Question -
Answer -
1. परती भूमि नियमावली बनाने के कारण – अंग्रेज सरकार परती भूमि को व्यर्थ मानती थी, क्योंकि परती भूमि से उसे कोई लगान प्राप्त नहीं होती थी। साथ ही परती भूमि का उत्पादन में कोई योगदान नहीं होता था। यही कारण था कि अंग्रेज सरकार ने परती भूमि का विकास करने के लिए अनेक नियम बनाए जिन्हें परती भूमि नियमावली के नाम से जाना जाता है।
परती भूमि नियमावली का चरवाहों के जीवन पर प्रभाव-
1. चरवाहे अपने पशुओं को अब निश्चित चरागाहों में ही चराते थे जिससे चारा कम पड़ने लगा।
2. चारे की कमी के कारण पशुओं की सेहत और संख्या घटने लगी।
3. चरागाहों का आकार सिमटकर बहुत छोटा रह गया।
4. बचे हुए चरागाहों पर पशुओं का दबाव बहुत अधिक बढ़ गया।
2. वन अधिनियम बनाने के कारण – अंग्रेज वन अधिकारी ऐसा मानते थे कि वनों में पशुओं को चराने के अनेक नुकसान हैं। पशुओं के चरने से छोटे जंगली पौधों और वृक्षों की नयी कोपलें नष्ट हो जाती हैं जिससे नए पेड़ों का विकास रुक जाता है। इसलिए औपनिवेशिक सरकार ने अनेक वन अधिनियम पारित किए जिसके द्वारा वनों को आरक्षित तथा पशुचारण को नियमित किया जा सके।
वन अधिनियम का चरवाहों पर प्रभाव-
1. वनों में उनके प्रवेश और वापसी का समय निश्चित कर दिया गया।
2. वन नियमों का उल्लंघन करने पर भारी जुर्माने की व्यवस्था लागू की गई।
3. घने वन जो बहुमूल्य चारे के स्रोत थे, उनमें पशुओं को चराने पर रोक लगा दी गई।
4. कम घने वनों में पशुओं को चराने के लिए परमिट लेना अनिवार्य कर दिया गया।
3. “अपराधी जनजाति अधिनियम बनाने के कारण – अंग्रेज अधिकारी घुमंतू लोगों को शक की निगाह से देखते थे। अंग्रेजों का ऐसा मानना था कि इन लोगों के बार-बार स्थान परिवर्तन के कारण इन लोगों की पहचान करना तथा इनका विश्वास करना कठिन कार्य है। घुमंतू लोगों से कर संग्रह करना और कर निर्धारण दोनों कठिन कार्य हैं। उक्त कारणों से प्रेरित होकर अंग्रेज सरकार ने 1871 ई० में अनेक घुमंतू समुदायों को अपराधी समुदायों की सूची में डाल दिया और उनकी बिना परमिट आवागमन को प्रतिबन्धित कर दिया।
अपराधी जनजाति अधिनियम को घुमंतू लोगों पर प्रभाव-
1. अनेक समुदायों ने पशुपालन के स्थान पर वैकल्पिक व्यवसायों को अपनाना आरंभ कर दिया।
2. अपराधी सूची में शामिल किए गए घुमंतू समुदाय एक स्थान पर स्थायी रूप से रहने के लिए विवश हो गए।
3. स्थायी रूप से बसने के कारण अब वे स्थानीय चरागाहों पर ही निर्भर ही गए जिसके कारण उनके पशुओं की संख्या में तेजी से कमी आई।
4. चराई कर लागू किए जाने के कारण – अंग्रेज सरकार ने अपनी आय बढ़ाने के लिए यथासंभव प्रयास किया। इसी क्रम में चरवाहों पर चराई कर लगाया गया। चरवाहों से चरागाहों में चरने वाले एक-एक जानवर पर करे वसूल किया जाने लगा। देश के अधिकतर चरवाही इलाकों में 19वीं सदी के मध्य से ही चरवाही टैक्स लागू कर दिया गया था। प्रति मवेशी कर की देर तेजी से बढ़ती चली गयी और कर वसूली की व्यवस्था दिनोंदिन सुदृढ़ होती गयी। 1850 से 1880 ई० के दशकों के बीच टैक्स वसूली का काम बाकायदा बोली लगाकर ठेकेदारों को सौंप जाता था।
ठेकेदारी पाने के लिए ठेकेदार सरकार को जो पैसा देते थे उसे वसूल करने और साल भर में ज्यादा से ज्यादा मुनाफ़ा बनाने के लिए वे जितना चाहे उतना कर वसूल सकते थे। 1880 ई० के दशक तक आते-आते सरकार ने अपने कारिंदों के माध्यम से सीधे चरवाहों से ही कर वसूलना शुरू कर दिया। हरेक चरवाहे को एक ‘पास’ जारी कर दिया गया। किसी भी चरागाह में दाखिल होने के लिए चरवाहों को पास दिखाकर पहले टैक्स अदा करना पड़ता था। चरवाहे के साथ कितने जानवर हैं और उसने कितना टैक्स चुकाया है, इस बात को उसके पास में दर्ज कर दिया जाता था।
चरवाहों पर चराई कर का प्रभाव–प्रति मवेशी कर लागू होने पर चरवाहों ने पशुओं की संख्या को सीमित कर दिया। अनेक चरवाहों ने अवर्गीकृत चरागाहों की खोज में स्थान परिवर्तन कर लिया। अनेक चरवाहा समुदायों ने पशुपालन के साथसाथ वैकल्पिक व्यवसायों को अपनाना आरंभ कर दिया। इससे पशुपालन करने वालों की कठिनाई को समझा जा सकता है।