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Question -

अण्टार्कटिका के ऊपर ओजोन छिद्र क्यों बनते हैं? पराबैंगनी विकिरण के बढ़ने से हमारे ऊपर किस प्रकार प्रभाव पड़ेंगे?



Answer -

हालाँकि ओजोन अवक्षय व्यापक रूप से होता है, लेकिन इसका असर अण्टार्कटिक क्षेत्र में खासकर देखा गया है। यहाँ जगह-जगह पर ओजोन परत में इतनी कमी पड़ जाती है कि छिद्र को आभास होने लगता है और इसे ओजोन छिद्र (Ozone hole) की संज्ञा दी जाती है। कुछ सुगन्धियाँ, झागदार शेविंग क्रीम, कीटनाशी, गन्धहारक आदि डिब्बों में आते हैं और फुहारा या झाग के रूप में निकलते हैं। इन्हें ऐरोसोल कहते हैं। इनके उपयोग से वाष्पशील CFC वायुमण्डल में पहुँचकर ओजोन स्तर को नष्ट करते हैं। CFC का व्यापक उपयोग एयरकण्डीशनरों, रेफ्रिजरेटरों, शीतलकों, जेट इंजनों, अग्निशामक उपकरणों, गद्देदार फोम आदि में होता है। ज्वालामुखी, रासायनिक उर्वरक, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, सवाना तथा अन्य वन-वृक्षों के जलने से ओजोन की परत को क्षति होती है। फ्रिऑन सबसे अधिक घातक क्लोरोफ्लोरोकार्बन है जो ओजोन से प्रतिक्रिया कर उसका अवक्षय करता है।
पराबैंगनी- बी की अपेक्षा छोटे तरंगदैर्ध्य युक्त पराबैंगनी विकिरण पृथ्वी के वायुमण्डल द्वारा लगभग पूरा का पूरा अवशोषित हो जाता है। बशर्ते कि ओजोन स्तर ज्यों-का-त्यों रहे लेकिन पराबैंगनी-बी DNA को क्षतिग्रस्त करता है और उत्परिवर्तन को बढ़ाता है। इसके कारण त्वचा में बुढ़ापे के लक्षण दिखते हैं। इससे विविध प्रकार के त्वचा कैंसर हो सकते हैं। इससे हमारी आँखों में कॉर्निया का शोथ हो । जाता है जिसे हिम अंधता, मोतियाबिंद आदि कहा जाता है।

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