Question -
Answer -
पांडुलिपियों के उपयोग में इतिहासकारों के सामने निम्न समस्याएँ आती हैं
(i) कई बार पांडुलिपियों की लिखावट को समझने में दिक्कत आती है।
(ii) आज हमें लेखक की मूल पांडुलिपि शायद ही कहीं मिलती है।
(iii) मूल पांडुलिपि की नई प्रतिलिपि बनाते समय लिपिक छोटे-मोटे फेर-बदल करते चलते थे, कहीं कोई शब्द, कहीं कोई वाक्य। सदी-दर-सदी प्रतिलिपियों की भी प्रतिलिपियाँ बनती रहीं और अंततः एक ही मूल ग्रंथ की भिन्न-भिन्न प्रतिलिपियाँ एक-दूसरे से बहुत अलग हो गईं।
(iv) इतिहासकारों को बाद के लिपिकों द्वारा बनाई गई प्रतिलिपियों पर ही पूरी तरह निर्भर रहना पड़ता है, | इसलिए इस बात का अंदाज लगाने के लिए कि मूलतः लेखक ने क्या लिखा था इतिहासकारों को एक ही ग्रंथ की विभिन्न प्रतिलिपियों का अध्ययन करना पड़ता है।