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Question -

विभिन्न प्रकार की ग्रामीण बस्तियों के लक्षणों की विवेचना कीजिए। विभिन्न भौतिक पर्यावरणों में बस्तियों के प्रारूपों के लिए उत्तरदायी कारक कौन-से हैं?



Answer -

ग्रामीण बस्तियों के प्रकार
भारत की ग्रामीण बस्तियों को मुख्य रूप से चार भागों में बाँटा जाता है
1. गुच्छित, संहत अथवा केन्द्रित बस्तियाँ – इस तरह की बस्तियों में ग्रामीण घरों के संहत खण्ड पाए जाते हैं। घरों की दो कतारों को सँकरी, तंग तथा टेढ़ी-मेढ़ी गलियाँ पृथक् करती हैं। सामान्यत: इन बस्तियों का एक अभिन्यास होता है, जो रैखिक, आयताकार, ‘L’ आकृति अथवा कभी-कभी आकृतिविहीन होता है।
2. अर्द्धगुच्छित या विखण्डित बस्तियाँ – किसी सीमित क्षेत्र में समूहन प्रवृत्ति या समेकित प्रादेशिक आधार के परिणामस्वरूप ही अर्द्धगुच्छित या विखण्डित बस्तियाँ बनती हैं। प्रायः किसी बड़े संहत गाँव के पृथक्करण या विखण्डन के परिणामस्वरूप ही ऐसे प्रतिरूप उभरते हैं। इस उदाहरण में ग्रामीण समाज का एक या एक से अधिक वर्ग स्वेच्छा या मजबूरी से मुख्य गुच्छित बस्ती से कुछ दूरी पर अलग बस्ती बनाकर रहने लगता या लगते हैं।

3. पुरवे – जाति व्यवस्था के कारण उत्पन्न सामाजिक विलगाव, कभी-कभी गुच्छित बस्तियों को विखण्डित कर देता है। बस्तियों की ये गौण इकाइयाँ पान्ना, पाड़ा, पल्ली, नंगला या ढाणी कहलाती हैं।

4. परिक्षिप्त या एकाकी बस्तियाँ – इस तरह की बस्ती में छोटे-छोटे हैमलेट एक बड़े क्षेत्र पर दूर-दूर बिखरे होते हैं। इसका कोई अभिन्यास नहीं होता, क्योंकि इन बस्तियों में केवल कुछ ही घर होते हैं। सामान्यत: ये बस्तियाँ सुदूर वनों में एकाकी झोपड़ी या कुछ झोपड़ियों के समूह के रूप में पायी जाती हैं। ऐसी बस्तियाँ छोटी पहाड़ियों पर भी होती हैं, जिनके आस-पास के ढालों पर खेत अथवा चरागाह होते हैं।

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