Question -
Answer -
हम जानते हैं कि भूपर्पटी गत्यात्मक है। यह क्षैतिज एवं लम्बवत् दिशाओं में संचालित होती रहती है। भूपर्पटी का निर्माण करने वाली पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियों में उत्पन्न अन्तर पृथ्वी की बाह्य शक्ति से अनवरत रूप से प्रभावित होता रहता है। इसका तात्पर्य यह है कि धरातल स्थलमण्डल के अन्तर्गत उत्पन्न बाह्य शक्तियों तथा पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियों द्वारा प्रभावित रहता है। आन्तरिक शक्तियाँ धरातल पर रचनात्मक रूप से अपना कार्य करती रहती हैं। महाद्वीप, पर्वत, पठार आदि स्थलाकृतियों का निर्माण इसी शक्ति का परिणाम है जबकि बाह्य शक्तियाँ धरातल के उभरे हुए भागों के समतलीकरण के कार्य में संलग्न रहती हैं। अतएव दोनों शक्तियों की यह भिन्नता तब तक बनी रहती है जब तक बहिर्जनिक एवं अन्तर्जनिक बलों के विरोधात्मक कार्य चलते रहते हैं। इस प्रकार पृथ्वी इन शक्तियों के खेल का रंगमंच है।