Question -
Answer -
1. पदार्थों में अनुचुम्बकत्व की उत्पत्ति, अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण होती है। प्रतिचुम्बकीय पदार्थ वे होते हैं जिनमें सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होते हैं। संक्रमण धातु आयनों में प्रतिचुम्बकत्व तथा अनुचुम्बकत्व दोनों होते हैं अर्थात् इनमें दो विपरीत प्रभाव पाए जाते हैं, इसलिए परिकलित चुम्बकीय आघूर्ण इनका परिणामी चुम्बकीय आघूर्ण माना जाता है। d0 (Sc3+, Ti4+) या d10 (Cu+, Zn2+) विन्यासों को छोड़कर, संक्रमण धातुओं के सभी सरल आयनों में इनके (n – 1) d उपकोशों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं; अत: ये अधिकांशत: अनुचुम्बकीय होते हैं। ऐसे अयुग्मित इलेक्ट्रॉन का चुम्बकीय आघूर्ण, प्रचक्रण कोणीय संवेग तथा कक्षीय कोणीय संवेग से सम्बन्धित होता है। प्रथम संक्रमण श्रेणी की धातुओं के यौगिकों में कक्षीय कोणीय संवेग को योगदान प्रभावी रूप से शमित (quench) हो जाता है, इसलिए इसका कोई महत्त्व नहीं रह जाता।
अत: इनके लिए चुम्बकीय आघूर्ण का निर्धारण उसमें उपस्थित अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या के आधार पर किया जाता है तथा इसकी गणना निम्नलिखित ‘प्रचक्रण मात्र’ सूत्र द्वारा की जाती है-
μ = यहाँ n अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या है तथा ॥ चुम्बकीय आघूर्ण है जिसका मात्रक बोर मैग्नेटॉन (BM) है। अतः एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन का चुम्बकीय आघूर्ण 1.73 BM होता है।2. संक्रमण धातुओं की कणन एन्थैल्पी के मान उच्च होते हैं क्योंकि इनके परमाणुओं में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या अधिक होती है। इस कारण इनमें प्रबल अन्तरापरमाण्विक अन्योन्य-क्रियाएँ होती हैं। तथा इसलिए परमाणुओं के मध्य प्रबल आबन्ध उपस्थित होते हैं।
3. अधिकांश संक्रमण धातु आयन विलयन तथा ठोस अवस्थाओं में रंगीन होते हैं। ऐसा दृश्य प्रकाश के आंशिक अवशोषण के कारण होता है। अवशोषित प्रकाश इलेक्ट्रॉन को समान d-उपकोश के एक कक्षक से दूसरे कक्षक में उत्तेजित कर देता है। चूंकि इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण धातु आयनों के d-कक्षकों में होते हैं, इसलिए ये d-d संक्रमण कहलाते हैं। संक्रमण धातु आयनों में दृश्य प्रकाश को अवशोषित करके होने वाले d-d संक्रमणों के कारण ही ये रंगीन दिखाई देते हैं।
4. संक्रमण धातुएँ तथा इनके यौगिक उत्प्रेरकीय सक्रियता के लिए जाने जाते हैं। संक्रमण धातुओं का यह गुण उनकी परिवर्तनशील संयोजकता एवं संकुल यौगिक के बनाने के गुण के कारण है। वैनेडियम (V) ऑक्साइड (संस्पर्श प्रक्रम में), सूक्ष्म विभाजित आयरन (हेबर प्रक्रम में) और निकिल (उत्प्रेरकीय हाइड्रोजनीकरण में) संक्रमण धातुओं के द्वारा उत्प्रेरण के कुछ उदाहरण हैं। उत्प्रेरक के ठोस पृष्ठ पर अभिकारक के अणुओं तथा उत्प्रेरक की सतह के परमाणुओं के बीच आबन्धों की रचना होती है। आबन्ध बनाने के लिए प्रथम संक्रमण श्रेणी की धातुएँ 3d एवं 4s इलेक्ट्रॉनों का उपयोग करती हैं, परिणामस्वरूप उत्प्रेरक की सतह पर अभिकारक की सान्द्रता में वृद्धि हो जाती है तथा अभिकारक के अणुओं में उपस्थित आबन्ध दुर्बल हो जाते हैं। इन कारण सक्रियण ऊर्जा का मान घटे जाता है। ऑक्सीकरण अवस्थाओं में परिवर्तन हो सकने के कारण संक्रमण धातुएँ उत्प्रेरक के रूप में अधिक प्रभावी होती हैं।
उदाहरणार्थ– आयरन (III), आयोडाइड आयन तथा परसल्फेट आयन के बीच सम्पन्न होने वाली अभिक्रिया को उत्प्रेरित करता है।
- 2I– + S2O2-8 → I2 ↑ + 2SO2-4
इस उत्प्रेरकीय अभिक्रिया का स्पष्टीकरण इस प्रकार है –
- 2Fe3+ + 2I– → 2Fe2+ +I2 ↑
- 2Fe2+ + S2O2-8 → 2Fe3+ + 2SO2-4