Question -
Answer -
जब प्रकाश के विस्तारित स्रोत से अपारदर्शी वस्तु की छाया बनती है तब यह छाया एक समान काली नहीं होती है। इस छाया में दो भाग होते हैं। छाया का मध्य भाग अधिक काला होता है, वह प्रच्छाया कहलाता है। प्रच्छाया के चारों ओर का कम काला भाग उपछाया कहलाता है। निम्नलिखित क्रियाकलाप द्वारा छाया, प्रच्छाया एवं उपछाया के बनने की प्रक्रिया समझी जा सकती है।
- एक टॉर्च, काला कागज तथा एक छोटी गेंद लीजिए।
- काले कागज में एक छोटा छेद करके टॉर्च के काँच से। चिपका दीजिए। टॉर्च को जलाकर कमरे के दीवार की । ओर लाइये। क्या देखते हैं? गोलाकार आकृति में दीवार छाया का कुछ भाग प्रकाशित हो जाता है।
- अब जलती हुई टॉर्च के सामने कुछ दूरी पर गेंद रखिए। क्या देखते हैं? दीवार पर प्रकाशित भाग के स्थान पर गोलाकार अंधेरी आकृति दिखायी देती है। गोलाकार चित्र 14.4 अंधेरी आकृति गेंद द्वारा प्रकाश की किरणों को रोक उपछाया – लेने के कारण बनती हैं। गोलाकार अंधेरी आकृति को गेंद की छाया कहते हैं। इसे चित्र 14.4 से प्रदर्शित टार्च। किया जाता है।
- टॉर्च के काँच से काले कागज को हटाकर पुनः टॉर्च जलायें तथा उतनी ही दूरी पर गेंद को रखिए। क्या देखते हैं?
- दीवार पर गोल आकृति का अंधेरा स्थान और उसके चारों ओर धुंधले प्रकाश से प्रकाशित चौड़ा छल्ला दिखायी पड़ता है जैसा कि 14.5 में दर्शाया गया है। अंधेरी गोल आकृति को प्रच्छाया (Umbra) तथा धुंधले गोल छलले को प्रच्छाया (Penumbra) कहते हैं। प्रकाश स्रोत बिन्दुवतू होने पर छाया तथा बड़ा होने पर प्रच्छाया व उपछाया प्राप्त होती है। इससे हम आकृति में होने वाली अद्भुत खगोलीय घटना सूर्यग्रहण एवं चन्द्रग्रहण को सरलता से समझ सकते हैं।