Question -
Answer -
भारत में वार्षिक वर्षा की औसत मात्रा 118 सेंटीमीटर के लगभग है। यह समस्त वर्षा मानसूनी पवनों द्वारा प्राप्त होती है।
इस मानसूनी वर्षा की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
- भारत में मानसून की अवधि जून से शुरू होकर सितम्बर के मध्य तक होती है। इसकी औसत अवधि 100 से 120 दिन तक होती है। मानसून के आगमन के साथ ही सामान्य वर्षा में अचानक वृद्धि हो जाती है। यह वर्षा लगातार कई दिनों तक होती रहती है। आर्द्रतायुक्त पवनों के जोरदार गरज व चमक के साथ अचानक आगमन को ‘मानसून प्रस्फोट’ के नाम से जाना जाता है।
- मानसून में आई एवं शुष्क अवधियाँ होती हैं जिन्हें वर्षण में विराम कहा जाता है।
- वार्षिक वर्षा में प्रतिवर्ष अत्यधिक भिन्नता होती है।
- यह कुछ पवनविमुखी ढलानों एवं मरुस्थल को छोड़कर भारत के शेष क्षेत्रों को पानी उपलब्ध कराती है।
- वर्षा का वितरण भारतीय भूदृश्य में अत्यधिक असमान है। मौसम के प्रारंभ में पश्चिमी घाटों की पवनमुखी ढालों पर भारी वर्षा होती है अर्थात् 250 सेमी से अधिक। दक्कन के पठार के वृष्टि छाया क्षेत्रों एवं मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, तथा लेह में बहुत कम वर्षा होती हैं। सर्वाधिक वर्षा देश के उत्तरपूर्वी क्षेत्रों में होती है।
- उष्णकटिबंधीय दबाव की आवृत्ति एवं प्रबलता मानसून वर्षण की मात्रा एवं अवधि को निर्धारित करते हैं।
- भारत के उत्तर पश्चिमी राज्यों से मानसून सितम्बर के प्रारंभ में वापसी शुरू कर देती है। अक्टूबर के मध्य तक यह देश के उत्तरी हिस्से से पूरी तरह लौट जाती है और दिसम्बर तक शेष भारत से भी मानसून लौट जाता है।
- मानसून को इसकी अनिश्चितता के कारण भी जाना जाता है। जहाँ एक ओर यह देश के कुछ हिस्सों में बाढ़ ला देता है, वहीं दूसरी ओर यह देश के कुछ हिस्सों में सूखे का कारण बन जाता है।
भारत में मानसूनी वर्षा के प्रभाव को निम्न रूप में देखा जा सकता है-
- मानसून भारत को एक विशिष्ट जलवायु पैटर्न उपलब्ध कराती है। इसलिए विशाल क्षेत्रीय भिन्नताओं की उपस्थिति के बावजूद मानसून देश और इसके लोगों को एकता के सूत्र में पिरोने वाला प्रभाव डालती है।
- भारतीय कृषि मुख्य रूप से मानसून से प्राप्त पानी पर निर्भर है। देरी से, कम या अधिक मात्रा में वर्षा का फसलों पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
- वर्षा के असमान वितरण के कारण देश में कुछ सूखा संभावित क्षेत्र हैं जबकि कुछ बाढ़ से ग्रस्त रहते हैं।