Chapter 1 आत्म परिचय, एक गीत Solutions
Question - 1 : - कवि परिचय - हरिवंश राय बच्चन
Answer - 1 : -
जीवन परिचय-कविवर हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर सन 1907 को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विषय में एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा 1942-1952 ई० तक यहीं पर प्राध्यापक रहे। उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड से पी-एच०डी० की उपाधि प्राप्त की। अंग्रेजी कवि कीट्स पर उनका शोधकार्य बहुत चर्चित रहा। वे आकाशवाणी के साहित्यिक कार्यक्रमों से संबंद्ध रहे और फिर विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ रहे। उन्हें राज्यसभा के लिए भी मनोनीत किया गया। 1976 ई० में उन्हें ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत किया गया। ‘दो चट्टानें’ नामक रचना पर उन्हें साहित्य अकादमी ने भी पुरस्कृत किया। उनका निधन 2003 ई० में मुंबई में हुआ।
रचनाएँ-हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
काव्य-संग्रह-मधुशाला (1935), मधुबाला (1938), मधुकलश (1938), निशा-निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल-अंतर, मिलनयामिनी, सतरंगिणी, आरती और अंगारे, नए-पुराने झरोखे, टूटी-फूटी कड़ियाँ।
आत्मकथा-क्या भूलें क्या याद करूं, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक।
अनुवाद-हैमलेट, जनगीता, मैकबेथ।
डायरी-प्रवासी की डायरी।
काव्यगत विशेषताएँ-बच्चन हालावाद के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक हैं। दोनों महायुद्धों के बीच मध्यवर्ग के विक्षुब्ध विकल मन को बच्चन ने वाणी दी। उन्होंने छायावाद की लाक्षणिक वक्रता की बजाय सीधी-सादी जीवंत भाषा और संवेदना से युक्त गेय शैली में अपनी बात कही। उन्होंने व्यक्तिगत जीवन में घटी घटनाओं की सहजअनुभूति की ईमानदार अभिव्यक्ति कविता के माध्यम से की है। यही विशेषता हिंदी काव्य-संसार में उनकी प्रसिद्ध का मूलाधार है। भाषा-शैली-कवि ने अपनी अनुभूतियाँ सहज स्वाभाविक ढंग से कही हैं। इनकी भाषा आम व्यक्ति के निकट है। बच्चन का कवि-रूप सबसे विख्यात है उन्होंने कहानी, नाटक, डायरी आदि के साथ बेहतरीन आत्मकथा भी लिखी है। इनकी रचनाएँ ईमानदार आत्मस्वीकृति और प्रांजल शैली के कारण आज भी पठनीय हैं।
Question - 2 : - कविता एक ओर जगजीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ – विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?
Answer - 2 : -
कवि ने जीवन का आशय जगत से लिया है अर्थात् वह जगतरूपी जीवन का भार लिए घूमता है। कहने का भाव है कि कवि ने अपने जीवन को जगत का भार माना है। इस भार को वह स्वयं वहन करता है। वह अपने जीवन के प्रति लापरवाह नहीं है। लेकिन वह संसार का ध्यान नहीं करता। उसे इस बात से कोई मतलब नहीं है कि संसार या उसमें रहने वाले लोग क्या करते हैं। इसलिए उसने अपनी कविता में कहा है कि मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ। अर्थात् मुझे इस संसार से कोई या किसी प्रकार का मतलब नहीं है।
Question - 3 : - जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं’ – कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?
Answer - 3 : -
दाना का आशय है जानकार लोग अर्थात् सबकुछ जानने वाले और समझने वाले लोग। कवि कहता है कि संसार में दोनों तरह के लोग होते हैं – ज्ञानी और अज्ञानी, अर्थात् समझदार और नासमझ दोनों ही तरह के लोग इस संसार में रहते हैं। जो लोग प्रत्येक काम को समझबूझ कर करते हैं वे ‘दाना’ होते हैं, जबकि बिना सोचे-विचारे काम करने वाले लोग नादान होते हैं। अतः कवि ने दोनों में अंतर बताने के लिए ही ऐसा कहा है।
Question - 4 : - ‘मैं और, और जग और, कहाँ का नाता’-पंक्ति में ‘और’ शब्द की विशेषता बताइए।
Answer - 4 : -
यहाँ ‘और’ शब्द का तीन बार प्रयोग हुआ है। अत: यहाँ यमक अलंकार है। पहले ‘और’ में कवि स्वयं को आम व्यक्ति से अलग बताता है। वह आम आदमी की तरह भौतिक चीजों के संग्रह के चक्कर में नहीं पड़ता। दूसरे ‘और’ के प्रयोग में संसार की विशिष्टता को बताया गया है। संसार में आम व्यक्ति सांसारिक सुख-सुविधाओं को अंतिम लक्ष्य मानता है। यह प्रवृत्ति कवि की विचारधारा से अलग है। तीसरे ‘और’ का प्रयोग ‘संसार और कवि में किसी तरह का संबंध नहीं’ दर्शाने के लिए किया गया है।
