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Question -

समझाइए तो ज़रा-

1. नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर की मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए।
2. इस विस्तृत ससार में उनके लिए धैर्य अपना मित्र, बुद्ध अपनी पथ-प्रदर्शक और आत्मावलबन ही अपना सहायक था।
3. तर्क ने भ्रम को पुष्ट किया।
4. न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, इन्हें वह जैसे चाहती हैं, नचाती हैं।
5. दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी।
6. खद एंसी समझ पर पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया।
7. धम ने धन को पैरों तल कुचल डाला।
8. न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया।



Answer -

1. नौकरी में पद को महत्व न देकर उस से होने वाली ऊपर की कमाई पर ध्यान देना चाहिए।
2. इस संसार में व्यक्ति के जीवन संघर्ष में धैर्य, बुद्ध, आत्मावलंबन ही क्रमश: मित्र, पथप्रदर्शक व सहायक का काम करते हैं। हर व्यक्ति अकेला होता है। उसे स्वयं ही कुछ पाना होता है।
3. मनुष्य के मन में भ्रम रहता है। अनेक स्थितियों में फैंसे होने पर जब व्यक्ति तर्क करता है तो सारे भ्रम दूर हो जाते हैं या संदेह पुष्टि हो जाती है।
4. इसका अर्थ है कि धन से न्याय व नीति को भी प्रभावित किया जाता है। धन से मर्जी का न्याय लिया जा सकता है तथा नीतियाँ भी अपने हक की बनवाई जा सकती हैं। ये सब धन के संकेतों पर नाचने वाली कठपुतलियाँ हैं।
5. यह संसार के स्वभाव पर तीखी टिप्पणी है। संसार में लोग कुछ करें या न करें, दूसरे की निंदा करते हैं। हालाँकि निंदा करने वाले को अपनी कमी का ध्यान नहीं रहता।
6. यह बात बूढ़े मुंशी ने कही थी। उन्हें वंशीधर द्वारा रिश्वत के मौके को ठुकराने का दुख है। इस नासमझी के कारण वह उसकी पढ़ाई-लिखाई को निरर्थक मानता है।
7. धर्म मानव की दिशा निर्धारित करता है। सत्यनिष्ठा के कारण वंशीधर ने अलोपीदीन द्वारा चालीस हजार रुपये की पेशकश को ठुकरा दिया। उसके धर्म ने धन को कुचल दिया।
8. यहाँ अदालतों की कार्य शैली पर व्यंग्य है। अदालतें न्याय का मंदिर कही जाती हैं, परंतु यहाँ भी सब कुछ बिकाऊ था। धन के कारण न्याय के सभी शस्त्र सत्य को असत्य सिद्ध करने में जुट गए। सत्य की तरफ अकेला वंशीधर था। अत: वहाँ धन व धर्म में युद्ध-सा हो रहा था।

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