Question -
Answer -
किसी भी क्षेत्र का वायुदाब एवं उसकी पवनें उस क्षेत्र की अक्षांशीय स्थिति एवं ऊँचाई पर निर्भर करती हैं। भारत की जलवायु में ऋतुओं के अनुसार पवनों की दिशा उलट जाती है। मानसून के रचनातंत्र में भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी पर्वत सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे मानसून पवनों के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं। इसी प्रकार की भूमिका पश्चिमी घाट भी निभाते हैं।
भारत में जलवायु तथा संबंधित मौसमी अवस्थाएँ निम्नलिखित वायुमंडलीय अवस्थाओं से संचालित होती हैं-
(1) पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ – हिमालय पर्वत के दक्षिण में प्रवाहित होने वाली उपोष्ण कटिबन्धीय पश्चिमी जेट धाराएँ जाड़े के महीने में देश के उत्तर एवं उत्तर पश्चिमी भागों में उत्पन्न होने वाले पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभों के लिए उत्तरदायी हैं।
(2) वायुदाब एवं धरातलीय पवनें – वायु का संचार उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर होता है। शीत ऋतु में हिमालय के उत्तर में उच्च वायुदाब क्षेत्र होता है। ठण्डी शुष्क हवाएँ इस क्षेत्र से दक्षिण में सागर के ऊपर कम वायुदाब क्षेत्र की ओर बहती हैं। ग्रीष्म ऋतु के दौरान मध्य एशिया के साथ उत्तर-पश्चिमी भारत के ऊपर कम वायुदाब क्षेत्र विकसित हो जाता है। परिणामस्वरूप, कम वायुदाब प्रणाली दक्षिण गोलार्द्ध की दक्षिणपूर्वी व्यापारिक पवनों को आकर्षित करती है। ये व्यापारिक पवने विषुवत रेखा को पार करने के उपरांत कोरिआलिस बल के कारण दाहिनी ओर मुड़ते हुए भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थित निम्न दाब की ओर बहने लगती हैं।
विषुवत् रेखा को पार करने के बाद ये पवनें दक्षिण-पश्चिमी दिशा में बहने लगती हैं और भारतीय प्रायद्वीप में दक्षिण-पश्चिमी मानसून के रूप में प्रवेश करती हैं। इन्हें दक्षिण पश्चिमी मानसून के नाम से जाना जाता है। ये पवनें गर्म महासागरों के ऊपर से बहते हुए आर्द्रता ग्रहण करती हैं और भारत की मुख्यभूमि पर विस्तृत वर्षण लाती हैं। इस प्रदेश में, ऊपरी वायु परिसंचरण पश्चिमी प्रवाह के प्रभाव में रहता है। भारत में होने वाली वर्षा मुख्यतः दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के कारण होती है। मानसून की अवधि 100 से 120 दिनों के बीच होती है। इसलिए देश में होने वाली अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में केंद्रित है।
(3) जेट वायु धाराएँ – जेट वायु धाराएँ क्षोभमण्डल में अत्यधिक ऊँचाई पर एक संकरी पट्टी में स्थित होती हैं। इन हवाओं की गति ग्रीष्म ऋतु में 110 किमी प्रति घण्टा एवं सर्दी में 184 किमी प्रति घण्टा के बीच विचलन करती रहती है। हिमालय पर्वत के उत्तर की ओर पश्चिमी जेट धाराएँ एवं ग्रीष्म ऋतु की अवधि में भारतीय प्रायद्वीप में बहने वाली पश्चिम जेट धाराओं की उपस्थिति मानसून को प्रभावित करती हैं। जब उष्णकटिबंधीय पूर्वी दक्षिण प्रशांत महासागर में उच्च वायुदाब होता है तो उष्णकटिबंधीय पूर्वी हिन्द महासागर में निम्न वायुदाब होता है।
किन्तु कुछ निश्चित वर्षों में वायुदाब परिस्थितियाँ विपरीत हो जाती हैं और पूर्वी प्रशांत महासागर में पूर्वी हिन्द महासागर की अपेक्षाकृत निम्न वायुदाब होता है। दाब की अवस्था में इस नियतकालिक परिवर्तन को दक्षिणी दोलन के नाम से जाना जाता है। एलनीनो, दक्षिणी दोलन से जुड़ा हुआ एक लक्षण है। यह एक गर्म समुद्री जलधारा है, जो पेरू की ठंडी धारा के स्थान पर प्रत्येक 2 या 5 वर्ष के अंतराल में पेरू तट से होकर बहती है। दाब की अवस्था में परिवर्तन का संबंध एलनीनो से है। हवाओं में निरंतर कम होती आर्द्रता के कारण उत्तर भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है।
बंगाल की खाड़ी शाखा से उठने वाली आर्द्र पवनें जैसे-जैसे आगे, और आगे बढ़ती हुई देश के आंतरिक भागों में जाती हैं, वे अपने साथ लाई गई अधिकतर आर्द्रता खोने लगती हैं। परिणामस्वरूप पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा धीरे-धीरे घटने लगती है। राजस्थान एवं गुजरात के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा होती है।