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Question -

सोनार (SONAR) की कार्यविधि तथा उपयोगों का वर्णन कीजिए।



Answer -

सोनार (SONAR) – वास्तव में सोनार (SONAR) साउण्ड नेवीगेशन एंड रेंजिंग (Sound Navigation and Ranging) का संक्षिप्त रूप है जिसका अर्थ है ध्वनि द्वारा संचालन तथा परिसर निर्धारण करना। सोनार एक ऐसी युक्ति है जिसमें पराश्रव्य ध्वनि तरंगों का उपयोग जल में स्थित अदृश्य पिंडों, जैसे पनडुब्बियों, जहाज, चट्टानों तथा समुद्र की गहराई आदि के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
कार्यप्रणाली – सोनार की कार्यप्रणाली में पराश्रव्य तरंगों का उपयोग किया जाता है। सोनार में एक प्रेषित यंत्र (ट्रांसमीटर) तथा एक अभिग्राही लगा होता है जिसे जहाज के पैंदे में लगाया जाता है। ट्रांसमीटर पराश्रव्य ध्वनि को उत्सर्जित करके महासागर के जल के गहराई तक भेजते हैं। ये ध्वनि तरंगें जब सागर की तली या समुद्र के भीतर स्थित किसी पिंड से टकराती हैं तो परावर्तित हो जाती हैं। इन परावर्तित तरंगों को संसूचक जहाज के पैंदे में लगे किसी अभिग्राही द्वारा ग्रहण किया जाता है। यह अभिग्राही यंत्र पराश्रव्य ध्वनि को विद्युत सिग्नल में बदल देता है जिससे उनके बारे में आसानी से जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
उपयोग –
(i) इस तकनीक का उपयोग समुद्र की गहराई तथा जल के अन्दर उपस्थित वस्तुओं की समुद्र तल से दूरी ज्ञात करने में किया जाता है।
मान लिया पराश्रव्य सिग्नलों के प्रेषण तथा उसी बिन्दु पर उनकी परावर्तित ध्वनि के अभिग्रहण के बीच लगा समय अन्तराल t है। यदि समुद्री जल में पराश्रव्य तरंगों की चाल ७ हो और समुद्र तल की गहराई या जल में स्थिर किसी पिंड की समुद्र तल से दूरी d हो तो
(ii) सोनार तकनीक का उपयोग समुद्री जल में स्थित चट्टानों, पनडुब्बियों, डूबे हुए जहाजों, छुपे हुए प्लावी बर्फ (हिम शैल) आदि का पता लगाने में किया जाता है।

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