना है? यदि हाँ, तो क्यों?

Answer - 11 : -

प्राचीन काल में जब सभ्यता शुरू हुई थी, पर्यावरण संसाधनों की माँग और सेवाएँ उनकी पूर्ति से बहुत कम थीं। संक्षेप में प्रदूषण की मात्रा अवशोषण क्षमता के अन्दर थी और संसाधन निष्कर्षण की दर इन संसाधनों के पुनः सृजन की दर से कम थी। अत: पर्यावरण समस्याएँ उत्पन्न नहीं हुईं। लेकिन आधुनिक युग में जनसंख्या विस्फोट और जनसंख्या की पूर्ति के लिए औद्योगिक क्रान्ति के आगमन से उत्पादन और उपभोग के लिए संसाधनों की माँग संसाधनों की पुन: सृजन की दर से बहुत अधिक हो गई है। इसके अलावा अपशिष्ट पदार्थों का उत्पादन अवशोषक क्षमता से ज्यादा हो गया है।

Question - 12 : -
इसके दो उदाहरण दें
(क) पर्यावरणीय संसाधनों का अति प्रयोग
(ख) पर्यावरणीय संसाधनों का दुरुपयोग।

Answer - 12 : -

(क) पर्यावरणीय संसाधनों का अति प्रयोग 

  1. भूमि जल का पुमैः पूर्ण क्षमता से अधिक निष्कर्षण,
  2. आधारणीय जलाऊ लकड़ी और चारे का निष्कर्षण।।
(ख) पर्यावरणीय संसाधनों का दुरुपयोग

  1. नगरीकरण
  2. औद्योगीकरण।

Question - 13 : -
पर्यावरण की चार प्रमुख क्रियाओं का वर्णन कीजिए। महत्त्वपूर्ण मुद्दों की व्याख्या कीजिए। पर्यावरणीय हानि की भरपाई की अवसर लागतें भी होती हैं। व्याख्या कीजिए।

Answer - 13 : -

पर्यावरण की चार प्रमुख क्रियाएँ

(1) यह संसाधनों की पूर्ति करता है।
(2) यह अवशेष को समाहित कर लेता है।
(3) यह जननिक एवं जैविक विविधता प्रदान करके जीवन का पोषण करता है।
(4) यह सौन्दर्य प्रदान करता है।

महत्त्वपूर्ण मुद्दे

(1) वैश्विक उष्णता
(2) ओजोन अपक्षय
(3) वायु प्रदूषण |
(4) जल प्रदूषण
(5) वन-कटाव
(6) भू-अपरदन।
(7) अनेक महत्त्वपूर्ण संसाधनों का विलुप्त हो जाना।
पर्यावरणीय असंगतियाँ ठीक करने के लिए सरकार विशाल राशि व्यय करने के लिए मजबूर है। जल और वायु की गुणवत्ता की गिरावट से साँस और जल-संक्रमण रोगों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है; फलस्वरूप व्यय भी बढ़ा है। हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना चाहिए। संसाधनों का पुनः सृजन करने वाली तकनीक का विकास करना चाहिए। नगरीकरण एवं औद्योगीकरण पर नियन्त्रण लगाना चाहिए। इस प्रकार पर्यावरण सन्तुलन को बनाए रखने की अवसर लागत होती है।

Question - 14 : -
पर्यावरणीय संसाधनों की पूर्ति माँग के उत्क्रमण की व्याख्या कीजिए।

