Chapter 9 अब कैसे छूटे राम नाम ऐसी लाल तुझ बिनु Solutions
Question - 11 : - उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए −
उदाहण : कोय − कोई , जे – जो
- ज्यों —————- कछु —————-
- नहिं —————- कोय —————-
- धनि —————- आखर —————-
- जिय —————- थोरे —————-
- होय —————- माखन —————-
- तरवारि —————- सींचिबो —————-
- मूलहिं —————- पिअत —————-
- पिआसो —————- बिगरी —————-
- आवे —————- सहाय —————-
- ऊबरै —————- बिनु —————-
- बिथा —————- अठिलैहैं —————-
- परिजाय —————-
Answer - 11 : -
- ज्यों – जैसे कछु – कुछ
- नहि – नहीं कोय – कोई
- धनि – धन्य आखर – अक्षर
- जिय – जी थोरे – थोड़े
- होय – होना माखन – मक्खन
- तरवारि – तलवार सींचिबो – सींचना
- मूलहिं – मूल को पिअत – पीना
- पिआसो – प्यासा बिगरी – बिगड़ी
- आवे – आए सहाय – सहायक
- ऊबरै – उबरना बिनु – बिना
- बिथा – व्यथा अठिलैहैं – हँसी उड़ाना
- परिजाए – पड़ जाए
Question - 12 : - पहले पद में भगवान और भक्त की जिन-जिन चीज़ों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए।
Answer - 12 : -
पहले पद में भगवान और भक्त की तुलना निम्नलिखित चीज़ों से की गई हैं−
(1) भगवान की घन बन से, भक्त की मोर से
(2) भगवान की चंद्र से, भक्त की चकोर से
(3) भगवान की दीपक से, भक्त की बाती से
(4) भगवान की मोती से, भक्त की धागे से
(5) भगवान की सुहागे से, भक्त की सोने से
(6) भगवान की चंदन से, भक्त की पानी से
Question - 13 : - पहले पद की प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद-सौंदर्य आ गया है, जैसे- पानी, समानी आदि। इस पद में से अन्य तुकांत शब्द छाँटकर लिखिए।
Answer - 13 : -
मोरा चकोरा
दासा रैदासा
बाती राती
धागा सुहागा
Question - 14 : - पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबद्ध हैं। ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए −
उदाहरण : दीपक बाती
……………. ………….
……………. …………..
…………….. …………..
…………….. …………..
Answer - 14 : -
मोती धागा
घन बन मोर
सुहागा सोना
चंदन पानी
दासा स्वामी
Question - 15 : - दूसरे पद में कवि ने ‘गरीब निवाजु’ किसे कहा है? स्पष्ट कीजिए।
Answer - 15 : - ‘गरीब निवाजु’ का अर्थ है, गरीबों पर दया करने वाला। कवि ने भगवान को ‘गरीब निवाजु’ कहा है क्योंकि ईश्वर ही गरीबों का उद्धार करते हैं, सम्मान दिलाते हैं, सबके कष्ट हरते हैं और भवसागर से पार उतारते हैं।
Question - 16 : - दूसरे पद की ‘जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
Answer - 16 : - ‘जाकी छोति जगत कउ लागै’ का अर्थ है जिसकी छूत संसार के लोगों को लगती है और ‘ता पर तुहीं ढरै’ का अर्थ है उन पर तू ही (दयालु) द्रवित होता है। पूरी पंक्ति का अर्थ है गरीब और निम्नवर्ग के लोगों को समाज सम्मान नहीं देता। उनसे दूर रहता है। परन्तु ईश्वर कोई भेदभाव न करके उन पर दया करते हैं, उनकी मद्द करते हैं, उनकी पीड़ा हरते हैं।
Question - 17 : - ‘रैदास’ ने अपने स्वामी को किन-किन नामों से पुकारा है?
Answer - 17 : - रैदास ने अपने स्वामी को गुसईया, गरीब निवाज़, गरीब निवाज़ लाला प्रभु आदि नामों से पुकारा है।
Question - 18 : - निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए −
मोरा, चंद, बाती, जोति, बरै, राती, छत्रु, धरै, छोति, तुहीं, गुसइआ
Answer - 18 : -
मोरा – मोर
चंद – चन्द्रमा
बाती – बत्ती
बरै – जले
राती – रात
छत्रु – छत्र
धरै – रखे
छोति – छुआछूत
तुहीं – तुम्हीं
राती – रात
गुसइआ – गौसाई
Question - 19 : - नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए −
(क) जाकी अँग-अँग बास समानी
(ख) जैसे चितवत चंद चकोरा
(ग) जाकी जोति बरै दिन राती
(घ) ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै
(ङ) नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै
Answer - 19 : -
(क) कवि के अंग-अंग मे राम-नाम की सुगंध व्याप्त हो गई है। जैसे चंदन को पानी के साथ रगड़ने पर सुंगधित लेप बनती है, उसी प्रकार राम-नाम के लेप की सुंगधि उसके अंग-अंग में समा गई है कवि इसकी अनुभूति करता है।
(ख) चकोर पक्षी अपने प्रिय चाँद को एकटक निहारता रहता है, उसी तरह कवि अपने प्रभु राम को भी एकटक निहारता रहता है। इसीलिए कवि ने अपने को चकोर कहा है।
(ग) ईश्वर दीपक के समान है जिसकी ज्योति हमेशा जलती रहती है। उसका प्रकाश सर्वत्र सभी समय रहता है।
(घ) भगवान को लाल कहा है कि भगवान ही सबका कल्याण करता है इसके अतिरिक्त कोई ऐसा नहीं है जो गरीबों को ऊपर उठाने का काम करता हो।
(ङ) कवि का कहना है कि ईश्वर हर कार्य को करने में समर्थ हैं। वे नीच को भी ऊँचा बना लेता है। उनकी कृपा से निम्न जाति में जन्म लेने के उपरांत भी उच्च जाति जैसा सम्मान मिल जाता है।
Question - 20 : - रैदास के इन पदों का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
Answer - 20 : -
पहले पद का केंद्रिय भाव − जब भक्त के ह्रदय में एक बार प्रभु नाम की रट लग जाए तब वह छूट नहीं सकती। कवि ने भी प्रभु के नाम को अपने अंग-अंग में समा लिया है। वह उनका अनन्य भक्त बन चुका है। भक्त और भगवान दो होते हुए भी मूलत: एक ही हैं। उनमें आत्मा परमात्मा का अटूट संबंध है।
दूसरे पद में − प्रभु सर्वगुण सम्पन्न सर्वशक्तिमान हैं। वे निडर है तथा गरीबों के रखवाले हैं। ईश्वर अछूतों के उद्धारक हैं तथा नीच को भी ऊँचा बनाने वाले हैं।