Question -
Answer -
महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धान्त के उपरान्त के अध्ययनों ने महासागर व महाद्वीपीय वितरण के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत की जो वेगनर के सिद्धान्त के समय उपलब्ध नहीं थी। यद्यपि इन अध्ययनों द्वारा चट्टानों के पुरा चुम्बकीय गुण और महासागरीय अधःस्तल के विस्तार की संकल्पना सामने आई।
सागरीय अधःस्तल परिकल्पना
चुम्बकीय गुणों के आधार पर हैस ने 1961 में एक परिकल्पना प्रस्तुत की जिसे ‘सागरीय अध:स्तल विस्तार के नाम से जाना जाता है। हैस के तर्कानुसार महासागरीय कटकों के शीर्ष पर लगातार ज्वालामुखी उद्भेदन से महासागरीय पर्पटी में विभेदन हुआ और नया लावा इस दरार को भरकर महासागरीय पर्पटी के दोनों तरफ धकेल रहा है। इस प्रकार महासागरीय अध:स्तल का विस्तार हो रही है। इसके साथ ही दूसरे महासागर के न सिकुड़ने पर हैस ने महासागरीय पर्पटी के क्षेपण की बात कही है। अत: एक ओर महासागरों में पर्पटी का निर्माण होता है तो दूसरी तरफ महासागरीय गर्गों में इसका विनाश भी होता है। (देखिए चित्र 4.1)।
प्लेट विवर्तनिक संकल्पना
हैस की परिकल्पना के उपरान्त विद्वानों की महासागरों वे महाद्वीपों के वितरण के अध्ययन में फिर से रुचि उत्पन्न हुई। सन् 1967 में मैकेन्जी, पारकर और मोरगन ने स्वतन्त्र रूप से उपलब्ध विचारों को समन्वित कर अध्ययन प्रस्तुत किया, जिसे प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त कहा गया। एक विवर्तनिक प्लेट ठोस चट्टान का विशाल व अनियमित आकार का खण्ड है, जो महाद्वीप व महासागर स्थलमण्डलों के संयोग से बना है (चित्र 4.2)। ये प्लेटें दुर्बलतामण्डल पर दृढ़ इकाई के रूप में संवहन धाराओं के प्रभाव से चलायमान हैं। इन प्लेटों द्वारा ही महाद्वीप व महासागरों का वितरण, निर्माण तथा अन्य भूगर्भीय घटनाएँ निर्धारित होती हैं।