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Chapter 9 पर्यावरण और धारणीय विकास Solutions

Question - 1 : -
पर्यावरण से आप क्या समझते हैं?

Answer - 1 : -

किसी स्थान विशेष में मनुष्य के आस-पास भौतिक वस्तुओं; जल, भूमि, वायु का आवरण, जिसके द्वारा मानव घिरा रहता है, को पर्यावरण कहते हैं।

Question - 2 : -
जब संसाधन निस्सरण की दर उनके पुनर्जनन की दर से बढ़ जाती है, तो क्या होता है?

Answer - 2 : -

जब संसाधन निस्सरण की दर उनके पुनर्जनन की दर से बढ़ जाती है तो पर्यावरण जीवन पोषण का अपना महत्त्वपूर्ण कार्य जननिक और जैविक विविधता को कायम रखने में असफल हो जाता है। इससे पर्यावरण संकट उत्पन्न होता है।

Question - 3 : -
निम्न को नवीकरणीय और गैर नवीकरणीय संसाधनों में वर्गीकृत करें—
(क) वृक्ष,
(ख) मछली,
(ग) पेट्रोलियम,
(घ) कोयला
(ङ) लौह-अयस्क तथा
(च) जल।

Answer - 3 : -

(क) वृक्ष — नवीकरणीय
(ख) मछली — नवीकरणीय
(ग) पेट्रोलियम– अनवीकरणीय
(घ) कोयला — अनवकरणीय
(ङ) लौह-अयस्क–अनवीकरणीय
(च) जल–नवीकरणीय

Question - 4 : -
आजकल विश्व के सामने…………..” और “:” की दो प्रमुख पर्यावरण समस्याएँ हैं।

Answer - 4 : -

(1) वैश्विक उष्णता
(2) ओजोन अपक्षय।

Question - 5 : -
निम्न कारक भारत में कैसे पर्यावरण संकट में योगदान करते हैं? सरकार के समक्ष वे कौन-सी समस्याएँ पैदा करते हैं?

सरकार के समक्ष उत्पन्न समस्याएँ

  1. बढ़ती जनसंख्या
  2. वायु प्रदूषण
  3. जल प्रदूषण
  4. सम्पन्न उपभोग मानक
  5. निरक्षरता
  6. औद्योगीकरण
  7. शहरीकरण
  8. वन क्षेत्र में कमी
  9. अवैध वन कटाई
  10. वैश्विक उष्णता।

Answer - 5 : -

(1) बढ़ती जनसंख्या-  बढ़ती जनसंख्या पर्यावरण संकट का महत्त्वपूर्ण कारण है। जनसंख्या वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास हुआ है। विश्व की बढ़ती जनसंख्या के कारण इन संसाधनों पर अतिरिक्त भार के कारण इनकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है। इसके अतिरिक्त अपशिष्ट पदार्थों का उत्पादन पर्यावरण की धारणीय क्षमता से बाहर हो गया है।

(2) वायु प्रदूषण- वायु में ऐसे बाह्य तत्वों की उपस्थिति जो मनुष्य के स्वास्थ्य अथवा कल्याण हेतु हानिकारक हो, वायु प्रदूषण कहलाता है। वायु प्रदूषण का सर्वाधिक प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है। शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का खूब प्रसार हो रहा है। वायु प्रदूषण से श्वसन तन्त्र सम्बन्धी रोग,त्वचा कैन्सर आँख, गले व फेफड़ों में खराबी व दूषित जल आदि समस्याएँ पैदा हो रही हैं। वायु प्रदूषण के कारण ही अम्लीय वर्षा होती है जो जीवों एवं पौधों के लिए हानिकारक है।

(3) जल प्रदूषण- जब जल में अनेक प्रकार के खनिज, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ व गैसें एक निश्चित अनुपात से अधिक मात्रा में घुल जाते हैं तो ऐसा जल प्रदूषित कहलाता है। जल प्रदूषण के कारण मनुष्य को हैजा, अतिसार, बुखार व पेचिश आदि बीमारियाँ हो जाती हैं।

(4) सम्पन्न उपभोग मानक- जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। जनसंख्या वृद्धि के कारण यहाँ उत्पादन और उपभोग के लिए संसाधनों की माँग संसाधनों के पुनः सृजन की दर से बहुत अधिक है। अधिक उपभोग ने पर्यावरण पर दबाव बनाया है और इसी कारण से वनस्पति एवं जीवों की अनेक जातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।