Question - 5 : - शीतल वाणी में आग-के होने का क्या अभिप्राय है? (CBSE-2011, 2014)
Answer - 5 : -
शीतल वाणी में आग कहकर कवि ने विरोधाभास की स्थिति पैदा की है। कवि कहता है कि यद्यपि मेरे द्वारा कही हुई बातें शीतल और सरल हैं। जो कुछ मैं कहता हूँ वह ठंडे दिमाग से कहता हूँ, लेकिन मेरे इस कहने में बहुत गहरे अर्थ छिपे हुए हैं। मेरे द्वारा कहे गए हर शब्द में संघर्ष हैं। मैंने जीवन भर जो संघर्ष किए उन्हें जब मैं कविता का रूप देता हूँ तो वह शीतल वाणी बन जाती है। मेरा जीवन मेरे दुखों के कारण मन ही मन रोता है लेकिन कविता के द्वारा जो कुछ कहता हूँ उसमें सहजता रूपी शीतलता होती है।
Question - 6 : - बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे? (CBSE-2008)
Answer - 6 : -
बच्चे से यहाँ आशय चिड़ियों के बच्चों से है। जब उनके माँ-बाप भोजन की खोज में उन्हें छोड़कर दूर चले जाते हैं तो वे दिनभर माँ-बाप के लौटने की प्रतीक्षा करते हैं। शाम ढलते ही वे सोचते हैं कि हमारे माता-पिता हमारे लिए दाना, तिनका, लेकर आते ही होंगे। वे हमारे लिए भोजन लाएँगे। हमें ढेर सारा चुग्गा देंगे ताकि हमारा पेट भर सके। बच्चे आशावादी हैं। वे सुबह से लेकर शाम तक यही आशा करते हैं कि कब हमारे माता-पिता आएँ और वे कब हमें चुग्गा दें। वे विशेष आशा करते हैं कि हमें ढेर सारा खाने को मिलेगा साथ ही हमें बहुत प्यार-दुलार भी मिलेगा।
Question - 7 : - दिन जल्दी-जल्दी ढलता हैं- की आवृति से कविता की किस विशेषता का पता चलता हैं?
Answer - 7 : -
‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’-की आवृत्ति से यह प्रकट होता है कि लक्ष्य की तरफ बढ़ते मनुष्य को समय बीतने का पता नहीं चलता। पथिक लक्ष्य तक पहुँचने के लिए आतुर होता है। इस पंक्ति की आवृत्ति समय के निरंतर चलायमान प्रवृत्ति को भी बताती है। समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। अत: समय के साथ स्वयं को समायोजित करना प्राणियों के लिए आवश्यक है।
Question - 8 : - संसार में कष्टों को सहते हुए भी खुशी और मस्ती का माहौल कैसे पैदा किया जा सकता है?
Answer - 8 : -
सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य हर संबंध का निर्वाह करता है। उसे जीवन में अनेक तरह के कष्टों का सामना करना पड़ता है। कष्ट सहना मानव की नियति है। सुख-दुख समय के अनुसार आते-जाते रहते हैं। मनुष्य को दुख से परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि दुखों के बिना सुख की सच्ची अनुभूति नहीं पाई जा सकती। अत: मनुष्य को संतुलित तथा सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर जीवन को उल्लासपूर्ण बनाना चाहिए। निरंतर काम में लगे रहकर कष्टों को भुलाया जा सकता है।
Question - 9 : - ‘आत्मपरिचय’ कविता में कवि हरिवश राय बच्चन ने अपने व्यक्तित्व के किन पक्षों को उभारा है?
Answer - 9 : -
‘आत्मपरिचय’ कविता में कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपने व्यक्तित्व के निम्नलिखित पक्षों को उभारा है-
- कवि अपने जीवन में मिली आशाओं-निराशाओं से संतुष्ट है।
- वह (कवि) अपनी धुन में मस्त रहने वाला व्यक्ति है।
- कवि संसार को मिथ्या समझते हुए हानि-लाभ, यश-अपयश, सुख-दुख को समान समझता है।
- कवि संतोषी प्रवृत्ति का है। वह वाणी के माध्यम से अपना आक्रोश प्रकट करता है।
Question - 10 : - ‘आत्मपरिचय’ कविता पर प्रतिपाद्य लिखिए।
Answer - 10 : -
‘आत्मपरिचय’ कविता के रचयिता का मानना है कि स्वयं को जानना दुनिया को जानने से ज्यादा कठिन है। समाज से व्यक्ति का नाता खट्टा-मीठा तो होता ही है। संसार से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं। दुनिया अपने व्यंग्य-बाण तथा शासन-प्रशासन से चाहे जितना कष्ट दे, पर दुनिया से कटकर मनुष्य रह भी नहीं पाता क्योंकि उसकी अपनी अस्मिता, अपनी पहचान का उत्स, उसका परिवेश ही उसकी दुनिया है। वह अपना परिचय देते हुए लगातार दुनिया से अपने द्रविधात्मक और द्वंद्वात्मक संबंधों का मर्म उद्घाटित करता चलता है। वह पूरी कविता का सार एक पंक्ति में कह देता है कि दुनिया से मेरा संबंध प्रीतिकलह का है, मेरा जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है।