Question -
Answer -
स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर प्रतिबंध लगा रखा था। विदेशी प्रतिस्पर्धा से देश के उत्पादकों को संरक्षण प्रदान करने के लिए इसे अनिवार्य माना गया। 1950 एवं 1960 के दशक में उद्योगों की स्थापना हुई और इस अवस्था में इन नवोदित उद्योगों को आयात में प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति नहीं दी गई। इसलिए भारत ने केवल अनिवार्य चीजों, जैसे–मशीनरी, उर्वरक और पेट्रोलियम के आयात की ही अनुमति दी।
सन् 1991 में आर्थिक नीति में परिवर्तन किया गया। सरकार ने निश्चय किया कि भारतीय उत्पादकों को विश्व के उत्पादकों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी जिससे देश के उत्पादकों के प्रदर्शन में सुधार होगा और वे अपनी गुणवत्ता में सुधार करेंगे। इसलिए विदेशी व्यापार एवं निवेश पर से अवरोधकों को काफी हद तक हटा दिया गया। इसका अर्थ है कि वस्तुओं का सुगमता से आयात किया जा सकेगा और विदेशी कंपनियाँ यहाँ अपने कार्यालय और कारखाने स्थापित कर सकेंगी। सरकार द्वारा अवरोधकों एवं प्रतिबंधों को हटाने की प्रक्रिया को ही उदारीकरण कहते हैं।