Question -
Answer -
अन्तर्वेधी आकृतियाँ-ज्वालामुखी उद्गार के द्वारा निकले लावे का प्रसार धरातल के बाहर एवं आन्तरिक भाग में होता है, इसी लावे के जमाव से आग्नेय शैलों का निर्माण हुआ है। जब ज्वालामुखी क्रिया के समय लावा धरातल पर प्रकट न होकर भूपटल के आन्तरिक भाग में ही ठण्डा हो जाता है तो उससे विभिन्न प्रकार की आकृतियाँ बनती हैं। ये आकृतियाँ अन्तर्वेधी आकृतियाँ (Intrusive Forms) कहलाती हैं। अन्तर्वेधी आकृतियाँ गहराई एवं अपने स्वरूप के आधार पर निम्नलिखित प्रकार की होती हैं
1. बैथोलिथ-भूपर्पटी में अधिक गहराई (कई किमी तक) पर मैग्मा भण्डारों के जमे हुए गुम्बदाकार वाले स्थलरूप बैथोलिथ कहलाते हैं। इनका ऊपरी भाग धरातल पर तभी प्रकट होता है। | जब अनाच्छादन प्रक्रिया द्वारा ऊपरी चट्टान का अपरदने हो जाता हैं (चित्र 3.2-I)।
2. लैकोलिथ-ये गुम्बदनुमा विशाल अन्तर्वेधी चट्टाने हैं जिनका तल समतल होता है। इनकी आकृति मिश्रित ज्वालामुखी गुम्बद से मिलती है जो धरातल पर देखे जा सकते हैं। कर्नाटक के पठार में
ग्रेनाइट चट्टानों से बनी ऐसी ही गुम्बदनुमा पहाड़ियाँ मिलती हैं। ये लैकोलिथ के अच्छे उदाहरण हैं। | (चित्र 3.2-II)
3. लैपोलिथ-ऊपर उठे लावे का कुछ भाग जब क्षैतिज में तश्तरी के आकार में जम जाए तो वह लैपोलिथ कहलाता है। (चित्र 3.2-III)
4. फैकोलिथ-कई बार अन्तर्वेधी चट्टानों की मोड़दार अवस्था में अपनति एवं अभिनति के तल में लावे का जमाव हो जाता है। अतः ये परतनुमा लहरदार आकृति फैकोलिथ कहलाती है। (चित्र | 3.2-IV)
5. सिल एवं डाइक- अन्तर्वेधी चट्टानों का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठण्डा होकर जमने से बनी आकृति सिल या शीट कहलाती हैं। (चित्र 3.2-V) किन्तु जब अन्तर्वेधी चट्टानें क्षैतिज अवस्था में ठण्डी होकर जमने के बजाय दरारों में लम्बवत् या लगभग समकोण बनाते हुए दीवार की भाँति जम जाए तो इनको डाइक कहते हैं। पश्चिमी महाराष्ट्र क्षेत्र में यह आकृति बहुतायत में मिलती है। (चित्र 3.2-VI) ।