Question -
Answer -
पृथ्वी पर परत के रूप में हिम या पर्वतीय ढालों से घाटियों में रैखिक प्रवाह के रूप में प्रवाहित हिम को हिमनद कहते हैं। प्रवाहित जल के विपरीत हिमनद प्रवाह बहुत धीमी गति में सक्रिय रहता है। वास्तव में हिमनद गुरुत्वबल के कारण गतिमान होते हैं और प्रबल रूप से अपरदन कार्य करते हैं। जब एक बड़े क्षेत्र में भारी मात्रा में हिम एकत्र हो जाता है तो यह अपने भार और गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से पर्वतीय ढाल अथवा । घाटी में धीमी गति से प्रवाहित होने लगता है। इस प्रवाह के दौरान हिम चट्टानों के साथ घर्षण एव अपघटन/अपघर्षण प्रक्रिया से अपरदन का कार्य करता है जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार के | स्थलरूपों का निर्माण होता है। इनमें हिमगह्वर (Cirque), शृंग (Horms) आदि मुख्य हैं ।
हिम जब उच्च पर्वतों से निम्न पर्वतीय क्षेत्रों में प्रवाहित होता है तो तापमान वृद्धि के कारण वह पिघलना आरम्भ कर देता है। इस क्षेत्र में हिम ठोस रूप से तरल रूप में प्रवाहित होकर विभिन्न प्रकार के स्थलरूप; जैसे-हिमोढ़, एस्कर, डुमलिन आदि का निर्माण करता है ।
वास्तव में, हिमनद ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों को अपरदन प्रक्रिया के द्वारा ही प्रारम्भ में निम्न पहाड़ियों के रूप में तथा पुनः पहाड़ियों को मैदानों के रूप में परिवर्तित कर देता है जिसमें ठोस हिम के साथ-साथ पिघलता हिम भी अपना विशेष सहयोग प्रदान करता है। अतः हिमनद ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों को निम्न पहाड़ियों व मैदानों में परिवर्तन को अपरदन कार्य के सहयोग से पूरा करता है।।