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Question -

डॉली और सुधा में इस बात पर चर्चा चल रही है कि मौजूदा वक्त में संसद कितनी कारगर और प्रभावकारी है। डॉली का मानना था कि भारतीय संसद के कामकाज में गिरावट आयी है। यह गिरावट एकदम साफ दिखती है क्योंकि अब बहस-मुबाहिसे पर समय कम खर्च होता है और सदन की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करने अथवा वॉकआउट (बहिर्गमन) करने में ज्यादा। सुधा का तर्क था कि लोकसभा में अलग-अलग सरकारों ने मुँह की खायी हैं, धराशायी हुई है। आप सुधा या डॉली के तर्क के पक्ष या विपक्ष में और कौन-सा तर्क देंगे?



Answer -

डॉली का तर्क उचित है कि सदन का बहुमूल्य समय व्यर्थ की बहस व गतिविधियों में नष्ट हो जाता है तथा उपयोगी कार्य कम हो पाते हैं। संसद के वातावरण व कार्यविधि में गिरावट आई है जिससे संसद की गरिमा को भी धक्का लगा है। आए दिन संसद में गैर-संसदीय भाषा का प्रयोग होता रहता है। और शोर-शराबे में किसी की नहीं सुनी जाती। सदन के अध्यक्ष प्रायः असहाय से दिखाई देते हैं। बहुत छोटी-छोटी बातों पर सदन का बहिष्कार किया जाता है। सदन का माहौल गर्म हो जाता है। कई बार आपस में गुत्थम-गुत्था भी हो जाती है। इस सब के होते संसद के प्रभाव व गरिमा में गिरावट आई है। यह एक गम्भीर विषय है।

सुधा का कथन भी सही है कि बार-बार सरकारें गिरती रहती हैं अर्थात् जिस सरकार का संसद में बहुमत समाप्त हो जाता है वह सरकार गिर जाती है परन्तु यह संसदीय लोकतन्त्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है। यह भी संसद की गिरती गरिमा का परिचायक है।

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