(5) निरक्षरता— भारत में अनपढ़ लोगों की संख्या विश्व में सबसे अधिक है। निरक्षरता मानव जाति के लिए एक अभिशाप है। निरक्षर मनुष्य के मानसिक स्तर का कम विकासे हो पाता है। वह नई तकनीक को सहजता से स्वीकार नहीं करता है। उसमें खोजी दृष्टिकोण नहीं होता है। निरक्षर व्यक्ति की उत्पादकता भी कम होती है। निरक्षर होने पर व्यक्ति देश के संसाधनों का उचित प्रकार से प्रयोग नहीं कर पाते हैं। इस प्रकार निरक्षरता का शहरीकरण, औद्योगीकरण, आर्थिक संवृद्धि एवं विकास की प्रक्रिया पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

(6) औद्योगीकरण- भारत विश्व का दसवाँ सर्वाधिक औद्योगिक देश है। तीव्र औद्योगीकरण के कारण अनियोजित शहरीकरण प्रदूषण एवं दुर्घटनाएँ आदि परिणाम सामने आए हैं। तीव्र आर्थिक विकास के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर काफी दबाव पड़ा है तथा अपशिष्ट पदार्थों का भी अधिक उत्पादन हुआ है जो पर्यावरण की धारणीय क्षमता से परे है।

(7) शहरीकरण- शहरीकरण तीव्र आर्थिक विकास का परिणाम है। शहर पर्यावरण को प्रमुख रूप से प्रदूषित करते हैं। कई शहर अपने पूरे गन्दे पानी और औद्योगिक अवशिष्ट कूड़े का 40% से 60% असंसाधित रूप से अपने पास की नदियों में बहा देते हैं। इसके अतिरिक्त शहरी उद्योग वातावरण को अपनी चिमनियों से निकलते धुएँ तथा जहरीली गैसों से प्रदूषित करते हैं। शहरीकरण से गाँवों की काफी जनसंख्या शहरों में आ गई है। शहरों में जनसंख्या का दबाव बढ़ा है और अपशिष्ट पदार्थों के अधिक उत्पादन से पर्यावरण पर भी दबाव बढ़ा है। इसके अतिरिक्त शहरीकरण से जल व वायु प्रदूषण में भी वृद्धि होती है।

(8) वन-क्षेत्र में कमी- भारत में प्रति व्यक्ति जंगल भूमि केवल 0.8 हैक्टेयर है, जबकि बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए यह संख्या 0.47 हैक्टेयर होनी चाहिए। वन-क्षेत्र में कमी से देश को प्रति वर्ष 0.8 मिलियन टन नाइट्रोजन, 1.8 मिलियन टन फॉस्फोरस और 26.3 मिलियन टन पोटैशियम का नुकसान होता है। इसके अतिरिक्त भूमि क्षय से 5.8 मिलियन टन से 8.4 मिलियन टन पोषक तत्वों की क्षति होती है। एक वर्ष की अवधि में औसत वर्ष का स्तर गिर गया है तथा ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी आई है।

(9) अवैध वन-कटाई– वनों के विनाश में औद्योगिक विकास, कृषि विकास, दावाग्नि, चरागाहों का विस्तार, बाँधों, सड़कों व रेलमार्गों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वन जैव पदार्थों में सर्वप्रमुख हैं। अन्य जैव पदार्थ जैसे जीव-जन्तु, पशु तथा मानव; इस पर निर्भर हैं। इसके अतिरिक्त यह अजैव पदार्थ जैसे मिट्टी से भी सम्बन्धित है। समस्त पर्यावरण इन्हीं तत्वों की सुचारु क्रिया-प्रणाली द्वारा सन्तुलन प्राप्त करता है। अत: यदि पर्यावरण के आधारभूत तत्व वन नष्ट हो जाते हैं तो पर्यावरण में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है, जिसका प्रभाव जैव-जगत के विनाश का कारण बन सकता है।

(10) वैश्विक उष्णता– वैश्विक उष्णता पृथ्वी और समुद्र के औसत तापमान में वृद्धि को कहते हैं। भू-तापमान में वृद्धि ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि के परिणामस्वरूप हुई है। वैश्विक उष्णता मानव द्वारा वन विनाश तथा जीवाश्म ईंधन के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों की वृद्धि के कारण होती है। वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन गैस तथा दूसरी गैसों के मिलने से हमारी भूमण्डल सतह लगातार गर्म हो रही है। बीसवीं शताब्दी के दौरान वायुमण्डल केऔसत तापमान में 0.6°C की बढ़ोतरी हुई है। इसके परिणामस्वरूप ध्रुवीय बर्फ पिघली है एवं समुद्र का जलस्तर बढ़ा है।

Question - 6 : -
पर्यावरण के क्या कार्य होते हैं?

