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Question -

इस बारे में चर्चा कीजिए कि 1930 ई. तक आते-आते जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता क्यों मिलने लगी?



Answer -

जर्मनी में नाजीवाद की लोकप्रियता के मुख्य कारण इस प्रकार थे-
(i) आर्थिक संकट- प्रथम विश्वयुद्ध चार वर्षों तक चलता रहा। इसे लम्बे युद्ध में जर्मनी को अपार धन की हानि उठानी पड़ी। युद्ध के बाद देश में वस्तुओं के भाव बहुत बढ़ गए। जर्मन सरकार ने बड़े पैमाने पर मुद्रा को छापना शुरू कर दिया जिसके कारण उसकी मुद्रा मार्क को मूल्य तेजी से गिरने लगा। अप्रैल में एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 24,000 मार्क के बराबर थी जो जुलाई में 3,53,000 मार्क, अगस्त में 46,21,000 मार्क तथा दिसम्बर में 9,88,60,000 मार्क हो गई। इस तरह एक डॉलर में खरबों मार्क मिलने लगे। जैसे-जैसे मार्क की कीमत गिरती गई, जरूरी चीजों की कीमतें आसमान छूने लगीं। 1929 में अमेरिका तथा सम्पूर्ण विश्व में आए आर्थिक संकट ने जर्मनी की स्थिति को और भी भयावह बना दिया।

(ii) वर्साय की सन्धि- जर्मनी को प्रथम विश्व युद्ध में पराजय के बाद वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए विवश किया गया। इस कठोर व अपमानजनक संधि को जर्मन कभी मन से स्वीकार न सके। इसी अपमान का प्रतिफल था कि जर्मनी में हिटलर के नाजीवाद का जन्म हुआ। जर्मन लोग हिटलर में अपने जर्मनी की खोई हुई प्रतिष्ठा के पुनरुद्धारक का प्रतिबिम्ब देखते थे।

(iii) हिटलर का व्यक्तित्व- वास्तव में हिटलर का व्यक्तित्व आकर्षक एवं प्रभावशाली था। हिटलर एक उत्कृष्ट वक्ता था। इसके जोशवर्द्धक भाषण लोगों पर जादू, जैसा प्रभाव डालते थे। लोग उसके भाषणों को सुनने के लिए दूर-दूर से आया करते थे। उसने अपने भाषणों में वादा किया कि “वह बेरोजगारों को रोजगार और नात्सीवाद और हिटलर का उदय नौजवानों को एक सुरक्षित भविष्य देगा और तमाम विदेशी साजिशों का मुंहतोड़ जवाब देगा। लोगों ने उसके समर्थन में बड़ी-बड़ी रैलियाँ और जनसभाएँ आयोजित कीं। नासियों ने अपने प्रचार में हिटलर को एक ऐसे मसीहा के रूप में पेश किया जैसे उसका जन्म ही जर्मनों के उत्थान के लिए हुआ हो।

(iv) वाइमर गणराज्य की विफलता- वाइमर संविधान में कुछ ऐसी कमियाँ थीं जिनकी वजह से गणराज्य कभी भी अस्थिरता और तानाशाही का शिकार बन सकता था। इनमें से एक कमी आनुपातिक प्रतिनिधित्व से संबंधित थी। इस प्रावधान की वजह से किसी एक पार्टी को बहुमत मिलना लगभग नामुमकिन बन गया था। हर बार गठबंधन सरकार सत्ता में आ रही थी। दूसरी समस्या अनुच्छेद 48 की वजह से थी जिसमें राष्ट्रपति को आपातकाल लागू करने, नागरिक अधिकार रद्द करने और अध्यादेशों के जरिए शासन चलाने का अधिकार दिया गया था। अपने छोटे से जीवन काल में वाइमर गणराज्य का शासन 20 मंत्रिमण्डलों के हाथों में रहा और उनकी औसत अवधि 239 दिन से ज्यादा नहीं रही। इस दौरान अनुच्छेद 48 का भी जमकर इस्तेमाल किया गया। पर इन सारे नुस्खों के बावजूद संकट दूर नहीं हो पाया। लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था में लोगों को विश्वास खत्म होने लगा क्योंकि वह उनके लिए कोई समाधान नहीं खोज पा रही थी।

(v) राजनैतिक उथल-पुथल- यद्यपि जर्मनी में अनेक राजनैतिक दल थे जैसे राष्ट्रवादी, राजभक्त, कम्युनिस्ट, सामाजिक, लोकतंत्रवादी आदि। यद्यपि लोकतंत्रात्मक सरकार में इनमें से कोई भी बहुमत में नहीं था। दलों में मतभेद अपने चरम पर थे। इसने सरकार को कमजोर कर दिया और अंततः नाजियों को सत्ता हथियाने का अवसर दे दिया।

(vi) जर्मनों की लोकतंत्र में आस्था नहीं थी- प्रथम विश्व युद्ध के अन्त में जर्मनी की हार के बाद जर्मनों का संसदीय संस्थाओं में कोई विश्वास नहीं था। उस समय जर्मनी में लोकतंत्र एक नया व भंगुर विचार था। लोग स्वाधीनता व आजादी की अपेक्षा प्रतिष्ठा और यश को प्राथमिकता देते थे। उन्होंने खुले दिल से हिटलर का साथ दिया क्योंकि उसमें उनके सपने पूरे करने की योग्यता थी।

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