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Question -

संसदीय समिति की व्यवस्था से संसद के विधायी कामों के मूल्यांकन और देखरेख पर क्या प्रभाव पड़ता है?



Answer -

कानून-निर्माण संसद का काम है और प्रत्येक सदन अपनी समितियों की सहायता से उसे निभाता है। प्रायः बिलों को विस्तृत विचार के लिए किसी समिति को सौंपा जाता है और सदन उस समिति की सिफारिशों के आधार पर उस पर विचार करके उसे पास या अस्वीकृत करता है। अधिकतर मामलों में सदन समिति की सिफारिशों के आधार पर ही उसका निर्णय करता है और इसी आधार पर लोगों का मत है कि इससे संसद की कानून बनाने की शक्ति कुप्रभावित हुई है।

परन्तु वास्तविकता यह नहीं है। संसद के पास इतना समय नहीं होता कि वह प्रत्येक बिल पर, उसकी प्रत्येक धारा पर विचार कर सके और उस पर प्रत्येक दृष्टिकोण से विश्लेषण कर सके। अत: बिल की विस्तृत समीक्षा समिति अवस्था में ही हो जाती है जो सदन को उस पर विस्तार से विचार करने और निर्णय करने में सहायक होती है। यह आवश्यक नहीं है कि संसद प्रत्येक बिल पर समिति की रिपोर्ट को स्वीकार करे। सदन में समिति की रिपोर्ट पर विचार करते समय यदि सदन अनुभव करे कि बिल पर भली-भाँति विचार नहीं हुआ है या उस पर पक्षपातपूर्ण रिपोर्ट दी गई है तो वह उसे उसी समिति या किसी नई समिति को भेज सकता है, समिति की रिपोर्ट को स्वीकार न करके अपना स्वतन्त्र निर्णय भी ले सकता है।

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