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जैव नियन्त्रण (Bio Control) – पादप रोगों तथा पीड़कों (pests) के नियन्त्रण के लिए जैववैज्ञानिक विधि (biological methods) का प्रयोग ही जैव नियन्त्रण (bio control) है। आधुनिक समाज में ये समस्याएँ रसायनों, कीटनाशियों तथा पीड़कनाशियों के बढ़ते हुए प्रयोगों की सहायता से नियन्त्रित की जाती हैं। ये रसायन मनुष्यों तथा जीव-जन्तुओं के लिए अत्यन्त ही विषैले तथा हानिकारक होते हैं। विषाक्त रसायन खाद्य श्रृंखला के माध्यम से जीवधारियों के शरीर में पहुंचते हैं। ये पर्यावरण को भी प्रदूषित करते हैं।
जैव उर्वरक के रूप में सूक्ष्मजीव (Microbes as biofertilizers) – जैव उर्वरकों का मुख्य स्रोत जीवाणु, कवक तथा सायनोबैक्टीरिया होते हैं। लेग्यूमिनस पादपों की जड़ों पर उपस्थित ग्रंथियों का निर्माण राइजोबियम (Rhizobium) जीवाणु के सहजीवी सम्बन्ध द्वारा होता है। ये जीवाणु वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत कर कार्बनिक रूप में परिवर्तित करते हैं। मृदा में मुक्तावस्था में रहने वाले अन्य जीवाणु जैसे-एजोस्पाइरिलम (Azospirilum) तथा एजोटोबैक्टर (Azotobacter) भी वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को स्थिर कर मृदा में नाइट्रोजन अवयव की मात्रा को बढ़ाते हैं।
कवक अनेक पादपों के साथ सहजीवी सम्बन्ध स्थापित करते हैं। इस सम्बन्ध को माईकोराइजा (Mycorrhiza) कहते हैं। ग्लोमस (Glomus) जीनस के बहुत-से कवक सदस्य माइकोराइजा बनाते हैं। इस सम्बन्ध में कवकीय सहजीवी मृदा से जल एवं पोषक तत्वों का अवशोषण कर पादपों को प्रदान करते हैं और पादपों से भोजन प्राप्त करते हैं।
सायनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria) स्वपोषित सूक्ष्मजीव हैं जो जलीय तथा स्थलीय वायुमण्डल में विस्तृत रूप से पाए जाते हैं। इनमें से अधिकांश वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को नाइट्रोजन यौगिकों के रूप में स्थिर करके मृदा की उर्वरता को बढ़ाते हैं। जैसे-ऐनाबीना (Anabaena), नॉस्टॉक (Nostoc) आदि। धान के खेत में सायनोबैक्टीरिया महत्त्वपूर्ण जैव उर्वरक की भूमिका निभाते हैं।
पीड़क तथा रोगों का जैव नियन्त्रण (Biological Control of Pests & Diseases) – जैव नियन्त्रण विधि से विषाक्त रसायन तथा पीड़कनाशियों पर हमारी निर्भरता को काफी हद तक कम किया जा सकता है। बैक्टीरिया बैसीलस थूरिनजिएन्सिस (Bacillus thuringiensis) को प्रयोग बटरफ्लाई कैटरपिलर नियन्त्रण में किया जाता है। पिछले दशक में आनुवंशिक अभियान्त्रिकी की सहायता से वैज्ञानिक बैसीलस थूरिनजिएन्सिस टॉक्सिन जीन को पादपों में पहुँचा सके हैं। ऐसे पादप पीड़के द्वारा किए गए आक्रमण के प्रति प्रतिरोधी होते हैं। Bt-कॉटन इसका एक उदाहरण है जिसे हमारे देश के कुछ राज्यों में उगाया जाता है। ड्रेगनफ्लाई (dragonflies), मच्छर और ऐफिड्स (aphids) आदि Bt-कॉटन को क्षति नहीं पहुंचा पाते।
जैव वैज्ञानिक नियन्त्रण के तहत कवक ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) का उपयोग पादप रोगों के उपचार में किया जाता है। यह बहुत-से पादप रोगजनकों का प्रभावशील जैव नियन्त्रण कारक है। बेक्यूलोवायरसिस (Baculoviruses) ऐसे रोगजनक हैं जो कीटों तथा सन्धिपादों (आर्थोपोड्स) पर हमला करते हैं। अधिकांश बैक्यूलोवायरसिस जो जैव वैज्ञानिक नियन्त्रण कारकों की तरह प्रयोग किए जाते हैं, वे न्यूक्लिओपॉलिहीड्रोवायरस (nucleopolyhedrovirus) प्रजाति के अन्तर्गत आते हैं। यह विषाणु प्रजाति-विशेष; सँकरे स्पेक्ट्रम कीटनाशीय उपचारों के लिए अति उत्तम मानी जाती हैं।