Answer - 6 : -

पर्यावरण के चार आवश्यक कार्य निम्नलिखित हैं

  1. यह नवीकरणीय एवं गैर-नवीकरणीय संसाधनों की पूर्ति करता है। |
  2. यह अपशिष्ट पदार्थों को समाहित कर लेता है।
  3. यह जननिक और जैविक विविधता प्रदान करके जीवन का पोषण करता है।
  4. यह सौन्दर्य प्रदान करता है।

Question - 7 : -
भारत में भू-क्षय के लिए उत्तरदायी छह कारकों की पहचान करें।

Answer - 7 : -

भारत में भू-क्षय के लिए उत्तरदायी छह कारक निम्नलिखित हैं-

  1. वन कटाव के कारण वनस्पति की हानि,
  2. अधारी जलाऊ लकड़ी और चारे का निष्कर्षण,
  3. कृषि । परिवर्तन,
  4. वन भूमि का अतिक्रमण, ।
  5. वाग्नि और अत्यधिक चराई,
  6. अनियोजित फसल चक्र।

Question - 8 : -
समझाएँ कि नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों की अक्सर लागत उच्च क्यों होती है? ”

Answer - 8 : -

तीव्र जनसंख्या वृद्धि, औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण हमने प्राकृतिक संसाधनों को तीव्र एवं गहन विदोहन किया है। हमारे अनेक महत्त्वपूर्ण संसाधन विलुप्त हो गए हैं और हम नए संसाधनों की खोज में प्रौद्योगिकी एवं अनुसन्धान पर विशाल राशि व्यय करने के लिए मजबूर हैं। इसके अतिरिक्त पर्यावरण का क्षरण होने से श्वसन तन्त्र एवं जलजनित रोगों की संख्या में वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप व्यय में भी बढ़ोतरी हुई है। वैश्विक पर्यावरण मुद्दे जैसे भू-तापमान में वृद्धि एवं ओजोन परत के क्षय ने स्थिति को और भी गम्भीर बना दिया है जिसके कारण सरकार को अधिक धन व्यय करना पड़ता है। अत: यह स्पष्ट है। कि नकारात्मक पर्यावरण प्रभावों की अवसर लागत बहुत अधिक है।

Question - 9 : -
भारत में धारणीय विकास की प्राप्ति के लिए उपयुक्त उपायों की रूपरेखा प्रस्तुत करें।

Answer - 9 : -

भारत में धारणीय विकास की प्राप्ति के लिए उपयुक्त उपाय निम्नलिखित हैं

  1. मानव जनसंख्या को पर्यावरण की धारण क्षमता के स्तर तक सीमित करना होगा।
  2. प्रोद्योगिक प्रगति संसाधनों को संवर्धित करने वाली हो न कि उनका उपभोग करने वाली।
  3. नवीकरणीय संसाधनों का विदोहन धारणीय आधार पर हो ताकि किसी भी स्थिति में निष्कर्षण की दर पुनः सृजन की दर से कम हो।।
  4. गैर-नवीकरणीय संसाधनों की अपक्षय दर नवीकरणीय संसाधनों के सृजन की दर से कम होनी | चाहिए। |
  5. प्रदूषण के कारण उत्पन्न अक्षमताओं पर रोक लगनी चाहिए।

Question - 10 : -
भारत में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता है-इस कथन के समर्थन में तर्क दें।

Answer - 10 : -

प्रकृति ने मनुष्य को जो वस्तुएँ नि:शुल्क उपहारस्वरूप दी हैं उन्हें प्राकृतिक संसाधन कहा जाता है। किसी देश की भौगोलिक स्थिति, संस्थिति, आकार, जलवायु, धरातल, भूमि, मिट्टी, वनस्पति, खनिज, जल, हवा, जीव-जन्तु, जीवाश्म ऊर्जा, पदार्थ आदि प्राकृतिक संसाधनों की श्रेणी में सम्मिलित हैं। भारत में प्राकृतिक संसाधन प्रचुरता से पाए जाते हैं

  1. दक्षिण के पठार की काली मिट्टी जो विशिष्ट रूप से कपास की खेती के लिए उत्तम है।
  2. अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक गैंगा का मैदान है, जो कि विश्व के अत्यधिक ऊर्वर क्षेत्रों में| से एक है।
  3. भारतीय वन वैसे तो असमान रूप से वितरित हैं परन्तु वे अधिकांश जनसंख्या को हरियाली और उसके वन्य जीवन को प्राकृतिक आवरण प्रदान करते हैं।
  4. देश में लौह-अयस्क, कोयला और प्राकृतिक गैस के पर्याप्त भण्डार हैं।
  5. हमारे देश के विभिन्न भागों में बॉक्साइट, ताँबा, क्रोमेट, हीरा, सोना, सीसा, भूरा कोयला, जिंक | यूरेनियम इत्यादि भी प्रचुर मात्रा में मिलते हैं।
  6. हिन्द महासागर का विस्तृत क्षेत्र है।
  7. पहाड़ों की विस्तृत श्रृंखला है।

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