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Question -

उपसहसंयोजन यौगिक के विलयन में स्थायित्व से आप क्या समझते हैं? संकुलों के स्थायित्व को प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।



Answer -

विलयन में उपसहसंयोजन यौगिकों को स्थायित्व (Stability of CoordinationCompounds in Solution) – अधिकांश संकुल अत्यधिक स्थायी होते हैं। धातु आयन तथा लिगेण्ड के बीच अन्योन्यक्रिया को लुईस अम्ल-क्षार अभिक्रिया के समान माना जाता है। यदि अन्योन्यक्रिया प्रबल होगी तो बनने वाला संकुल ऊष्मागतिकीय रूप से अत्यधिक स्थायी होगा।
विलयन में संकुल के स्थायित्व का अर्थ हैसाम्य अवस्था पर भाग ले रही दो स्पीशीज के मध्य संगुणन की मात्रा का मान। संगुणन के लिए साम्य स्थिरांक (स्थायित्व या विरचन) को परिमाण गुणात्मक रूप से स्थायित्व को प्रकट करता है। इस प्रकार यदि हम निम्न प्रकार की अभिक्रिया को लें
M + 4L 
ML
K = 

साम्य स्थिरांक का मान जितना अधिक होगा, ML4 की विलयन में मात्रा उतनी ही अधिक होगी। विलयन में मुक्त धातु आयनों का अस्तित्व नगण्य होता है। अत: M सामान्यत: विलायक अणुओं से घिरा होगा जो लिगेण्ड अणुओं, L से प्रतिस्पर्धा करेंगे तथा धीरे-धीरे उनसे प्रतिस्थापित हो जाएँगे।

संकुलों के स्थायित्व को प्रभावित करने वाले कारक
(Factors Affecting the Stability of Complexes)
संकुलों को स्थायित्व निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है
I.
केन्द्रीय आयन की प्रकृति (Nature of Central lon)
(i) 
केन्द्रीय धातु आयन पर आवेश (Charge on centralmetal ion) – सामान्यतया केन्द्रीय आयन पर आवेश घनत्व जितना अधिक होता है, उसके संकुलों का स्थायित्व भी उतना ही अधिक होता है। दूसरे शब्दों में, किसी आयन पर आवेश अधिक तथा आकार छोटा होने पर अर्थात् आयन का आवेश/त्रिज्या अनुपात अधिक होने पर इसके संकुलों का स्थायित्व अधिक होता है। उदाहरणार्थ–Fe2+ आयन की तुलना में Fe3+ आयन उच्च आवेश वहन करते हैं, परन्तु इनके आकार समान होते हैं। इसलिए Fe2+ आयन की तुलना में Fe3+ पर आवेश घनत्व उच्च होता है, इसलिए Fe3+ आयन के संकुल अधिक स्थायी होते हैं।
Fe3+ + 6CN → [Fe(CN)6]3-;K = 1.2 x 1031
Fe2+ + 6CN → [Fe(CN)6]4-;K = 1.8 x 106

(ii) धातु आयन का आकार (Size of metal ion) –धातु आयन का आकार घटने पर संकुल का स्थायित्व बढ़ता है। यदि हम द्विसंयोजी धातु आयन पर विचार करें तो इनके संकुलों का स्थायित्व केन्द्रीय धातु आयन की आयनिक त्रिज्या घटने के साथ बढ़ता है।

इसलिए स्थायित्व का क्रम इस प्रकार है
Mn2+ < Fe2+ < Co2+ 2+ < Cu2+ < Zn2+
यह क्रम इवैग विलयम का स्थायित्व क्रम कहलाता है।

(iii) धातु आयन की विद्युतऋणात्मकता या आवेश वितरण (Electronegativity or Charge distributionof metal ion) – संकुल आयन का स्थायित्व धातु आयन पर इलेक्ट्रॉन आवेश वितरण से भी सम्बन्धित होता है। आरलेण्ड, चैट तथा डेविस के अनुसार धातु आयनों को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है
(
वर्ग ‘a’ ग्राही (Class ‘a’ acceptors) – ये पूर्णतया विद्युतधनात्मक धातुएँ होती हैं तथा इनमें वर्ग 1 तथा 2 की धातुएँ सम्मिलित होती हैं। इनके अतिरिक्त आन्तरसंक्रमण धातुएँ तथा संक्रमण श्रेणी के पूर्व सदस्य (वर्ग 3 से 6 तक), जिनमें अक्रिय गैस विन्यास से कुछ इलेक्ट्रॉन अधिक होते हैं, भी इस वर्ग में सम्मिलित होते हैं। ये N, O तथा F दाता परमाणुओं से युक्त लिगेण्डों के साथ अत्यधिक स्थायी उपसहसंयोजक सत्ता बनाते हैं।

(वर्ग ‘b’ ग्राही (Class ‘b’acceptors) – ये बहुत कम विद्युतधनात्मक होते हैं। इनमें भारी धातुएँ; जैसे- Rh, Pd, Ag, Ir, Pt, Au, Hg, Pb आदि, जिनमें भरित d-कक्षक होते हैं, सम्मिलित होती हैं। ये उन लिगेण्डों के साथ स्थायी संकुल बनाती हैं जिनमें N, O तथा F वर्ग के भारी सदस्य दाता परमाणु होते हैं।

(iv) कीलेट प्रभाव (Chelate effect) – स्थायित्व कीलेट वलयों के निर्माण पर भी निर्भर करता है। यदि L एक एकदन्तुर लिगेण्ड तथा L-L द्विदन्तुर लिगेण्ड हो तथा यदि L तथा L-L के दाता परमाणु एक ही तत्व के हों, तब L-L, L को प्रतिस्थापित कर देगा। कीलेशन के कारण यह स्थायित्व कीलेट प्रभाव कहलाता है। 5 तथा 6 सदस्यीय वलयों में कीलेट प्रभाव अधिकतम होता है। सामान्य रूप में वलय संकुल को अधिक स्थायित्व प्रदान करती है।

(v) वृहद्चक्रीय प्रभाव (Macrocyclic effect) – यदि एक बहुदन्तुर लिगेण्ड चक्रीय है तथा कोई अनुपयुक्त त्रिविम प्रभाव नहीं है तो बनने वाला संकुल बिना चक्रीय लिगेण्ड वाले सम्बन्धित संकुल की तुलना में अधिक स्थायी होगी। यह वृहद्चक्रीय प्रभाव कहलाता है।

II. लिगेण्ड की प्रकृति(Nature of Ligand)
(i) 
क्षारीय सामर्थ्य (Basic strength) –लिगेण्ड जितना अधिक क्षारीय होगा, उतनी ही अधिक सरलता उसे अपने एकाकी इलेक्ट्रॉन-युग्म को दान देने में होगी, इसलिए इससे बनने वाले संकुल उतने ही अधिक स्थायी होंगे। अत: CN तथा F आयन एवं NH3, जो प्रबल क्षार हैं, अच्छे लिगेण्ड हैं। तथा अनेक स्थायी संकुल बनाते हैं।

(ii) लिगेण्डों का आकार तथा आवेश (Size and charge of ligands)-ऋणायनी लिगेण्डों के लिए आवेश उच्च तथा आकार छोटा होने पर बनने वाला संकुल अधिक स्थायी होता है। अतः F अधिक स्थायी संकुल देता है, परन्तु Cl आयन नहीं।

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