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Question -

क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि सार्वभौमिक अधिकारों के सन्देश में नाना अंतर्विरोध थे?



Answer -

विश्व में नागरिक अधिकारों की प्रथम घोषणा का प्रयास संभवतः फ्रांस में ही किया गया। फ्रांस के सार्वभौमिक अधिकारों के संदेश में स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व के तीन मौलिक सिद्धान्तों पर बल दिया गया। वर्तमान में सभी लोकतांत्रिक देशों द्वारा इन सिद्धान्तों को अंगीकार किया गया है।
लेकिन यह सत्य है कि फ्रांस का सार्वभौमिक अधिकारों का संदेश अनेक विरोधाभासों से घिरा हुआ है जिनका विवरण इस प्रकार है-

  1. व्यापार और कार्य की स्वतंत्रता का कोई उल्लेख नहीं था।
  2. स्वतंत्रता को अधिक प्रोत्साहन दिया गया था।
  3. व्यक्ति के चहुँमुखी विकास को लक्ष्य नहीं बनाया गया।
  4. शिक्षा के अधिकार को कोई महत्त्व नहीं दिया गया।
  5. घोषणा में कहा गया था कि “कानून सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति है। सभी नागरिकों को व्यक्तिगत रूप से या अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से इसके निर्माण में भाग लेने का अधिकार है। कानून की नजर में सभी नागरिक समान हैं।” किन्तु जब फ्रांस एक संवैधानिक राजशाही बना तो लगभग 30 लाख नागरिक जिनमें 25 वर्ष से कम आयु के पुरुष एवं महिलाएँ शामिल थीं, उन्हें बिल्कुल वोट ही नहीं डालने दिया गया।
  6. फ्रांस ने उपनिवेशों पर कब्जा करना व उनकी संख्या बढ़ाना जारी रखा।
  7. फ्रांस में उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध तक दासप्रथा जारी रही।

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