Answer - 14 : -

प्राचीनकाल में जब सभ्यता शुरू हुई थी, पर्यावरण संसाधनों की माँग और सेवाएँ उनकी पूर्ति से बहुत कम थीं। उस समय आधुनिकीकरण, नगरीकरण एवं औद्योगीकरण की दर भी कम थी। अवशिष्ट पदार्थों का उत्पादन भी पर्यावरण की अवशोषी क्षमता के भीतर था। इसलिए पर्यावरण समस्याएँ उत्पन्न नहीं लेकिन आधुनिक युग में तीव्र जनसंख्या वृद्धि नगरीकरण, आधुनिकीकरण एवं औद्योगीकरण के फलस्वरूप उत्पादन और उपभोग के लिए संसाधनों की माँग संसाधनों के पुन: सृजन की दर से बहुत अधिक हो गई एवं अपशिष्ट पदार्थों का उत्पादन पर्यावरण की अवशोषण क्षमता के बाहर हो गया है। तरह से, पर्यावरण की गुणवत्ता के मामले में माँग-पूर्ति सम्बन्ध पूरी तरह उल्टे हो गए हैं। अब हमारे सामने पर्यावरण संसाधनों और सेवाओं की माँग अधिक है, लेकिन उनकी पूर्ति सीमित है।

Question - 15 : - वर्तमान पर्यावरण संकट का वर्णन करें।

Answer - 15 : - आज आर्थिक विकास के फलस्वरूप प्राकृतिक संसाधनों का बहुत अधिक शोषण हो रहा है। भूमि पर निरन्तर फसलें उगाने में उसकी उत्पादकता कम होती जा रही है। खनिज पदार्थों; जैसे–पेट्रोल, लोहा, कोयला, सोना-चाँदी आदि का खनन ज्यादा होने से उनके भण्डार में कमी होने लगी है। कारखानों और यातायात के साधनों से निकले धुएँ और गन्दगी न वायु एवं जल को प्रदूषित कर दिया है जिस कारण अनेक श्वसन एवं जल संक्रमित बीमारियों ने जन्म ले लिया है। अपशिष्ट पदार्थों का उत्पादन अवशोषण क्षमता से बाहर हो गया है। तीव्र एवं गहन विदोहन से अनेक प्राकृतिक संसाधन समाप्ति की ओर हैं। पर्यावरण क्षरण से वैश्विक उष्णता एवं ओजोन अपक्षय आदि चुनौतियाँ पैदा हो गई हैं।

Question - 16 : -
भारत में विकास के दो गम्भीर नकारात्मक पर्यावरण प्रभावों को उजागर करें। भारत की पर्यावरण समस्याओं में एक विरोधाभास है-एक तो यह निर्धनताजनित है और दूसरे जीवन-स्तर में सम्पन्नता का कारण भी है। क्या यह सत्य है?

Answer - 16 : -

भारत में विकास गतिविधियों के फलस्वरूप पर्यावरण के सीमित संसाधनों पर दबाव पड़ रहा है। उनके साथ-साथ मनुष्य का स्वास्थ्य एवं कल्याण भी प्रभावित हुए हैं। भारत की अत्यधिक गम्भीर पर्यावरणीय समस्याओं में वायु प्रदूषण, दूषित जल, मृदा संरक्षण, वन्य कटान और वन्य-जीवन की विलुप्ति है। भारत में कुछ वरीयता वाले मामले निम्नवत् हैं।

  1. भूमि अपक्षय, |
  2. जैव विविधता का क्षय,
  3. शहरी क्षेत्रों में वाहन से उत्पन्न वायु प्रदूषण
  4. शुद्ध जल प्रबन्धन,
  5. ठोस अपशिष्ट प्रबन्धन।
भारत के पर्यावरण को दो तरफ से खतरा है-
एक तो निर्धनता के कारण पर्यावरण का अपक्षय और दूसरा खतरा साधन सम्पन्नता और तेजी से बढ़ते हुए औद्योगिक क्षेत्र के प्रदूषण से है। भारत में भूमि का अपक्षय विभिन्न मात्रा और रूपों में हुआ है, जोकि मुख्य रूप से कुछ अनियोजित प्रबन्धन एवं प्रयोग का परिणाम है। भारत के शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण बहुत अधिक है, जिसमें वाहनों का सर्वाधिक योगदान है। इसके अतिरिक्त तीव्र औद्योगीकरण और थर्मल पॉवर संयन्त्रों के कारण भी वायु प्रदूषण होता है।

Question - 17 : -
धारणीय विकास क्या है?

