Question -
Answer -
1. षट्कोणीय निविड संकुलन एवं घनीय निविड संकुलन
(Hexagonal Close Packing and Cubic Close Packing)
ये दोनों त्रिविमीय निविड संकुलित संरचनाएँ द्विविम-षट्कोणीय निविड संकुलित परतों को एक-दूसरे पर रखकर जनित की जा सकती हैं।
षट्कोणीय निविड संकुलन – जब तृतीय परत को द्वितीय परत पर रखा जाता है, तब उत्पन्न एक सम्भावना के अन्तर्गत द्वितीय परत की चतुष्फलकीय रिक्तियों को तृतीय परत के गोलों द्वारा आच्छादित किया जा सकता है। इस स्थिति में तृतीय परत के गोले प्रथम परत के गोलों के साथ पूर्णत: संरेखित होते हैं। इस प्रकार गोलों का पैटर्न एकान्तर परतों में पुनरावृत्त होता है। इस पैटर्न को प्रायः ABAB….पैटर्न लिखा जाता है। इस संरचना को षट्कोणीय निविड संकुलित (hcp) संरचना कहते हैं (चित्र-1)। इस प्रकार की परमाणुओं की व्यवस्था कई धातुओं; जैसे- मैग्नीशियम और जिंक में पायी जाती है।


घनीय निविड संकुलन – इसके लिए तीसरी परत दूसरी परत के ऊपर इस प्रकार रखते हैं कि उसके गोले अष्टफलकीय रिक्तियों को आच्छादित करते हों। इस प्रकार से रखने पर तीसरी परत के गोले प्रथम अथवा द्वितीय किसी भी परत के साथ संरेखित नहीं होते। इस व्यवस्था को ‘C’ प्रकार का कहा जाता है। केवल चौथी परत रखने पर उसके गोले प्रथम परत के गोलों के साथ संरेखित होते हैं। जैसा चित्र-1 व 2 में दिखाया गया है। इस प्रकार के पैटर्न को प्रायः ABCABC… लिखा जाता है। इस संरचना को घनीय निविड संकुलित संरचना (ccp) अथवा फलक-केन्द्रित घनीय (fcc) संरचना कहा जाता है। धातु; जैसे- ताँबा तथा चाँदी इस संरचना में क्रिस्टलीकृत होते हैं।

उपर्युक्त दोनों प्रकार के निविड़ संकुलन अति उच्च क्षमता वाले होते हैं और क्रिस्टल का 74% स्थान सम्पूरित रहता है। इन दोनों में प्रत्येक गोला बारह गोलों के सम्पर्क में रहता है। इस प्रकार इन दोनों संरचनाओं में उपसहसंयोजन संख्या 12 है।
2. क्रिस्टल जालक एवं एकक कोष्ठिका
(Crystal Lattice and Unit Cell)
क्रिस्टल जालक – क्रिस्टलीय ठोसों का मुख्य अभिलक्षण अवयवी कणों का नियमित और पुनरावृत्त पैटर्न है। यदि क्रिस्टल में अवयवी कणों की त्रिविमीय व्यवस्था को आरेख के रूप में निरूपित किया जाए, जिसमें प्रत्येक बिन्दु को चित्रित किया गया हो तो व्यवस्था को क्रिस्टल जालक कहते हैं। इस प्रकार, “द्विकस्थान (space) में बिन्दुओं की नियमित त्रिविमीय व्यवस्था को क्रिस्टल जालक कहते हैं।”

क्रिस्टल जालक के एक भाग को चित्र- 3 में दिखाया गया है। केवल 14 त्रिविमीय जालक सम्भव हैं।
एकक कोष्ठिका – एकक कोष्ठिका क्रिस्टल जालक का लघुतम भाग है (चित्र-3)। जब इसे विभिन्न दिशाओं में पुनरावृत्त किया जाता है तो पूर्ण जालक की उत्पत्ति होती है।
3. चतुष्फलकीय रिक्ति एवं अष्टफलकीय रिक्ति
(Tetrahedral Void and Octahedral Void)
चतुष्फलकीय रिक्ति – ये रिक्तियाँ चार गोलों द्वारा घिरी रहती हैं जो एक नियमित चतुष्फलक के शीर्ष पर स्थित होते हैं। इस प्रकार जब भी द्वितीय परत का एक गोला प्रथम परत की रिक्ति के ऊपर होता है, तब एक चतुष्फलकीय रिक्ति बनती है। इन रिक्तियों को चतुष्फलकीय रिक्तियाँ इसलिए कहा जाता है। क्योंकि जब इन चार गोलों के केन्द्रों को मिलाया जाता है, तब एक चतुष्फलक बनता है। चित्र-4 में इन्हें “T’ से अंकित किया गया है। ऐसी एक रिक्ति को अलग से चित्र-5 में दिखाया गया है।

अष्टफलकीय रिक्ति – ये रिक्तियाँ सम्पर्क में स्थित तीन गोलों द्वारा संलग्नित रहती हैं। इस प्रकार द्वितीय परत की त्रिकोणीय रिक्तियाँ प्रथम परते की त्रिकोणीय रिक्तियों के ऊपर होती हैं और इनकी त्रिकोणीय आकृतियाँ अतिव्यापित नहीं होतीं। उनमें से एक में त्रिकोण का शीर्ष ऊर्ध्वमुखी और दूसरे में अधोमुखी होता है। इन रिक्तियों को चित्र-4 में ‘O’ से अंकित किया गया है। ऐसी रिक्तियाँ छह गोलों से घिरी होती हैं। ऐसी एक रिक्ति को अलग से चित्र- 5 में दिखाया गया है।