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Question -

निम्नलिखित पर आलोचनात्मक टिप्पणी लिखें –
1. सुपोषण (Utrofication)
2. जैव आवर्धन (Biological Magnification)
3. भौमजल (भूजल) का अवक्षय और इसकी पुनःपूर्ति के तरीके।



Answer -

1. सुपोषण (Eutrophication) – अकार्बनिक फॉस्फेट एवं नाइट्रेट के जलाशयों में एकत्र होने की क्रिया को सुपोषण कहते हैं। सुपोषण झील का प्राकृतिक काल-प्रभावन दर्शाता है, यानि झील अधिक उम्र की हो जाती है। यह इसके जल की जैव समृद्धि के कारण होता है। तरुण झील का जल शीतल और स्वच्छ होता है। समय के साथ-साथ इसमें सरिता के जल के साथ पोषक तत्त्व, जैसे-नाइट्रोजन और फॉस्फोरस आते रहते हैं जिसके कारण जलीय जीवों में वृद्धि होती रहती है। जैसे-जैसे झील की उर्वरता बढ़ती है वैसे- वैसे पादप और प्राणी बढ़ने लगते हैं। जीवों की मृत्यु होने पर कार्बनिक अवशेष झील के तल में बैठने लगते हैं। सैकड़ों वर्षों में इसमें जैसे-जैसे सिल्ट एवं जैव मलबे का ढेर लगता है वैसे-वैसे झील उथली और गर्म होती जाती है। उथली झील में कच्छ (marsh) पादप उग आते हैं और मूल झील बेसिन उनसे भर जाता है।
मनुष्य के क्रियाकलापों के कारण सुपोषण की क्रिया में तेजी आती है। इस प्रक्रिया को त्वरित सुपोषण कहते हैं। इस प्रकार झील वास्तव में घुट कर मर जाती है और अन्त में यह भूमि में परिवर्तित हो जाती है।
2. जैव आवर्धन (Biological Magnification) – जैव आवर्धन का तात्पर्य है, क्रमिक पोषण स्तर पर आविषाक्त की सान्द्रता में वृद्धि का होना। इसका कारण है जीव द्वारा संगृहीत आविषालु पदार्थ उपापचयित या उत्सर्जित नहीं हो सकता और इस प्रकार यह अगले उच्चतर पोषण स्तर पर पहुँच जाता है। ये पदार्थ खाद्य श्रृंखला के विभिन्न पोषी स्तरों (trophic levels) के जीवों में धीरे-धीरे संचित होते रहते हैं। खाद्य श्रृंखला में इन्हें सबसे पहले पौधों द्वारा प्राप्त किया जाता है। पौधों से इन पदार्थों को उपभोक्ताओं द्वारा प्राप्त किया जाता है। उद्योगों के अपशिष्ट जल में प्रायः विद्यमान कुछ विषैले पदार्थों में जलीय खाद्य श्रृंखला जैव आवर्धन कर सकते हैं।
यह परिघटना पारा एवं D.D.T. के लिए सुविदित है। क्रमिक पोषण स्तरों पर D.D.T: की सान्द्रता बढ़ जाती है। यदि जल में यह सान्द्रता 0.003 ppb से आरम्भ होती है तो अन्त में जैव आवर्धन के द्वारा मत्स्यभक्षी पक्षियों में बढ़कर 25 ppm हो जाती है। पक्षियों में D.D.T. की उच्च सान्द्रता कैल्शियम उपापचय को नुकसान पहुँचाती है जिसके कारण अंडकवच पतला हो जाता है और यह समय से पहले फट जाता है जिसके कारण। पक्षी-समष्टि की संख्या में कमी हो जाती है।
3. भौमजल का अवक्षय और इसकी पुनः पूर्ति के तरीके (Ground- water Depletion and Ways for its Replenishment) – भूमिगत जल पीने के लिए अधिक शुद्ध एवं सुरक्षित है। औद्योगिक शहरों में भूमिगत जल प्रदूषित होता जा रहा है। अपशिष्ट तथा औद्योगिक अपशिष्ट बहाव जमीन पर बहता रहता है जोकि भूमिगत जल प्रदूषण के साधारण स्रोत हैं। उर्वरक तथा पीड़कनाशी, जिनका उपयोग खेतों में किया जाता है, भी प्रदूषक का कार्य करते हैं। ये वर्षा-जल के साथ निकट के जलाशयों में एवं अन्तत: भौमजल में मिल जाते हैं। अस्वीकृत कूड़े के ढेर, सेप्टिक टंकी एवं सीवेज गड्ढे से सीवेज के रिसने के कारण भी भूमिगत जल प्रदूषित होता है।
वाहितमल जले एवं औद्योगिक अपशिष्टों को जलाशयों में छोड़ने से पहले उपचारित करना चाहिए जिससे भूमिगत जल प्रदूषित होने से बच सकता है।

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