Answer - 17 : -

धारणीय विकास वह प्रक्रिया है जो आर्थिक विकास के फलस्वरूप प्राप्त होने वाले दीर्घकालिक शुद्ध लाभों को वर्तमान तथा भावी पीढ़ी दोनों के लिए अधिकतम करती है।

Question - 18 : -
अपने आस-पास के क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए धारणीय विकास की चार रणनीतियाँ | सुझाइए।।

Answer - 18 : -

धारणीय विकास वंह प्रक्रिया है जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करती है परन्तु भावी पीढ़ी की आवश्यकताएँ पूरी करने की योग्यता को कोई हानि नहीं पहुँचाती। धारणीय विकास की रणनीतियाँ ये चार रणनीतियाँ निम्नलिखित हैं

(1) ऊर्जा के गैर पारम्परिक स्रोतों का उपयोग-ऊर्जा के पारम्परिक स्रोत जैसे थर्मल और हाइड्रो पॉवर संयन्त्र; पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। थर्मल पॉवर संयन्त्र बड़ी मात्रा में ग्रीन हाउस गैस-कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं तथा बड़ी मात्रा में इनसे निकले धुएँ के कण जल एवं वायु को प्रदूषित करते हैं। इसके अतिरिक्त हाइड्रो पॉवर परियोजनाओं से वन जलमग्न हो जाते हैं और नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में हस्तक्षेप करते हैं। अत: इन सब पर्यावरणीय समस्याओं से बचने के लिए हमें गैर-पारम्परिक स्रोत; जैसे-वायु, शक्ति और सौर किरणों का प्रयोग करना चाहिए। .

(2) वायु शक्ति- जिन क्षेत्रों में हवा की गति तीव्र होती है वहाँ पवन चक्की से बिजली प्राप्त की जा | सकती है। ऊर्जा के इस गैर-पारम्परिक स्रोत से पर्यावरण को किसी प्रकार की क्षति नहीं होती है।

(3) ग्रामीण क्षेत्रों में एल०पी०जी व गोबर गैस- गाँवों में रहने वाले लोग अधिकतर ईंधन के रूप में लकड़ी, उपलों और अन्य जैविक पदार्थों का प्रयोग करते हैं जिस कारण वन विनाश, हरित-क्षेत्र में कमी, मवेशियों के गोबर का अप्रत्यय और वायु प्रदूषण जैसे अनेक प्रतिकूल प्रभाव होते हैं। आज सरकार इस स्थिति में सुधार करने के लिए एल०पी०जी० गैस सस्ती दरों पर उपलब्ध करा रही है। इसके अतिरिक्त पर्याप्त मात्रा में गोबर गैस संयन्त्र भी लगाए जा रहे हैं। |

(4) शहरी क्षेत्रों में उच्च दाब प्राकृतिक गैस– दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में उच्च दाब प्राकृतिक गैस (CNG) का ईंधन के रूप में प्रयोग होने से वायु प्रदूषण में काफी कमी आई है।

Question - 19 : -
धारणीय विकास की परिभाषा में वर्तमान और भावी पीढियों के बीच समता के विचार की व्याख्या करें।

Answer - 19 : -

धारणीय विकास से अभिप्राय विकास की उस प्रक्रिया से है जो भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने की योग्यता को बिना कोई हानि पहुँचाए वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करती है। उपर्युक्त परिभाषा में आवश्यकता की अवधारणा का सम्बन्ध संसाधनों के वितरण से है। संसाधनों का वितरण इस प्रकार से हो कि सभी की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाए और सभी को बेहतर जीवन जीने का मौका मिले। सभी की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए संसाधनों के पुनर्वितरण की आवश्यकता होगी जिससे बुनियादी स्तर पर निर्धनों को भी लाभ हो। इस प्रकार की समानता का मापन आय, वास्तविक आय, शैक्षिक सेवाओं, देखभाल, सफाई, जलापूर्ति के रूप में किया जा सकता है।

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