Question -
Answer -
जनांकिकीय संक्रमण-इस सिद्धान्त का उपयोग किसी क्षेत्र की जनसंख्या के वर्णन तथा भविष्य की जनसंख्या के पूर्वानुमान के लिए किया जाता है।
जनांकिकीय संक्रमण की अवस्थाएँ
जनांकिकीय संक्रमण की तीन अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं
प्रथम अवस्था — इस अवस्था में उच्च प्रजननशीलता व उच्च मर्त्यता होती है क्योंकि लोग महामारियों और भोजन की अनिश्चित आपूर्ति में होने वाली मृत्युओं की क्षतिपूर्ति अधिक पुनरुत्पादन से करते हैं। जनसंख्या वृद्धि धीमी होती है और अधिकांश लोग खेती में कार्यरत होते हैं। यहाँ बड़े परिवारों को परिसम्पत्ति माना जाता है। जीवन प्रत्याशा निम्न होती है, अधिकांश लोग अशिक्षित होते हैं और उनके प्रौद्योगिकी स्तर निम्न होते हैं। 200 वर्ष. ” पूर्व विश्व के सभी देश इसी अवस्था में थे
द्वितीय अवस्था – इस अवस्था के प्रारम्भ में प्रजननशीलता उच्च बनी रहती है किन्तु यह समय के साथ घटती जाती है। यह अवस्था घटी हुई मृत्यु-दर के साथ आती है। स्वास्थ्य सम्बन्धी दशाओं व स्वच्छता में सुधार . के साथ मर्त्यता में कमी आती है। इस अन्तर के कारण, जनसंख्या में होने वाला शुद्ध योग उच्च होता है।
अन्तिम अवस्था में प्रजननशीलता और मर्त्यता दोनों अधिक घट जाती हैं। जनसंख्या या तो स्थिर हो जाती है या मन्द गति से बढ़ती है। जनसंख्या नगरीय और शिक्षित हो जाती है तथा उसके पास तकनीकी ज्ञान होता है। ऐसी जनसंख्या विचारपूर्वक परिवार के आकार को नियन्त्रित करती है। इससे प्रदर्शित होता है कि मनुष्य जाति अत्यधिक नम्य है और अपनी प्रजननशीलता को समायोजित करने की योग्यता रखती है।