Question -
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द्विध्रुव आघूर्ण के महत्त्वपूर्ण अनुप्रयोग (ImportantApplications of Dipole Moment) द्विध्रुव-आघूर्ण के कुछ महत्त्वपूर्ण अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं-
(1) अणुओं की प्रकृति ज्ञात करना (Predicting thenature of the molecules)–एक निश्चित द्विध्रुव आघूर्ण वाले अणु प्रकृति में ध्रुवी होते हैं, जबकि शून्य द्विध्रुव आघूर्ण वाले अणु अध्रुवी होते हैं। अत: BeF2 (μ = 0 D) अध्रुवी है, जबकि H2O (μ = 1.84 D) ध्रुवी होता है।
(2)अणुओं की आण्विक संरचना ज्ञात करना(Predicting the molecular structure of the molecules)-हम जानते हैं कि परमाणुक गैसें; जैसे–अक्रिय गैसों आदि का द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है, अर्थात् ये अधूवी हैं, परन्तु द्वि-परमाणुक अणु ध्रुवीय तथा अध्रुवीय होते हैं; जैसे-H2O2 आदि अध्रुवी हैं (u = 0) तथा CO ध्रुवीय है। इन अणुओं की संरचना भी रैखिक होती है।
त्रिपरमाणुक अणु भी ध्रुवीय तथा अध्रुवीय होते हैं। CO2, CS2, आदि अध्रुवी होते हैं; क्योंकि इनके लिए μ = 0 होते हैं; अत: इन अणुओं की संरचना रैखिक होती है जिनको निम्नांकित प्रकार से प्रदर्शित कर सकते हैं-
जल अणु ध्रुवी है, क्योंकि μ = 184 D होता है; अत: इसकी संरचना रैखिक नहीं हो सकती है। इसकी कोणीय संरचना होती है तथा प्रत्येक O—H बन्ध के मध्य 104°5′ का कोण होता है। इसी प्रकार H2S व SO2 की भी कोणीय संरचनाएँ हैं; क्योंकि इनके लिए के मान क्रमशः 0.90 D व 1.71 D हैं।।
चार परमाणुकता वाले अणु भी ध्रुवीय तथा अध्रुवीय होते हैं। BCl3 अणु के लिए μ = 0 होता है अर्थात् अध्रुवीय होता है। अतः इसकी संरचना समद्विबाहु त्रिभुज के समान होती है।
(3) आबन्धों की धुवणता ज्ञात करना (Determining the polarity of the bonds)– सहसंयोजी आबन्धयुक्त यौगिक में आयनिक गुण या ध्रुवणता उस बन्ध के निर्माण में प्रयुक्त तत्वों के परमाणुओं की विद्युत-ऋणात्मकता पर निर्भर करता है। इस प्रकार, आबन्ध की ध्रुवणता ∝ आबन्ध के परमाणुओं की विद्युत-ऋणात्मकता में अन्तर तथा द्विध्रुव आघूर्ण ∝ आबन्ध के परमाणुओं की विद्युत-ऋणात्मकता में अन्तर
∴ आबन्ध की ध्रुवणता ∝ द्विध्रुव आघूर्ण (μ)
उदाहरणार्थ-HE, HCI, HBr व HI के द्विध्रुव आघूर्ण क्रमशः 1.94D, 1.03 D, 0.68D व 0.34D हैं; क्योंकि इनमें हैलोजेन की विद्युत-ऋणात्मकता का क्रम F > Cl> Br>I है। अतः आबन्धों में विद्युत-ऋणात्मकता अन्तर H—F > H-Cl> H-Br> H-I है। इससे प्रकट होता है कि इन आबन्धों की ध्रुवणता फ्लुओरीन से आयोडीन की ओर चलने से घटती है।
(4)आबन्धों में आयनिक प्रतिशतता ज्ञात करना(Determining the ionic percentage of the bonds)–द्विध्रुव आघूर्ण मान, ध्रुवी आबन्धों की आयनिक प्रतिशतता ज्ञात करने में सहायता प्रदान करते हैं। यह प्रेक्षित द्विध्रुव आघूर्ण अथवा प्रायोगिक रूप से निर्धारित द्विध्रुव आघूर्ण से सम्पूर्ण इलेक्ट्रॉन-स्थानान्तरण के द्विध्रुव आघूर्ण (सैद्धान्तिक) का अनुपात होता है। उदाहरणार्थ-HCl अणु का प्रेक्षित द्विध्रुव आघूर्ण 1.04 D है। यदि H—Cl आबन्ध में इलेक्ट्रॉन युग्म एक ओर हो तो इसका द्विध्रुव आघूर्ण (सैद्धान्तिक) q x d के सूत्र से ज्ञात किया जा सकता है। q का मान 4.808×10-10esu तथा H व Cl के मध्य बन्ध-लम्बाई 1.266 x 10-8 cm पाई गई है।
अतः H व Ci के बीच सहसंयोजक आबन्ध 17.1% विद्युत संयोजक है अर्थात् आयनिक है।