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Chapter 11 नमक का दारोगा Solutions

Question - 11 : -
‘इसलिए नहीं कि अलोपीदीन ने क्यों यह कर्म किया, बल्कि इसलिए कि वह कानून के पंजे में कैसे आए। ऐसा मनुष्य जिसके पास असाध्य साधन करनेवाला धन और अनन्य वाचालता हो, वह क्यों कानून के पंजे में आए। प्रत्येक मनुष्य उनसे सहानुभूति प्रकट करता था।’ अपने आस-पास अलोपीदीन जैसे व्यक्तियों को देखकर आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? उपर्युक्त टिप्पणी को ध्यान में रखते हुए लिखें।

Answer - 11 : -

अलोपीदीन जैसे व्यक्ति को देखकर मुझे कुढ़न-सी महसूस होगी। ऐसे व्यक्ति कानून को मखौल बनाते हैं। इन्हें सजा अवश्य मिलनी चाहिए। मुझे उन लोगों पर भी गुस्सा आता है जो उनके प्रति सहानुभूति जताते हैं।

Question - 12 : -
समझाइए तो ज़रा-

1. नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर की मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए।
2. इस विस्तृत ससार में उनके लिए धैर्य अपना मित्र, बुद्ध अपनी पथ-प्रदर्शक और आत्मावलबन ही अपना सहायक था।
3. तर्क ने भ्रम को पुष्ट किया।
4. न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, इन्हें वह जैसे चाहती हैं, नचाती हैं।
5. दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी।
6. खद एंसी समझ पर पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया।
7. धम ने धन को पैरों तल कुचल डाला।
8. न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया।

Answer - 12 : -

1. नौकरी में पद को महत्व न देकर उस से होने वाली ऊपर की कमाई पर ध्यान देना चाहिए।
2. इस संसार में व्यक्ति के जीवन संघर्ष में धैर्य, बुद्ध, आत्मावलंबन ही क्रमश: मित्र, पथप्रदर्शक व सहायक का काम करते हैं। हर व्यक्ति अकेला होता है। उसे स्वयं ही कुछ पाना होता है।
3. मनुष्य के मन में भ्रम रहता है। अनेक स्थितियों में फैंसे होने पर जब व्यक्ति तर्क करता है तो सारे भ्रम दूर हो जाते हैं या संदेह पुष्टि हो जाती है।
4. इसका अर्थ है कि धन से न्याय व नीति को भी प्रभावित किया जाता है। धन से मर्जी का न्याय लिया जा सकता है तथा नीतियाँ भी अपने हक की बनवाई जा सकती हैं। ये सब धन के संकेतों पर नाचने वाली कठपुतलियाँ हैं।
5. यह संसार के स्वभाव पर तीखी टिप्पणी है। संसार में लोग कुछ करें या न करें, दूसरे की निंदा करते हैं। हालाँकि निंदा करने वाले को अपनी कमी का ध्यान नहीं रहता।
6. यह बात बूढ़े मुंशी ने कही थी। उन्हें वंशीधर द्वारा रिश्वत के मौके को ठुकराने का दुख है। इस नासमझी के कारण वह उसकी पढ़ाई-लिखाई को निरर्थक मानता है।
7. धर्म मानव की दिशा निर्धारित करता है। सत्यनिष्ठा के कारण वंशीधर ने अलोपीदीन द्वारा चालीस हजार रुपये की पेशकश को ठुकरा दिया। उसके धर्म ने धन को कुचल दिया।
8. यहाँ अदालतों की कार्य शैली पर व्यंग्य है। अदालतें न्याय का मंदिर कही जाती हैं, परंतु यहाँ भी सब कुछ बिकाऊ था। धन के कारण न्याय के सभी शस्त्र सत्य को असत्य सिद्ध करने में जुट गए। सत्य की तरफ अकेला वंशीधर था। अत: वहाँ धन व धर्म में युद्ध-सा हो रहा था।

Question - 13 : -
भाषा की चित्रात्मकता, लोकोक्तियों और मुहावरों का जानदार उपयोग तथा हिंदी-उर्दू के साझा रूप एवं बोलचाल की भाषा के लिहाज़ से यह कहानी अदभुत है। कहानी में से ऐसे उदाहरण छाँट कर लिखिए और यह भी बताइए कि इनके प्रयोग से किस तरह कहानी का कथ्य अधिक असरदार बना है?

Answer - 13 : -

इस कहानी में ऐसे अनेक उदाहरण हैं –

दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी।
वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है…
ऊपरी आय तो बहता स्रोत है।
पीर का मज़ार है… आदि।

Question - 14 : -
कहानी में मासिक वेतन के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया गया है? इसके लिए आप अपनी ओर से दो-दो विशेषण और बताइए। साथ ही विशेषणों के आधार को तर्क सहित पुष्ट कीजिए।

Answer - 14 : -

कहानी में मासिक वेतन के लिए निम्नलिखित विशेषणों का प्रयोग किया गया है-पूर्णमासी का चाँद। हमारी तरफ से विशेषण हो सकते हैं-एक दिन का सुख या खून-पसीने की कमाई।

Question - 15 : -
(क) बाबू जी अशीवाद!
(ख) सरकारी हुक्म!
(ग) दातागंज के।
(घ) कानपुर
दी गई विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ एक निश्चित संदर्भ में निश्चित अर्थ देती हैं। संदर्भ बदलते ही अर्थ भी परिवर्तित हो जाता है। अब आप किसी अन्य संदर्भ में इन भाषिक अभिव्यक्तियों का प्रयोग करते हुए समझाइए।

Answer - 15 : -

(क) बाबूजी, आशीर्वाद! – अलोपीदीन को अपने धन और मान पर इतना घमंड था कि वे किसी पदाधिकारी को भी कुछ नहीं मानते थे। नमस्कार कहने के बजाए आशीर्वाद कह रहे थे।
(ख) सरकारी हुक्म! – वंशीधर हुक्म का पालन करने में किसी भी स्थिति में पीछे हटना या ज्यादा बात करना नहीं चाहते थे।
(ग) दातागंज के!-अलोपीदीन जैसे प्रतिष्ठित के लिए इतना परिचय काफ़ी था।
(घ) कानपुर!-जब चोरी पकड़ी जा रही थी तो यथा संभव संक्षिप्त उत्तर ही देना उचित
था। इन सभी अभिव्यक्तियों को बोलने के लहजे से बदला जा सकता है। अतः मौखिक अभ्यास करें।

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