Question -
Answer -
(1) भारतीय उपमहाद्वीप में वायु की दिशा में मौसमी परिवर्तन-भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून पवनों की दिशा में मौसमी परिवर्तन का मूल कारण स्थल एवं जल पर विपरीत वायुदाब क्षेत्रों को विकसित होना है। यह वायु के तापमान के कारण होता है। स्पष्ट है कि स्थल एवं जल असमान रूप से गर्म होते हैं। ग्रीष्म ऋतु में समुद्र की अपेक्षा स्थल भाग अधिक गर्म हो जाता है। परिणामस्वरूप स्थल भाग के आंतरिक क्षेत्रों में निम्न वायुदाब क्षेत्र विकसित हो जाता है। जबकि समुद्री क्षेत्रों में उच्च वायुदाब का क्षेत्र होता है। अतः समुद्री पवनें समुद्र से स्थल की ओर गतिशील होती हैं। शीत ऋतु में स्थिति इसके विपरीत होती है अर्थात् पवन स्थल से समुद्र की ओर गतिशील होती है।
(2) भारत में अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में होती है भारत के अधिकांश भागों में जून से सितम्बर के मध्य वर्षा होती है। भारत में मई माह में भारत के उत्तरी भाग में गर्मी बहुत पड़ती है। फलस्वरूप यहाँ की वायु हल्की होकर ऊपर उठ जाती है जिससे यहाँ वायुदाब कम हो जाता है। जबकि हिंद महासागर पर वायुदाब अधिक होता है। पवन प्रवाह का यह सर्वमान्य नियम है कि वह उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर संचरित होती है। ऐसे में पवनें हिंद महासागर से भारत के उत्तरी भाग की ओर चलने लगती हैं। जलवाष्प से परिपूर्ण ये पवनें अपनी सम्पूर्ण आर्द्रता भारत में ही समाप्त कर देती हैं। ये पवनें जून से सितंबर तक भारत में सक्रिय रहती हैं। यही कारण है कि भारत में अधिकांश वर्षा जून से सितंबर माह की अवधि में होती है। भारत में मानसून की अवधि 100 से 120 दिन तक होती है।
(3) तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा-पीछे हटते मानसून की ऋतु सितंबर से आरंभ हो जाती है। अब पवनें धरातल से समुद्र की ओर बहने लगती हैं। इसलिए ये शुष्क होती हैं और स्थल भाग पर वर्षा नहीं करतीं। जिस समय ये पवनें बंगाल की खाड़ी पर पहुँचती हैं तो वहाँ से ये आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं। अब ये उत्तरी-पूर्वी पवनों के प्रभाव में आकर इनकी दिशा भी उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर हो जाती है। और ये पवनें उत्तरी-पूर्वी मानसून के रूप में तमिलनाडु तट पर पहुँचती हैं। आर्द्रता ग्रहण की हुई ये पवनें तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा करती हैं। अक्टूबर-नवंबर में पीछे हटते मानसून और बंगाल की खाड़ी पर उत्पन्न होने वाले उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के मिले-जुले प्रभाव से पूर्वी तट पर भारी वर्षा होती है। तमिलनाडु तट पर अक्टूबर-नवंबर में भारी वर्षा होती है।
(4) पूर्वी तट के डेल्टा में चक्रवात-बंगाल की खाड़ी में प्रायः निम्न वायुदाब का क्षेत्र बनता रहता है जबकि इस समय पूर्वी तट पर स्थित कृष्णा, कावेरी तथा गोदावरी के डेल्टा प्रदेश में अपेक्षाकृत वायुदाब का उच्च क्षेत्र होता है। पूर्वी तट के डेल्टा वाले क्षेत्र में प्रायः चक्रवात आते हैं। ऐसा इस कारण होता है क्योंकि अंडमान सागर पर पैदा होने वाला चक्रवातीय दबाव मानसून एवं अक्टूबर-नवंबर के दौरान उपोष्ण कटिबंधीय जेट धाराओं द्वारा देश के आंतरिक भागों की ओर स्थानांतरित कर दिया जाता है। ये चक्रवात विस्तृत क्षेत्र में भारी वर्षा करते हैं। ये उष्ण कटिबंधीय चक्रवात प्रायः विनाशकारी होते हैं। गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के डेल्टा प्रदेशों में अक्सर चक्रवात आते हैं, जिसके कारण बड़े पैमाने पर जान एवं माल की क्षति होती है। कभी-कभी ये चक्रवात ओडिशा, पश्चिम बंगाल एवं बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में भी पहुँच जाते हैं। कोरोमंडल तट पर अधिकतर वर्षा इन्हीं चक्रवातों तथा अवदाबों से होती है।
(5) राजस्थान, गुजरात के कुछ भाग तथा पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया क्षेत्र सूखा प्रभावित क्षेत्र है—राजस्थान तथा गुजरात के कुछ क्षेत्र अरबसागरीय मानसून शाखा द्वारा प्रभावित होते हैं–इस शाखा के बीच कोई प्राकृतिक अवरोधक नहीं है जो मानसून पवनों को रोककर राजस्थान तथा गुजरात के कुछ क्षेत्र में वर्षा करा सके। अरावली पर्वतमाला इस मानसून शाखा के समानांतर स्थित होने के कारण यह वर्षा कराने में असमर्थ रहती है। मरुभूमि होने के कारण यहाँ वाष्पीकरण अधिक होता है, संघनन नहीं होता। वनस्पतिविहीन होने के कारण वायुमंडलीय आर्द्रता यहाँ आकर्षित नहीं होती।
पश्चिमी घाट के वृष्टि छाया क्षेत्र सूखा से प्रवाहित होने के कारण-
- यह क्षेत्र पश्चिमी घाट के पूर्व में स्थित है।
- पश्चिमी घाट के वृष्टि छाया क्षेत्र में स्थित होने के कारण यहाँ वर्षा नहीं होती।
- इससे यहाँ प्रायः सूखा पड़ने की संभावना रहती है।